भारत में आर्थिक नीति की अनिश्चितता का पैमाना 81 महीनों में अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गया। मई में कोविड-19 संकट के बीच सूचकांक जनवरी के 48.1 से 3.6 गुना बढ़कर 173.3 पर पहुंच गया। इससे पहले सूचकांक इतने उच्च स्तर पर अगस्त 2013 में पहुंची थी, जब देश तथाकथित टेपर टैंट्रम का सामना कर रहा था। तब अमेरिकी सेंट्रल बैंक ने आसान उधारी के लिए जो रकम मुहैया कराई थी उसमें वह कमी करने लगा था। आसान रकम के इस कार्यक्रम को मात्रात्मक सुगमता (क्यूई) कहा गया और इसे अर्थव्यवस्था को वैश्विक वित्तीय संकट के प्रभावों से बचाने के लिए लागू किया गया था। इसने बहुत से निवेशकों को अमेरिका में कम ब्याज दर पर उधारी लेकर भारत जैसे उभरते बाजारों में उच्च रिटर्न प्राप्त करने के लिए निवेश करने का मौका दिया था। इस नीति के बंद होने के संकेत से बहुत से विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) ने इस ट्रेड को बंद कर दिया जिससे नकदी की समस्या पैदा हो गई क्योंकि भारत और दूसरे उभरते बाजारों में अचानक से पूंजी का संकट बढ़ गया।
भारत ने शृंखलाबद्ध आर्थिक उपायों के जरिये कोविड-19 से मुकाबले के लिए कई घोषणाएं की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अर्थव्यवस्था के विभिन्न हिस्सों को सहयोग प्रदान करने के लिए मई में एक योजना की घोषणा की थी। 20 लाख करोड़ रुपये के घोषित पैकेज को लेकर प्रश्न खड़े हो रहे हैं और यह भी पूछा जा रहा है क्या रकम वास्तव में सरकार से आ रही है। कुछ लोगों ने पैकेज की वास्तविक मूल्य को घोषित पैकेज के महज दसवें भाग के करीब बताया है।
फंड प्रबंधन कंपनी आईडीएफसी असेट मैनेजमेंट कंपनी के अर्थशास्त्री श्रीजीत बालासुब्रमण्यन ने कहा कोविड-19 से पहले ही अर्थव्यवस्था में बुनियादी ढांचागत मुद्दे रहे हैं। यह पूरी तरह से सामने नहीं आया है क्योंकि सूचकांक का प्रारूप ऐसे मुद्दों को लेने वाला है जिसको लेकर अनिश्चितता हो सकती है न कि ऐसी समस्याओं को जो पूरी तरह से स्पष्ट हैं। मौजूदा मुद्दों में कॉर्पोरेट, परिवार और सरकार के बही खातों में कमजोरी है। हाल के दिनों में इन समस्याओं में उछाल महामारी के कारण से है जिसके परिणामस्वरूप वैश्विक स्तर पर भी स्पष्टता नहीं है।
उन्होंने कहा, ‘स्वाभाविक तौर पर दुनिया भर में अनिश्चितता है।’ उन्होंने कहा लघु अवधि में इसके बरकरार रहने के आसार हैं। पिछले दो महीने में वैश्विक स्तर पर भी नीतिगत अनिश्चितता में उछाल नजर आई है। रीडिंग रिकॉर्ड उच्च स्तर पर बनी हुई हैं।केयर रेटिंग के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा कि संकट की प्रकृति का मतलब है कि सरकार को नीतियां बनाने में दिक्कत होगी और यह समस्या भारत में भी कुछ समय तक रह सकती है।
उन्होंने कहा, ‘अनिश्चितता की स्थिति रहेगी और उतार-चढ़ाव जारी रहेगा।’ सरकार के 2018-19 की आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि इंडेक्स वैल्यू ट्रेंड में बढ़ोतरी निवेश में बदलाव की वजह से है। कंपनियां अपने कारोबार के विस्तार में निवेश कर रही हैं, जिसका अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक असर पड़ा है। अगर नीतिगत निश्चितता कम रहेगी तो ऐसा कम संभव हो पाएगा क्योंकि इससे उनके कारोबार पर असर पड़ सकता है।
