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BFSI Summit: वित्त वर्ष 2025-26 में वृद्धि दर 7 प्रतिशत से अधिक रहे तो मुझे आश्चर्य नहीं – सीईए अनंत नागेश्वरन

अनंत नागेश्वरन ने बीएफएसाई इनसाइट समिट में कहा कि भारत की अर्थव्यवस्था वित्त वर्ष 26 में वित्त मंत्रालय के अनुमान 6.8% के ऊपरी दायरे से अधिक भी बढ़ सकती है।

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ए के भट्टाचार्य   
Last Updated- October 29, 2025 | 11:16 PM IST

मुख्य आर्थिक सलाहकार अनंत नागेश्वरन (CEA Anantha Nageswaran) ने बिजनेस स्टैंडर्ड बीएफएसाई इनसाइट समिट 2025 में एके भट्टाचार्य के साथ बातचीत में कहा कि भारत की अर्थव्यवस्था वित्त वर्ष 26 में वित्त मंत्रालय के अनुमान 6.8 प्रतिशत के ऊपरी दायरे से अधिक भी बढ़ सकती है लेकिन मैं इस वित्त वर्ष में इसके 7 प्रतिशत से अधिक होने पर आश्चर्यचकित नहीं होऊंगा। नागेश्वरन ने बताया कि महंगाई और रुपया स्थिर है और राजकोषीय अनुशासन घाटे और उधार लागत को नियंत्रण में रखता है। पेश हैं, मुख्य अंश:

आर्थिक नजरिये पर

हमने कुछ महीने पहले ही अमेरिका के 50 प्रतिशत दंडात्मक शुल्क का सामना किया। हम में से कई लोग सोच रहे थे कि क्या चालू वित्त वर्ष में आर्थिक वृद्धि 6 प्रतिशत की सीमा की ओर जाएगी। उस समय यह चिंताजनक मुद्दा था। अब दो महीने बाद लोग सोच रहे हैं कि क्या वृद्धि दर 7 प्रतिशत या उससे अधिक होगी और हमने स्वयं अपने विकास पूर्वानुमान को संशोधित नहीं किया। हम स्वभाव से कुछ हद तक सतर्क रहते हैं। हमने 2025-26 के लिए वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि दर के दायरे की सीमा 6.3 से 6.8 प्रतिशत कर दी थी।

जब हमने पहली तिमाही के जीडीपी के आंकड़े प्रस्तुत किए तो हमने कहा कि अगस्त में दूसरी तिमाही के दो महीनों के आंकड़े देखने के बाद 7 प्रतिशत जीडीपी विकास दर की राह पर दिख रही है। इसलिए हमें लगता है कि इस वित्तीय वर्ष में हम अपनी 6.3 से 6.8 प्रतिशत की सीमा के ऊपरी दायरे में कहीं होंगे। यहां तक कि पूरे वित्तीय वर्ष के लिए 6.8 प्रतिशत से भी ऊपर हो सकते हैं। मुझे आश्चर्य नहीं होगा अगर पूरे वित्तीय वर्ष के लिए 7 प्रतिशत से भी ज्यादा आंकड़ा हो।

महंगाई, आपूर्ति-पक्ष में सुधार और संरचनात्मक परिवर्तन पर

अब हम में से अधिकांश लोग हाल ही में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (खुदरा मुद्रास्फीति) के आंकड़ों को देख रहे होंगे । वे सोच रहे होंगे कि यह खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति जैसे चक्रीय कारकों के कारण काफी हद तक 2 प्रतिशत से नीचे के निम्न स्तर पर आ गया है। हालांकि हम वास्तविक समय में होने वाले संरचनात्मक परिवर्तनों को समझने में बहुत अच्छे नहीं हैं।

राजकोषीय अनुशासन और पूंजी की लागत पर

सरकार का अर्थव्यवस्था में प्रमुख योगदान मांग प्रोत्साहन से परे कोविड के बाद राजकोषीय अनुशासन बनाए रखना रहा है। इससे मैक्रो स्थिरता बढ़ी है और पूंजी लागत कम हुई है।

नॉमिनल जीडीपी विकास के कम होने के बावजूद राजकोषीय घाटा 4.4 प्रतिशत (वित्त वर्ष 26 में जीडीपी का) तक पहुंचने की राह पर है। भारत की मुद्रास्फीति-लक्ष्यीकरण नीति ने मुद्रास्फीति के माध्यम से ऋण-से-जीडीपी को कम करने के बारे में चिंताओं को कम किया है। भारत सरकार ने स्थिर राजकोषीय प्रबंधन से 10 साल की उधार लागत को कम कर दिया है जो 6.5 प्रतिशत से 9.5 प्रतिशत थी। इसने निजी क्षेत्र की ब्याज दरों को भी कम कर दिया है। यह सबसे बड़ा राजकोषीय प्रोत्साहन है जो एक सरकार दे सकती है।

इसलिए कुल मिलाकर अस्थायी रूप से हम जिन अनिश्चितताओं का सामना कर रहे हैं, उनके बावजूद अर्थव्यवस्था उतना ही अच्छा प्रदर्शन कर रही है जितना वह कर सकती है और जितना हमने कुछ महीने पहले डर था उससे अर्थव्यवस्था बेहतर प्रदर्शन कर रही है। यह एक अच्छी बात है, क्योंकि वृद्धि स्पष्ट रूप से सबसे महत्त्वपूर्ण आवश्यक शर्त है जिस पर राजकोषीय राजस्व या कल्याणकारी भुगतान और कई अन्य मानदंड निर्भर करते हैं।

नियमन में ढील व सरल अनुपालन

केंद्र सरकार और राज्य सरकारें नियमन को आसान बनाने की दिशा में निवेश कर रही हैं। विनियमन में ढील के लिए राज्य स्तर पर एक कार्यबल बनाया गया है और पूर्व कैबिनेट सचिव के नेतृत्व में एक उच्च स्तरीय समिति भी बनाई गई है। देश का निजी क्षेत्र भी जनता पर अपने नियम थोपने में पीछे नहीं है। ये दिखाता है कि हमारे समाज में लोगों को एक-दूसरे पर कम भरोसा है। कागजी कार्रवाई और अनुपालन के बोझ को कम करने के लिए सरकार और निजी क्षेत्र, दोनों को मिलकर काम करना होगा। साथ ही लोगों को एक-दूसरे पर अधिक भरोसा करना होगा।

डिजिटल मुद्रा व डिजिटल धोखाधड़ी

डिजिटल मुद्रा बैंकों के लिए एक और चुनौती बन सकते हैं क्योंकि वे मध्यस्थ की तरह काम कर सकते हैं और लोगों को अपनी तरफ जमा आकर्षित कर सकते हैं। डिजिटल गिरफ्तारी और धोखाधड़ी में अक्सर बुजुर्ग लोग अपनी मेहनत की कमाई गंवा देते हैं और बैंकों को ऐसे मामलों को गंभीरता से लेना चाहिए। बैंकों का यह उत्तरदायित्व है और बैंकों को डिजिटल धोखाधड़ी को बहुत गंभीरता से लेना होगा। अगर बैंक ऐसा नहीं करते हैं तब लोगों में बैंकों से जमाएं निकालने की प्रवृत्ति बढ़ेगी और वे घर में ही पैसा रखने लगेंगे। इससे नकदी का चलन ज्यादा बढ़ जाएगा और बैंकों का काम कम हो जाएगा। इसलिए, बैंकिंग समुदाय को डिजिटल धोखाधड़ी को गंभीरता से लेना होगा क्योंकि इससे बैंकिंग का आधार कमजोर हो सकता है।

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डिजिटलीकरण व एआई की चुनौती

भारत में डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचा (डीपीआई) के सफल होने के बावजूद बैंक डिजिटल उपकरणों का इस्तेमाल करने में हिचकिचा रहे हैं। चाहे वो अकाउंट एग्रीगेटर हो, नकदी पर आधारित ऋण हो या डिजिलॉकर दस्तावेजों का इस्तेमाल हो। पिछले पांच सालों में भारतीय अर्थव्यवस्था को संगठित करना एक बड़ी सफलता रही है। इसलिए, मुझे लगता है कि वित्तीय संस्थानों को ये समझना जरूरी है कि अगले 25 सालों में दुनिया कैसी होने वाली है। इस बात के सबूत नहीं हैं कि एआई (आर्टिफिशिल इंटेलिजेंस) उतना काम कर रहा है जितना वो करने का दावा करता है, जो एक तरह से अच्छी बात है क्योंकि अगर ये अपनी क्षमता के अनुसार काम नहीं कर रहा है, तब ये इंसानों की जगह भी नहीं ले पाएगा। हालांकि, कुछ क्षेत्रों जैसे शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा में हमें एआई का इस्तेमाल दूर-दराज के इलाकों तक पहुंचने के लिए करना चाहिए। वहीं दूसरी जगहों पर हमें सावधानी बरतनी चाहिए और ये सुनिश्चित करना चाहिए कि एआई से होने वाले फायदे सभी को समान रूप से मिलें। ऐसे में यह नीति बनाने और निजी क्षेत्र की चेतना से जुड़ा सवाल है और दोनों को मिलकर काम करना होगा।

First Published : October 29, 2025 | 11:10 PM IST