सितंबर 2006 में केंद्र सरकार ने भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की सलाह पर सातारा (महाराष्ट्र) स्थित यूनाइटेड वेस्टर्न बैंक पर रोक लगा दी थी। इसको खरीदने के लिए कई दावेदार थे। इनमें भारत में कार्यरत दो बड़े विदेशी बैंक और एक पुराना निजी बैंक भी शामिल था, लेकिन आईडीबीआई बैंक विजेता रहा।अब परिदृश्य बिल्कुल अलग है। भारत में विदेशी बैंकों की भूमिका तेजी से बदल रही है और भारतीय बैंकों के प्रति विदेशी निवेशकों का नजरिया भी बदल रहा है। उनके प्रति बैंकिंग नियामक का नजरिया भी बदल रहा है।
मार्च 2025 तक भारत में 44 विदेशी बैंक और 34 प्रतिनिधि कार्यालय थे। विदेशी बैंकों की शाखाओं में गिरावट आई है। उदाहरण के लिए मार्च 2021 में 874 शाखाएं और 36 प्रतिनिधि कार्यालय थे। अगले वर्ष तक शाखाएं घटकर 861 और प्रतिनिधि कार्यालय 34 रह गए। मार्च 2023 में 782 शाखाएं और 33 प्रतिनिधि कार्यालय थे, और मार्च 2024 तक, शाखा नेटवर्क और घटकर 780 और प्रतिनिधि कार्यालय 31 रह गए।
पिछले शुक्रवार को फेडरल बैंक ने घोषणा की कि दुनिया की सबसे बड़ी वैकल्पिक परिसंपत्ति प्रबंधक कंपनी ब्लैकस्टोन अपनी सहयोगी कंपनी के माध्यम से कोच्चि स्थित बैंक में 6,197 करोड़ रुपये का निवेश करेगी। सौदा पक्का होने के बाद ब्लैकस्टोन के पास फेडरल बैंक में 9.99 फीसदी हिस्सेदारी होगी और उसे बैंक के बोर्ड में एक निदेशक को नामित करने का अधिकार होगा।
छह महीने पहले अप्रैल में अमेरिकी निजी इक्विटी फर्म वारबर्ग पिंकस एलएलसी और अबू धाबी इन्वेस्टमेंट अथॉरिटी (एडीआईए) ने आईडीएफसी फर्स्ट बैंक में प्रेफरेंशियल इक्विटी इश्यू के जरिये 7,500 करोड़ रुपये के निवेश की घोषणा की थी।
वारबर्ग पिंकस ने अपनी सहयोगी कंपनी करंट सी इन्वेस्टमेंट्स बीवी के माध्यम से 4,876 करोड़ रुपये और एडीआईए ने अपनी पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी प्लैटिनम इन्विक्टस बी 2025 आरएससी के माध्यम से 2,624 करोड़ रुपये का निवेश किया। करंट सी इन्वेस्टमेंट्स बीवी की अब आईडीएफसी फर्स्ट बैंक में 9.99 फीसदी और प्लैटिनम इन्विक्टस बी 2025 आरएससी की 5.1 फीसदी हिस्सेदारी है। इसके बाद, वारबर्ग पिंकस का बैंक के बोर्ड में एक निदेशक भी होगा।
ये भारतीय बैंकों के प्रति विदेशी निवेशकों के नए प्रेम के ताजा उदाहरण हैं। विदेशी बैंकों की कहानी में एक अलग ही मोड़ है। 19 अक्टूबर को एमिरेट्स एनबीडी बैंक (ईएनडीबी) और आरबीएल बैंक के बोर्ड ने एमिरेट्स बैंक द्वारा आरबीएल बैंक में नियंत्रक हिस्सेदारी हासिल करने के लिए 26,850 करोड़ रुपये के निवेश के साथ अंतिम समझौते को मंजूरी दे दी।
ईएनडीबी प्रेफरेंशियल इश्यू के जरिये आरबीएल बैंक में 60 फीसदी हिस्सेदारी खरीदना चाहता है । यह सौदा उसके शेयरधारकों, नियामकों और भारत सरकार की मंजूरी के अधीन है। चूंकि वह 60 फीसदी हिस्सेदारी हासिल करना चाहता है, इसलिए ईएनडीबी को बाजार नियामक के अधिग्रहण नियमों के अनुसार, आरबीएल बैंक के आम शेयरधारकों से 26 फीसदी तक हिस्सेदारी खरीदने के लिए एक अनिवार्य खुली पेशकश करनी होगी। ईएनबीडी और आरबीएल बैंक के निदेशक मंडल ने ईएनबीडी की भारतीय शाखाओं के आरबीएल बैंक में विलय को भी मंजूरी दे दी है। यदि मंजूरी मिल जाती है, तो अंततः आरबीएल, ईएनडीबी की स्थानीय रूप से निगमित सहायक कंपनी बन जाएगी।
आरबीआई के नियमों के अनुसार, ऐसी सहायक कंपनी के एमडी और सीईओ का निवासी भारतीय होना जरूरी है। हालांकि प्रमोटर बोर्ड में अधिकतम तीन नामित व्यक्ति रख सकता है, लेकिन अधिकांश निदेशक भारतीय मूल के होने चाहिए। इसके अलावा दो-तिहाई निदेशक गैर-कार्यकारी होने चाहिए तथा अध्यक्ष सहित एक-तिहाई स्वतंत्र निदेशक होने चाहिए।
स्थानीय बैंकों के विपरीत, ऐसी सहायक कंपनियों को बाजार में प्रवेश करने और स्टॉक एक्सचेंजों में सूचीबद्ध होने की आवश्यकता नहीं होती है। अगर वे ऐसा करना चाहती हैं, तो उन्हें पब्लिक इश्यू के माध्यम से 26 फीसद हिस्सेदारी बेचनी होगी।
पिछले महीने जापानी दिग्गज सूमीतोमो मित्सुई बैंकिंग कॉरपोरेशन (एसएमबीसी) ने येस बैंक में 24.22 फीसदी हिस्सेदारी हासिल की। शुरुआत में उसने भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) और कुछ अन्य ऋणदाताओं से शेयरों की द्वितीयक खरीद के माध्यम से येस बैंक में 20 फीसदी हिस्सेदारी हासिल की। एसएमबीसी को येस बैंक में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाकर 24.99 फीसदी करने के लिए आरबीआई से मंजूरी मिल गई है।
येस बैंक में 13.18 फीसदी हिस्सेदारी एसएमबीसी को 8,889 करोड़ रुपये में बेचने के बावजूद एसबीआई के पास अभी भी बैंक में लगभग 10 फीसदी हिस्सेदारी है। एसबीआई और सात निजी क्षेत्र के बैंकों ने, जिन्होंने मार्च 2020 में येस बैंक के पुनर्गठन के दौरान इसमें निवेश किया था, अपनी 20 फीसदी हिस्सेदारी एसएमबीसी को 13,482 करोड़ रुपये में बेच दी है।
आरबीएल बैंक और येस बैंक के सौदों में एक अंतर है। आरबीएल बैंक के मामले में, 26,850 करोड़ रुपये की नई धनराशि आएगी, जिससे उसकी पूंजी मजबूत होगी और उसकी बैलेंस शीट बढ़ने में मदद मिलेगी। येस बैंक का सौदा एक ‘ऑफर फॉर सेल’ था। यहां, पैसा बेचने वालों को मिला, बैंक को नहीं।
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, ईएनबीडी और कुछ अन्य कंपनियां आईडीबीआई बैंक में बहुलांश हिस्सेदारी खरीदने पर विचार कर रही थीं। सरकार ने अक्टूबर 2022 में आईडीबीआई बैंक के विनिवेश की प्रक्रिया शुरू की थी और संभावित खरीदारों से रुचि पत्र आमंत्रित किए थे। इसके बाद, जनवरी 2023 में संभावित खरीदारों से रुचि पत्र आमंत्रित किए गए।
बैंक में सरकार की 45.48 फीसदी और भारतीय जीवन बीमा निगम की 49.24 फीसदी हिस्सेदारी है, जिससे उनकी संयुक्त हिस्सेदारी 94.72 फीसदी हो जाती है। दोनों बैंक में 60.72 फीसदी हिस्सेदारी बेचने की योजना बना रहे हैं।
क्या स्थानीय बैंकों में विदेशी स्वामित्व को लेकर नियामक का रवैया बदल रहा है? अभी ऐसा कहना जल्दबाजी होगी। निजी बैंकों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की 74 फीसदी की सीमा बरकरार है, और 15 फीसदी की रणनीतिक एकल-निवेशक सीमा भी लागू है, जब तक कि छूट न दी जाए।
शायद जो बदलाव हो रहा है, वह यह है कि नियामक इस बात की समीक्षा करने को तैयार है कि क्या विदेशी बैंक और निवेशक कुछ बैंकों में ज्यादा हिस्सेदारी रख सकते हैं। इस हद तक, यह कदम इस क्षेत्र को खोलने की दिशा में है, लेकिन चुनिंदा तौर पर, नियामक जांच और विशेष मंजूरी के साथ। फिर भी यह एक स्वागत योग्य कदम है।