रीपो दर में 50 आधार अंक की कटौती की घोषणा के समय भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने यह भी साफ कर दिया था कि आर्थिक वृद्धि को गति देने के लिए अब उसके पास बहुत गुंजाइश नहीं बची है। आरबीआई के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने मनोजित साहा को दिए एक खास साक्षात्कार में रीपो दर में भारी भरकम कटौती और रुख में बदलाव के कारणों को स्पष्ट किया। मुख्य अंश:
मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) का मानना था कि रीपो दर घटाकर 5.5 प्रतिशत करने के बाद मौजूदा व्यापक आर्थिक हालात और परिदृश्य को देखते हुए एक तटस्थ रुख की जरूरत थी। इस बात का जिक्र करना जरूरी है कि केवल मौजूदा वृहद आर्थिक हालात ही नहीं बल्कि उन्हें लेकर भविष्य के अनुमान भी मायने रखते हैं। अप्रैल 2025 में सीपीआई मुद्रास्फीति 3.2 प्रतिशत थी मगर चौथी तिमाही के लिए सीपीआई समग्र मुद्रास्फीति का अनुमान 4.4 प्रतिशत था। 2.8 प्रतिशत मुद्रास्फीति हमारे अनुमान के अनुरूप ही रही है। जहां तक भविष्य में दरें घटाने की बात है तो मेरे लिए इस पर फिलहाल कुछ कहना उचित नहीं होगा। अगर मुद्रास्फीति हमारे अनुमान से कम रही तो नीतिगत दरें और नरम करने की गुंजाइश हो सकती है।
मैं इस बात पर जोर देना चाहूंगा कि वीआरआरआर या वीआरआर के जरिये मौद्रिक परिचालन को सुगम बनाने से दीर्घकालिक नकदी पर कोई असर नहीं होता है। हम पहले भी कह चुके हैं कि बैंकिंग तंत्र में पर्याप्त नकदी की मात्रा बनाए रखने में हम पीछे नहीं हटेंगे। जहां तक सीआरआर से जुड़ा सवाल है तो यह दीर्घकालिक नकदी प्रबंधित करने का खास जरिया है। सीआरआर जितना अधिक होगा बैंकिंग प्रणाली में नकदी की उपलब्धता उतनी कम होगी। मुझे लगता है कि सीआरआर में कटौती को इसी संदर्भ में जोड़ कर देखा जाना चाहिए। लिहाजा यह कहना सही नहीं है कि सीआरआर का इस्तेमाल बार-बार किया जाएगा।
आरबीआई बैंकिंग प्रणाली में पर्याप्त नकदी बनाए रखना चाहता है ताकि अर्थव्यवस्था की आवश्यकताओं की पूर्ति आराम से हो सके। इसका भी ख्याल रखा जाता है कि दरों में कटौती का प्रसार सुगमता से हो और परिसंपत्तियों की कीमतों में बेवजह उछाल भी न आए। ऋणों का आवंटन समझ बूझ के साथ करने के लिए हमारे पास मजबूत नियम-कायदे हैं।
हां, यह सच है कि नकदी ढांचे की समीक्षा हो रही है। यह एक पेचीदा विषय है क्योंकि बाजार के कई हिस्से हैं जिन्हें ध्यान में रखना होता है। परिचालन लक्ष्य क्या होगा यह एक प्रमुख विषय है। इस पर फिलहाल विचार चल रहा है।
मौद्रिक नीति का प्रसार कुछ समय बाद होता है। दरों में कटौती के इस चक्र में प्रसार तेजी से हो रहा है। बैंकिंग माध्यम काफी महत्त्वपूर्ण होते हैं। जोखिम मुक्त बॉन्ड बाजार के जरिये नीतिगत दरों में कटौती का प्रसार भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है। जोखिम मुक्त बॉन्ड बाजार और बैंकिंग माध्यम एक दूसरे के पूरक हैं।
भारतीय रुपये की विनिमय दर बाजार की गतिविधियों से प्रभावित होती है। हालांकि, मैं यह भी कहना चाहूंगा कि अल्प अवधि में मूल्यों की तुलना करना उचित नहीं है। वर्ष 2023 से अब तक रुपये का प्रदर्शन जापान की मुद्रा येन समेत तमाम दूसरी मुद्राओं की तुलना में बेहतर रहा है।
ग्राहक सेवा एक प्रमुख फोकस क्षेत्र रहा है जहां हमें निरंतर सुधार की आवश्यकता है। विनियमित उपक्रमों को एक ऐसा बैंकिंग अनुभव प्रदान करना चाहिए जहां ग्राहकों की अपेक्षाओं का अनुमान लगाया जा सके, आवश्यक सेवाएं निष्पक्ष एवं पारदर्शी तरीके से प्रदान की जाएं और प्रक्रियाएं निर्बाध हों। यह प्रतिक्रियात्मक सेवा से सक्रिय दृष्टिकोण की ओर बदलाव को दर्शाता है। मैं सभी विनियमित उपक्रमों से सेवाओं की डिलिवरी में सुधार करने का आग्रह करूंगा। उच्च प्रबंधन को हर सप्ताह ग्राहक सेवा एवं शिकायत निवारण पर कुछ समय बिताना चाहिए। हम आरबीआई लोकपाल योजना के तहत ग्राहकों के लिए मुआवजा तंत्र की भी समीक्षा कर रहे हैं ताकि इसके निवारक प्रभाव को बढ़ाया जा सके।
हम इस संबंध में दो पहलुओं पर काम कर रहे हैं। वित्तीय क्षेत्र में एक विनियमित इकाई के साथ केवाईसी को सभी विनियमित उपक्रमों द्वारा मान्यता मिलनी चाहिए। इससे किसी अन्य विनियमित इकाई के साथ संबंध के मामले में दूसरे केवाईसी की आवश्यकता नहीं होगी। इसके अलावा किसी एक विनियमित इकाई के साथ पते को अपडेट करने से वित्तीय क्षेत्र के किसी भी नियामक से संबंधित संस्थाओं के पास सूचनाएं अपडेट होनी चाहिए।
बैंक लाइसेंस ढांचे की प्रस्तावित समीक्षा के तहत मौजूदा एवं उभरती आर्थिक प्राथमिकताओं के संदर्भ में मौजूदा ढांचे का अध्ययन किया जाएगा ताकि बैंक आकांक्षी भारत की वित्तपोषण आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम हो सकें। जहां तक यूनिवर्सल बैंकों में तब्दील करने के लिए एसएफबी के आवेदनों का सवाल है तो उनके आवेदन मूल्यांकन के विभिन्न चरणों में हैं। उन पर जल्द ही निर्णय लिया जाएगा।
हरेक निर्णय का अपना अलग कारण है। मैं इसे राहत के रूप में नहीं देखना चाहता। हम बैंकों को इस तरह से विनियमित एवं निगरानी करने के लिए मौजूद हैं ताकि वे अर्थव्यवस्था की जरूरतों को स्थायी तरीके से पूरा करने में समर्थ हों। हम चाहते हैं कि वे उधार दें लेकिन विवेकपूर्ण तरीके से। विनियमन लागत और फायदे के बीच बढ़िया संतुलन बनाए रखना होगा। हम उस संतुलन को बरकरार रखेंगे।
ऐसे निर्देश पहले से ही मौजूद हैं जिनके अनुसार ग्राहकों की जरूरतों का सही तरीके से आकलन किया जाना चाहिए ताकि कोई गलत बिक्री न होने पाए। हम कारोबारी आचरण ढांचे और पर्यवेक्षण में सुधार करने का प्रयास जारी रखेंगे ताकि गलत बिक्री की शिकायतों को अगर खत्म नहीं तो कम से कम न्यूनतम किया जा सके।