आगामी 2 अप्रैल से जवाबी शुल्क लगाने की अमेरिका की योजना से भारत के लिए नए अवसर सामने आएंगे। सरकार की शीर्ष विचार संस्था नीति आयोग के एक शुरुआती विश्लेषण में कहा गया है कि अमेरिका ने चीन, मेक्सिको और कनाडा जैसे देशों पर अतिरिक्त 20-25 प्रतिशत शुल्क लगा रखे हैं जिससे कहीं न कहीं भारत को फायदा होगा।
अमेरिका दुनिया के देशों से जितना आयात करता है उनमें मेक्सिको, चीन और कनाडा की हिस्सेदारी 50 प्रतिशत है। अमेरिकी बाजार में ये तीनों भारत को टक्कर देने वाले प्रमुख देश हैं।
नीति आयोग के सदस्य अरविंद विरमानी ने शुक्रवार को कहा कि इन शुल्कों के भारत के व्यापार पर होने वाले प्रभाव पर आयोग जल्द ही एक रिपोर्ट जारी करेगा। यह रिपोर्ट तैयार करने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है मगर नीति आयोग में कार्यक्रम निदेशक प्रभाकर साहू ने इस अध्ययन के कुछ शुरुआती नतीजों की जानकारी दी।
साहू ने कहा, ‘हम शुल्कों का अलग-अलग विश्लेषण कर रहे हैं। ये तो अभी शुरुआती नतीजे हैं। अगर कुछ खास क्षेत्रों को छोड़ दें तो जवाबी शुल्कों से बहुत असर नहीं होने जा रहा है और कहीं न कहीं भारत के लिए इनसे अवसर सामने आ सकते हैं।‘
उन्होंने कहा कि अमेरिका के जवाबी शुल्कों से कुछ क्षेत्र पर असर हो सकता है। हालांकि, उन्होंने यह नहीं बताया कि इससे कौन से क्षेत्र फायदे और नुकसान में रह सकते हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप अपनी संरक्षणवादी नीतियां लागू कर रहे हैं जिनसे पूरी दुनिया में उथल-पुथल मची हुई है। अमेरिका ने 12 मार्च को इस्पात और एल्युमीनियम के आयात पर 25 प्रतिशत शुल्क लगा दिया है और 3 अप्रैल से पूरी तरह तैयार कारों के आयात पर 25 प्रतिशत शुल्क लगा देगा।
ट्रंप ने भारत पर भी लगातार निशाना साधा है। ट्रंप कहते रहे हैं कि भारत को जवाबी शुल्कों के मामले में कोई रियायत नहीं दी जाएगी मगर पिछले कुछ दिनों से उनके तेवर नरम लग रहे हैं। उन्होंने किसी देश का नाम लिए बिना कहा कि 2 अप्रैल को कई देशों को जवाबी शुल्क से राहत दी जाएगी।
नीति आयोग ने अपनी ट्रेड वॉच क्वार्टर्ली रिपोर्ट का दूसरा संस्करण भी जारी किया। इस रिपोर्ट में जुलाई-सितंबर तिमाही के व्यापार आंकड़ों का अध्ययन किया गया है। रिपोर्ट में इस बात का खास तौर पर जिक्र किया गया है कि वैश्विक व्यापार में भारत का योगदान केवल उन्हीं उत्पादों में अधिक रहा है जिनकी दुनिया में बहुत मांग नहीं है। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘यूरोपीय संघ (ईयू), उत्तर अमेरिका और आसियान की वैश्विक व्यापार में 77 प्रतिशत हिस्सेदारी है मगर इन क्षेत्रों के साथ भारत का व्यापार महज 8 प्रतिशत ही है। भारत उनकी कुल आयात मांग के केवल 6 प्रतिशत हिस्से की ही पूर्ति कर पाता है।‘
भारत प्रमुख जिंसों, बिजली के साजो-सामान, खनिज ईंधन और परमाणु संयंत्रों एवं यांत्रिक उपकरणों का प्रमुख रूप से निर्यात करता है जो उन क्षेत्रों के शीर्ष वैश्विक आयात में शामिल हैं। मगर यहां चीन और अमेरिका का खास दबदबा रहा है। चीन बिजली के साजो-सामान और परमाणु संयंत्रों का अग्रणी आपूर्तिकर्ता है। इन वस्तुओं में भारत की हिस्सेदारी 1-2 प्रतिशत ही है।
आयोग ने कहा कि दक्षिण एशिया, पूर्वी अफ्रीका और दक्षिणी अफ्रीका के साथ होने वाले व्यापार में भारत की हिस्सेदारी 44 प्रतिशत ही है। इन क्षेत्रों की वैश्विक व्यापार में केवल 2 प्रतिशत हिस्सेदारी है। आयोग ने कहा, ‘इन क्षेत्रों में सबसे अधिक खनिज ईंधन और परमाणु संयंत्रों का आयात होता है। भारत इन क्षेत्रों को जिन प्रमुख वस्तुओं का निर्यात करता है उनमें प्राकृतिक एवं कृत्रिम मोती और खनिज ईंधन शामिल हैं। रूस और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के निर्यात में आगे रहे हैं।’आयोग ने अपनी इस रिपोर्ट के दूसरे संस्करण में परिधान व्यापार का विशेष जिक्र किया है। रिपोर्ट में कहा गया कि कपड़ा एवं परिधान निर्यात पिछले छह वर्षों के दौरान 40 अरब डॉलर के स्तर पर लगभग अटका है और सालाना मात्र 0.8 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। रिपोर्ट के अनुसार यह वैश्विक वृद्धि दर 3.5 प्रतिशत से काफी कम है।