महामारी के कारण अलग तरह की स्वास्थ्य चुनौती को देखते हुए पंद्रहवें वित्त आयोग के चेयरमैन एन के सिंह ने कहा कि संयुक्त रूप से सार्वजनिक क्षेत्र के स्वास्थ्य खर्च को 2024 तक बढ़ाकर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 2.5 फीसदी किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि हाल में सौंपी गई वित्त आयोग की रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से बताया गया है कि किस प्रकार से सार्वजनिक निजी भागीदारी मॉडल भारत के स्वास्थ्य ढांचे में कमी की भरपाई कर सकता है।
भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) की ओर से आयोजित हेल्थ एशिया 2020 पर एक समूह चर्चा में उन्होंने कहा, ‘इस बात में कोई संदेह नहीं है कि केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से सार्वजनिक क्षेत्र के खर्च में भारी इजाफा किया जाना चाहिए। हमें स्वास्थ्य खर्च को जीडीपी के 0.95 फीसदी के मौजूदा स्तर से बढ़ाकर 2.5 फीसदी करने का लक्ष्य बनाने की जरूरत है। इसका उल्लेख 2017 की स्वास्थ्य नीति में किया गया है। राज्यों को भी अपना स्वास्थ्य परिव्यय बढ़ाने की जरूरत है।’
पंद्रहवें वित्त आयोग ने पिछले हफ्ते 2021-22 से 2025-26 अवधि के लिए कोविड काल में वित्त आयोग (फाइनैंस कमीशन इन कोविड टाइम्स) शीर्षक से अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद को सौंपी थी। इसकी प्रति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को भी सौंपी गई थी।
सिंह ने कहा, ‘वित्त आयोग की रिपोर्ट जब सार्वजनिक होगी तब स्वास्थ्य क्षेत्र में पीपीपी की वकालत करने का यह एक ज्वलंत उदाहरण होगी। इसमें आपको राज्य, मंत्रालय, शोध संगठन और निजी क्षेत्र सभी घटक मिलेंगे।’
उन्होंने कहा कि जिला अस्पताल चिकित्सा सहायकों के प्रशिक्षण के बड़े आधार बन सकते हैं जिससे स्वास्थ्य और रोजगार देने वालों की संख्या बढ़ेगी।
राज्यसभा के पूर्व सदस्य और अफसरशाह सिंह ने चिकित्सा अधिकारियों का एक कैडर बनाने की जरूरत पर भी बल दिया जिसकी चर्चा अखिल भारतीय सेवा अधिनियम 1951 में भी की गई है। सिंह ने कहा, ‘अखिल भारतीय स्वास्थ्य सेवा का गठन नहीं किया गया है। बहुत से मुद्दों के समाधान के लिए इसकी आवश्यकता है।’ उन्होंने आगे कहा कि स्वास्थ्य क्षेत्र में सार्वजनिक निजी भागीदारी को बहुत व्यापक दृष्टि से देखे जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा, ‘स्वास्थ्य देखभाल में सार्वजनिक निजी भागीदारी कार्य संबंध में निरंतरता होनी चाहिए और सरकार को केवल आपात स्थिति में ही निजी क्षेत्र की याद नहीं आनी चाहिए।’
