राज्य और केंद्र दोनों ही स्तरों पर सरकारी पूंजीगत खर्च में कमी के कारण वित्त वर्ष 2025 की दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) में पूंजीगत निवेश में वृद्धि घटकर 5.4 प्रतिशत हो गई जो इससे पिछली तिमाही में 7.5 फीसदी थी। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा शुक्रवार को जारी आंकड़े से इस बात की जानकारी मिली।
सकल स्थिर पूंजी निर्माण (जीएफसीएफ) ने वित्त वर्ष 2025 की दूसरी तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 30.8 फीसदी का योगदान दिया जबकि पिछली तिमाही में यह 31.3 फीसदी था। जीएफसीएफ बुनियादी ढांचे में निवेश का प्रतिनिधित्व करता है। 30 प्रतिशत से अधिक की निवेश हिस्सेदारी को आर्थिक वृद्धि को बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।
महालेखा नियंत्रक (सीजीए) के आंकड़े के मुताबिक वित्त वर्ष 2025 की दूसरी तिमाही के अंत में केंद्र के पूंजीगत खर्च का इस्तेमाल 4.14 ट्रिलियन रुपये (37.3 फीसदी) था जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि के दौरान यह उपयोग 49 फीसदी (4.9 ट्रिलियन रुपये) थी।
केयर रेटिंग्स की मुख्य अर्थशास्त्री रजनी सिन्हा का कहना है कि निवेश में तेजी से कमी आई है क्योंकि वृद्धि को सहारा देने वाले सरकार के पूंजीगत व्यय में भी कमी देखी गई है और वित्त वर्ष 2025 की पहली छमाही में केंद्र के साथ-साथ राज्यों के कुल पूंजीगत व्यय में भी क्रमशः 15 प्रतिशत और 11 प्रतिशत की कमी आई है।
क्रिसिल के मुख्य अर्थशास्त्री डी के जोशी के विचार भी इसी तरह के हैं। उन्होंने कहा कि पिछले वित्त वर्ष की समान तिमाही में निवेश और विनिर्माण प्रमुख कारक थे जबकि इस वित्त वर्ष में इनकी वृद्धि कम रही क्योंकि इस वर्ष सरकारी पूंजीगत व्यय से समर्थन कमजोर रहने के कारण निवेश में तीव्र कमी देखी गई।। उन्होंने कहा, ‘निवेश वृद्धि के लिए निजी कॉरपोरेट क्षेत्र को सरकार से इसकी जिम्मेदारी लेने की जरूरत है क्योंकि सरकार अपने राजकोषीय घाटे को कम करने का प्रयास कर रही है।’
इसी तरह घरेलू खपत के तौर पर देखे जाने वाले निजी अंतिम उपभोग व्यय (पीएफसीई) में वृद्धि वित्त वर्ष 2025 की दूसरी तिमाही के दौरान घटकर 6 प्रतिशत तक हो गई जो वित्त वर्ष 2025 की पहली तिमाही के 7.4 प्रतिशत के सात तिमाही के उच्च स्तर से कम है। तिमाही के दौरान जीडीपी में पीएफसीई की हिस्सेदारी बढ़कर 62 प्रतिशत हो गई जो वित्त वर्ष 2025 की पहली तिमाही में 60.4 प्रतिशत थी।
जोशी ने कहा, ‘कुछ कंपनियों ने शहरी मांग में कमी की बात की है। वहीं दूसरी तरफ भारतीय रिजर्व बैंक की पिछली दर वृद्धि के असर से इस वित्त वर्ष में ऋण वृद्धि में बाधा आ रही है। इसके अलावा खाने-पीने की चीजों के महंगे होने के चलते गैर जरूरी चीजों पर किए जाने वाले खर्च पर भी असर पड़ रहा है।’
वहीं इंडिया रेटिंग्स के वरिष्ठ आर्थिक विश्लेषक पारस जसराय का कहना है कि अब तक खपत के मुख्य संकेतक यह संकेत देते हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में वास्तविक मजदूरी, दोपहिया वाहनों की बिक्री आदि में वृद्धि के साथ उपभोग वृद्धि में असमानता कुछ हद तक कम हो रही है।