खुदरा मूल्य सूचकांक के उलट थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) आधारित महंगाई में उछाल नजर आ रही है। ईंधन और गैर-खाद्य विनिर्मित उत्पादों के मूल्य पर दबाव बढऩे से थोक महंगाई दिसंबर के 1.22 फीसदी से बढ़कर जनवरी में 2.03 फीसदी पर पहुंच गई। अर्थशास्त्रियों की नजर में ऐसा इसलिए हो रहा है कि मौजूदा चक्र में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक समिति के लिए दर में कटौती करने की और अधिक गुंजाइश नहीं है।
दूसरी तरफ उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित महंगाई दर घटकर 4.06 फीसदी के साथ 16 महीने के निचले स्तर पर पहुंच गई जो इस दौरान 4.59 फीसदी रही थी। शुरुआत से ही सीपीआई और डब्ल्यूपीआई महंगाई दरें विरोधाभासी रही हैं। गहरे विश्लेषण से पता चलता है कि दोनों में शामिल मदें कमोबेश अनुबद्घ रही हैं।
थोक मूल्य सूचकांक महंगाई इसलिए बढ़ी कि इसमें मुख्य तौर पर विनिर्मित मदें हैं जिसका भार 64.23 फीसदी है। इसके अलावा, ईंधन और बिजली का भार 13.15 फीसदी है। इन दोनों श्रेणियों ने महंगाई को बढ़ाया है या महंगाई घटने की दरों को कम किया है। प्रमुख महंगाई दर (यह प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों को छोड़कर विनिर्मित मदों से संबंधित होता है) जनवरी में 5.1 फीसदी पर पहुंच गई जो 27 महीने का उच्च स्तर है।
विनिर्मित उत्पादों की महंगाई दर दिसंबर के 4.24 फीसदी के मुकाबले बढ़कर जनवरी में 5.13 फीसदी हो गई। उदाहारण के लिए आधारभूत धातुओं में महंगाई दर इस दौरान 11.49 फीसदी से बढ़कर 14.46 फीसदी हो गई। इसी प्रकार हल्के स्टील और अद्र्घ तैयार स्टील की महंगाई 9.93 फीसदी से बढ़कर 10.7 फीसदी हो गई।
इसके साथ ही रबड़ और प्लास्टिक उत्पादों की कीमत वृद्घि की दर 4.62 फीसदी से बढ़कर 7.31 फीसदी पर पहुंच गई।
हालांकि, फार्मा और इससे जुड़े उत्पादों की महंगाई दर 2.58 फीसदी से घटकर 0.46 फीसदी रह गई। ऐसा कोविड का भय कम होने के कारण से हुआ है।
ईंधन और बिजली की बात करें तो तरलीकृत पेट्रोलियम गैस (एलपीजी) की महंगाई दर 2.15 फीसदी से बढ़कर 2.68 फीसदी हो गई। पेट्रोल और डीजल की अपस्फीति दर क्रमश: 12.94 फीसदी और 15.2 फीसदी से घटकर 10.29 फीसदी और 13.65 फीसदी हो गई।
थोक मूल्य सूचकांक में खाद्य मदों में दरें बढऩे के साथ महंगाई दर कम हो रही है। दर 1.11 फीसदी से बढ़कर 2.8 फीसदी हो गई। जनवरी में सब्जियों और अनाजों के दाम कम हो रहे थे। सीपीआई में भी खाद्य महंगाई पिछले महीने यानी दिसंबर के 3.41 फीसदी के मुकाबले घटकर महज 1.89 फीसदी रह गई।
इक्रा की प्रधान अर्थशास्त्री अदिति नायर ने अब उम्मीद जताई है कि 2020-21 में थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति दर का औसत 5 से 5.5 फीसदी रहेगी बशर्ते कि उपलब्ध टीके कोरोना वायरस के नए स्वरूपों के खिलाफ निष्प्रभावी साबित न हो जाएं और इससे जिंसों की कीमतें, उपभोक्ताओं का भरोसा व कारोबारी धारणा कमजोर न पड़ जाए। नायर ने कहा, ‘हम उम्मीद करते हैं कि सीपीआई मुद्रास्फीति दर जनवरी 2021 में अपने निचले स्तर से बाहर आ चुकी है और अगले दो नतीजों में इसमें खासी वृद्घि होने के आसार हैं। ऐसा होने और प्रमुख डब्ल्यूपीआई मुद्र्रास्फीति में अनुमानित मजबूती को देखते हुए हमारा यह विचार और पुख्ता होता है कि मौजूदा चक्र में दर में और कटौती की कोई गुंजाइश नहीं बची है।’
