दुव्वुरी सुब्बाराव के बाद संजय मल्होत्रा नॉर्थ ब्लॉक से सीधे भारतीय रिजर्व बैंक की कमान संभालने वाले पहले गवर्नर है। दरअसल, नॉर्थ ब्लॉक में वित्त मंत्रालय का कार्यालय है। मल्होत्रा बुधवार को पदभार संभालेंगे।
मल्होत्रा भारतीय प्रशासनिक सेवा के राजस्थान कैडर के 1990 बैच के अधिकारी हैं। वह शक्तिकांत दास के बाद रिजर्व बैंक के गवर्नर का कार्यभार संभालेंगे। दास वित्त सचिव के पद से सेवानिवृत्त हुए थे और इसके बाद भारत के जी20 के शेरपा थे। सुब्बाराव वित्त सचिव थे और वे सीधे रिजर्व बैंक के गवर्नर बने थे।
मल्होत्रा ऐसे समय में रिजर्व बैंक का कार्यभार संभाल रहे हैं जब हे़डलाइन खुदरा महंगाई बढ़कर 6.2 प्रतिशत हो गई है और भारत की जीडीपी वृद्धि दर जुलाई-सितंबर की तिमाही की वृद्धि गिरकर 5.4 प्रतिशत हो गई है। खुदरा महंगाई का यह स्तर भारतीय रिजर्व बैंक के महंगाई के दायरे से अधिक है। महंगाई बढ़ने के कारण ही भारतीय रिजर्व बैंक ने मौद्रिक नीति में वित्त वर्ष 24 के लिए महंगाई का अनुमान 4.5 प्रतिशत से बढ़ाकर 4.8 प्रतिशत कर दिया है और वृद्धि के अनुमान को 7 प्रतिशत से घटाकर 6.6 प्रतिशत कर दिया है।
वृद्धि और महंगाई के दो राहे पर मल्होत्रा की क्या प्राथमिकता होगी? कई लोगों का विश्वास है कि दिसंबर की नीति ने अगली नीतिगत समीक्षा बैठक में ब्याज दरें कम करने के लिए मंच तैयार कर दिया है। दिसंबर की बैठक में मौद्रिक नीति समिति के तीन में से दो बाहरी सदस्यों ने 25 आधार अंक कटौती करने के लिए वोट दिया था।
यूबीएस सिक्योरिटीज के भारत की मुख्य अर्थशास्त्री तन्वी गुप्ता जैन ने कहा, ‘हमारा मानना है कि रिजर्व बैंक के नए गवर्नर को वृद्धि जोखिम और हालिया हेडलाइन उपभोक्ता मूल्य सूचकांक महंगाई में संतुलन स्थापित करने की आवश्यकता होगी। अभी महंगाई रिजर्व बैंक के 4 प्रतिशत के मध्यम स्तर से अधिक है।’
जैन के मुताबिक उच्च वास्तविक नीति दर और सुस्त वृद्धि जुड़ने से भारतीय रिजर्व बैंक के लिए फरवरी 2025 रीपो दर को 75 आधार अंक तक कम करने की गुंजाइश बन सकती है। उन्होंने कहा, ‘हमारा मानना है कि जोखिम का संतुलन कमजोर वृद्धि की ओर अधिक झुक गया है, वो भी खासकर जब चीन पर अमेरिकी शुल्क बढ़ने की आशंका बढ़ गई है।’
लचीले मुद्रास्फीति के लक्ष्य के मसौदे की समीक्षा 2026 में प्रस्तावित है। यह समीक्षा हर पांच साल में होती है। इस मुद्दे पर मार्केट मल्होत्रा के रुख की बेसब्री से इंतजार करेगी।
दास का क्रिप्टो करेंसी पर बेहद सख्त रुख था। हालांकि कुछ लोगों की राय है कि क्रिप्टो करेंसी को नियमित किए जाने की जरूरत है लेकिन इस को अनुमति देने के पक्ष में केंद्रीय बैंक नहीं था।
बिटकॉइन बीते दिनों 1,00,000 डॉलर के स्तर को पहली बार पार कर गया था। ट्रंप की योजना अमेरिका को दुनिया की क्रिप्टो करेंसी की राजधानी बनाना है। क्रिप्टो करेंसी को लेकर मल्होत्रा के रुख को जानना बाकी है।
शक्तिकांत दास के कार्यकाल में दोषी संस्थाओं को दंडित करने के लिए व्यावसायिक प्रतिबंध लगाने की शुरुआत की गई थी। कानूनों का उल्लंघन करने पर मौद्रिक दंड लगाए जा रहे हैं। लिहाजा यह देखना होगा कि मल्होत्रा रिजर्व बैंक नियमित दोषी इकाइयों पर कठोर रुख अपनाते हैं।