भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने बुधवार को कहा कि बैंक और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (एनबीएफसी) सूक्ष्म एवं मझोले उद्यमों (एसएमई) को परिवर्तित दरों (फ्लोटिंग रेट) पर आवंटित सावधि ऋणों के समय से पहले चुकाए जाने पर शुल्क नहीं ले सकते हैं। इस संबंध में जल्द ही एक मसौदा परिपत्र जारी किया जा सकता है।
इससे पहले इन नियमित इकाइयों को व्यक्तिगत कर्जधारकों को परिवर्तित दरों पर दिए सावधि ऋणों के समय पूर्व चुकता होने पर जुर्माना शुल्क लगाने की अनुमति नहीं थी। हालांकि, कारोबारी ऋण के मामले में यह शर्त नहीं रखी गई थी।
आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने बुधवार को मौद्रिक नीति समीक्षा बैठक के बाद कहा, उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए आरबीआई ने पिछले कुछ वर्षों के दौरान कई उपाय किए हैं। इन उपायों के अंतर्गत अगर परिवर्तित दरों पर आवंटित किसी ऋण को समय से पहले चुकाया जाता है बैंक और एनबीएफसी एसएमई से किसी तरह का शुल्क या जुर्माना नहीं लेंगे।
दास ने कहा कि एमएसएमई ऋणों के मामले में भी अब यह प्राधवान किए जाने का प्रस्ताव है। उन्होंने कहा कि इस बारे में एक मसौदा दिशानिर्देश जल्द ही जारी किया जा सकता है। विश्लेषकों का कहना है कि इन नियमों के क्रियान्वयन से कर्जदाता संस्थानों की आय पर प्रतिकूल असर होगा और इसके साथ ही ऋणों के समय पूर्व भुगतान एवं बैलेंस ट्रांसफर के मामलों में तेजी आएगी।
इक्रा में वरिष्ठ उपाध्यक्ष अनिल गुप्ता कहते हैं, ‘एमएसई असुरक्षित व्यावसायिक ऋण लेती हैं जिनकी दरें सामान्यता नहीं बदलती हैं। वे जायदाद के बदले भी ऋण लेते हैं मगर ये परिवर्तित दरों पर दिए जाते हैं। आरबीआई का यह कदम ग्राहकों के लिए तो फायदेमंद है मगर इससे ऋणों के समय से पूर्व भुगतान और बैलेंस ट्रांसफर के मामले बढ़ सकते हैं।’ इंडिया रेटिंग में निदेशक करण गुप्ता ने कहा, ये शुल्क समाप्त होने पर बैलेंस ट्रांसफर के मामले बढ़ सकते हैं।