यह बात 30 मई के आस-पास की है जब भारत की अग्रणी विचार संस्था नीति आयोग ने भारत-अमेरिका के बीच व्यापार पर एक कार्य पत्र (वर्किंग पेपर) अपनी वेबसाइट पर अपलोड किया था। इस पत्र का शीर्षक था ‘नई अमेरिकी व्यापार व्यवस्था में भारत-अमेरिका कृषि व्यापार को बढ़ावा देना’। कृषि क्षेत्र के जाने-माने चेहरे राका सक्सेना और नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद द्वारा तैयार इस पत्र पर किसानों समूहों के एक धड़े और कुछ उद्योग संघों ने कड़ी प्रतिक्रिया जताई थी। यह कार्य पत्र एक महीने से भी कम समय में नीति आयोग की वेबसाइट से गायब है।
हालांकि, इस पत्र को हटाने की कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है लेकिन इसके छपने के बाद की घटनाएं काफी दिलचस्प हैं। इस पत्र में कई सुझाव दिए गए थे जिनमें अमेरिका से सोयाबीन तेल, सोयाबीन बीज और मक्के के आयात से जुड़े सुझावों पर मिली-जुली प्रतिक्रियाएं आई थीं। इस पत्र में सोयाबीन तेल के आयात पर अमेरिका को कुछ रियायतें देने की वकालत की गई थी।
इस पत्र में अमेरिका से सोयाबीन बीज के आयात की अनुमति दिए जाने और बंदरगाहों पर मौजूद मिलों के जरिये तेल निकालने में इनका इस्तेमाल करने के साथ वैश्विक मांग पूरी करने के लिए सोयाबीन खली (जो अमूमन बीज का 82 फीसदी होता है) के निर्यात जैसे सुझाव दिए गए थे।
अमेरिका से निर्यात होने वाले सभी सोयाबीन बीज सामान्य तौर पर जीन संवर्धित (जीएम) होते हैं। पत्र में सुझाव दिया गया, ‘इससे जीएम फीड मील को घरेलू बाजारों में प्रवेश करने से रोका जा सकेगा।’
मक्का के आयात पर पत्र में कहा गया कि एथेनॉल मिश्रण से जुड़े लक्ष्यों को पूरा करने के लिए इसके आयात की अनुमति दी जानी चाहिए। यह भी कहा गया कि इसके सह-उत्पाद डिस्टिलर्स ड्राइड ग्रेन विद सॉल्यूबल (डीडीजीएस) का पूरी तरह से निर्यात किया जाए।
पत्र में इस बात पर जोर दिया गया कि खाद्य श्रृंखला से जीएम को बाहर रखने के लिए सोयाबीन खली तथा आयातित बीन और मक्के से निकाले गए डीडीजीएस का निर्यात किया जाना चाहिए। सोयाबीन मील और डीडीजीएस दोनों का इस्तेमाल बड़े पैमाने मवेशियों के चारे में होता है।
उद्योग जगत के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया,’ इस तेल में प्रोटीन नहीं होता है जो उसे कुछ हद तक गैर-जीएम बना देता है।’ये सुझाव केवल नीति आयोग के इस कार्य पत्र में ही नहीं दिए गए थे। कुछ महीने पहले दूसरे वरिष्ठ कृषि विशेषज्ञों ने भी भारतीय कृषि क्षेत्र को चुनिंदा अमेरिकी आयातों के लिए खोलने की वकालत की थी।
नीति आयोग के सुझावों पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) से संबद्ध भारतीय किसान संघ (बीकेएस) ने हंगामा खड़ा कर दिया। बीकेएस ने 14 जून को एक सख्त बयान में कहा कि नीति आयोग के सुझाव देश और उसके किसानों के हितों के खिलाफ हैं।
बीकेएस के महासचिव मोहिनी मोहन मिश्रा ने कहा, ‘अमेरिकी दबाव में भारतीय कृषि को जीएम उत्पादों के लिए खोलने से कृषि पर निर्भर लगभग 70 करोड़ भारतीय लोगों की आजीविका खतरे में पड़ सकती है।’ इन सुझावों का विरोध करने वाला बीकेएस अकेला नहीं था। उन क्षेत्रों ने भी नाराजगी जताई जो इन सुझावों से प्रभावित हो सकते थे। यह पत्र ऐसे समय में आया जब भारत अमेरिका के साथ व्यापार समझौते पर बातचीत कर रहा था। ऐसी खबरें आई थीं कि कुछ घरेलू उद्योग भी नीति आयोग के सुझावों से चिंतित थे।
सोयाबीन प्रसंस्करण उद्योग को लगता है कि आयातित अमेरिकी सोयाबीन को बंदरगाहों से अंदरूनी इलाकों में स्थित प्रसंस्करण उद्योग तक ले जाना व्यावहारिक नहीं है और आर्थिक दृष्टिकोण से ऐसा करना फायदेमंद नहीं होगा। 23 जून को भारतीय किसान यूनियन (गैर-राजनीतिक) के एक प्रतिनिधिमंडल ने नीति आयोग के वरिष्ठ अधिकारियों से मुलाकात की और कार्य पत्र पर अपनी आपत्ति और चिंता जताई।
किसान नेता राकेश टिकैत के मूल बीकेयू का हिस्सा इस यूनियन ने बाद में एक प्रेस विज्ञप्ति में दावा किया कि आयोग ने किसानों द्वारा दिए गए सुझावों को ध्यान में रखते हुए इस पत्र को वापस लेने का फैसला किया है। इसने नीति आयोग के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बीकेयू नेताओं की मुलाकात की एक तस्वीर भी सार्वजनिक की।
बाद में वरिष्ठ अधिकारियों ने भी बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि उक्त कार्य पत्र वापस ले लिया गया है और हितधारकों के साथ ‘व्यापक’ चर्चा के बाद ही इसे दोबारा जारी किया जाएगा।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने 30 जून को ही सोशल मीडिया एक्स पर दावा किया कि नीति आयोग ने भारत-अमेरिका कृषि व्यापार संबंधों पर कार्य पत्र वापस ले लिया था।