वित्त मंत्रालय के वित्तीय सेवा विभाग के सचिव एम. नागराजू
भारत के बैंकिंग, वित्तीय सेवाओं और बीमा क्षेत्र (बीएफएसआई) हाल के वर्षों में अपने आकार, मुनाफा और बैलेंसशीट की मजबूती में तेज बढ़ोतरी के साथ एक महत्वपूर्ण मोड़ पर है। हाल में वैश्विक अर्थव्यवस्था में उतार-चढ़ाव और वृहद आर्थिक मोर्चे पर अस्थिरता ने भारत के बढ़ते बीएफएसआई तंत्र के सामने एक नई चुनौती खड़ी कर दी है। वित्त मंत्रालय के वित्तीय सेवा विभाग के सचिव एम. नागराजू ने बिज़नेस स्टैंडर्ड बीएफएसआई इनसाइट समिट के 2025 के संस्करण में शिरकत की और ए के भट्टाचार्य के साथ खास बातचीत में देश के बीएफएसआई क्षेत्र की विभिन्न श्रेणियों के सामने आने वाली चुनौतियों और मौके पर चर्चा की
डॉलर पर निर्भरता कम करने जैसी उभरती चुनौतियों के बीच, अनिश्चितताओं का सामना कर रही दुनिया में भारत का वित्तीय क्षेत्र कैसा प्रदर्शन कर रहा है?
भारत का वित्तीय सेवा क्षेत्र देश के इतिहास में सबसे बड़ा और सबसे मजबूत है। पिछले साल सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने अब तक का सबसे अधिक मुनाफा कमाया और शेयरधारकों को उनका लाभांश भुगतान भी रिकॉर्ड ऊंचाई पर था जिनमें अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक भी शामिल हैं। बीएफएसआई क्षेत्र की वित्तीय मजबूती, प्रावधान कवरेज अनुपात (पीसीआर) में भी दिखती है जो वर्ष 2014-15 में 48-49 फीसदी की तुलना में अब 94 फीसदी से अधिक है।
हाल के वर्षों में सरकारी बैंकों की माली हालत सुधरना भारत के वित्तीय क्षेत्र की बड़ी बात है। अब ये बैंक बाकी सभी बैंकों, वित्तीय सेवा और बीमा कंपनियों के लिए मिसाल बन गए हैं। सरकार ने इसके लिए कई नियम बदले और काम करने के तरीके में सुधार किया जिसका असर अब दिख रहा है। सरकारी बैंकों की सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां कुछ ही साल पहले दोहरे अंकों में होने के बावजूद, अब घटकर उनकी कुल परिसंपत्तियों का केवल 2.2 फीसदी रह गया है। इसी तरह, सरकारी बैंकों का शुद्ध एनपीए घटकर लगभग 0.52 फीसदी हो गया है, जो अब तक के सबसे निचले स्तरों में से एक है।
आप भारतीय अर्थव्यवस्था के हाल के प्रदर्शन को कैसेदेखते हैं?
वैश्विक वृहद अर्थव्यवस्था में बढ़ती अनिश्चितता के बावजूद, भारतीय अर्थव्यवस्था का प्रदर्शन अच्छा है। हम वैश्विक अर्थव्यवस्था में सबसे बेहतर जगहों में से एक हैं, जहां सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 6.5 से 6.6 प्रतिशत की स्थिर गति से बढ़ रहा है। हमारे बाहरी मोर्चे में भी मजबूती बनी हुई है और देश से बड़े पैमाने पर पूंजी भी नहीं निकली है।
भारतीय अर्थव्यवस्था के बढ़ते लचीलेपन में निजी क्षेत्र ने भी अहम भूमिका निभाई है। निजी क्षेत्र की बैलेंस शीट पहले से कहीं ज्यादा मजबूत है। संभव है कि कंपनियों के मालिक अमीर हों और उनके पास आपसे और मुझसे अधिक पैसा हो, लेकिन आखिर में इसे देश की सफलता ही कहा जाएगा। वैश्विक वित्तीय अस्थिरता का भारतीय अर्थव्यवस्था पर अधिक प्रभाव नहीं पड़ेगा, क्योंकि हम एक स्थिर और सुसंगत नीतिगत माहौल बनाए रखते हैं।
आपके अनुसार, इस समय भारतीय बैंकिंग क्षेत्र के सामने प्रमुख चुनौतियां क्या हैं?
हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि अभी जो मजबूती और स्थिरता दिख रही है उससे बैंकों को ऋण देने में लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए। हमें सबसे पहले उन संस्थानों को संरक्षित करना होगा जिन्हें हमने बनाया है और फिर उनका विस्तार करने का प्रयास करना चाहिए। यह पहला बुनियादी सिद्धांत है। दूसरी चुनौती है अर्थव्यवस्था के प्रमुख क्षेत्रों, विशेष रूप से कृषि और सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) के लिए ऋण बढ़ाने की कोशिश करना। कुछ निजी क्षेत्र के बैंकों ने एमएसएमई को ऋण देकर बेहतर प्रदर्शन किया है और सरकारी बैंकों ने पिछले कुछ वर्षों में एमएसएमई को ऋण देने की शुरुआत की है लेकिन बैंकों को इसमें और सुधार करना होगा। तीसरी चुनौती शिक्षा ऋणों के वितरण को और बढ़ाना है। छात्रों को ऋण लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए ताकि वे आर्थिक रूप से जिम्मेदार बनें।
अगली बड़ी प्राथमिकता सार्वजनिक शिकायतें होनी चाहिए। बैंक की शाखाओं में आने वाले ग्राहकों और ऑनलाइन सेवाएं लेने वाले ग्राहकों के साथ सम्मान के साथ व्यवहार किया जाना चाहिए और उन्हें वह सेवा मिलनी चाहिए जिसके वे हकदार हैं। बैंक शाखा आने वाले ग्राहकों में बदलाव आ रहा है। अब बैंक शाखा आने वाले ग्राहकों में वरिष्ठ नागरिक, महिलाएं और कम पढ़े-लिखे ग्राहक भी शामिल हैं जिन्हें बैंकों को विश्व स्तरीय सेवाएं मुहैया करानी चाहिए। मौजूदा परिप्रेक्ष्य में महत्वपूर्ण मुद्दा साइबर सुरक्षा का है, जिसके लिए बैंकों को देश से बाहर और घरेलू स्तर पर, दोनों तरह के हमलों से बचाव के लिए पर्याप्त तरीके से सोचना होगा और संसाधनों का निवेश करने की आवश्यकता होगी।
ऐसी धारणा है कि सरकारी बैंकों एकीकरण की गति धीमी हो गई है। क्या सरकार एकीकरण पर पुनर्विचार कर रही है?
वर्ष 2020 में किया गया एकीकरण बहुत सफल रहा है और एक मामले को छोड़कर सभी लक्ष्य पूरे हुए। सरकार इस सवाल पर ध्यान देती है और हमें सरकारी बैंकों में एकीकरण के एक नए दौर के लिए सुझाव और नए विचार मिलते रहते हैं। जब भी सरकार आगे के एकीकरण के लिए निर्णय को अंतिम रूप देगी, बिज़नेस स्टैंडर्ड को सबसे पहले इसकी जानकारी मिलेगी।
आपको क्यों लगता है कि तंत्र में और अधिक बैंक नहीं हैं? आपका आकलन क्या है?
वर्ष 2047 तक विकसित भारत, जहां प्रति व्यक्ति आय 18,000 डॉलर से 20,000 डॉलर होगी इसके लक्ष्य को हासिल करने के लिए,अर्थव्यवस्था की विविध ऋण आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अधिक बैंकों मसलन बड़े बैंकों, मझोले बैंकों, छोटे बैंकों की जरूरत होगी। भारत में गैर-वित्तीय क्षेत्र के आकार के मुकाबले बैंक ऋण का अनुपात दुनिया में सबसे कम है। हमें विभिन्न क्षेत्रों की विशेष आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए विशेषज्ञ बैंकों की भी आवश्यकता है।
सरकारी बैंकों के प्रबंधन को सुधारने पर सरकार का क्या नजरिया है?
सरकारी बैंकों का अच्छा प्रदर्शन इसलिए है क्योंकि अब प्रबंधकों की चयन प्रक्रिया बेहतर है। बैंकों के बड़े अफसर अब अपनी काबिलियत और पहले किए गए काम के आधार पर चुने जाते हैं। कोई भी बैंक का सीईओ या चेयरमैन ये नहीं कह सकता कि हम उनके लिए फैसला करते हैं। एक बाहरी एजेंसी होती है जो उम्मीदवारों का मूल्यांकन करती है। इसके आधार पर फिर एक कमेटी (एफएसआईबी) सबसे अच्छे पेशेवरों को उनके रिकॉर्ड के आधार पर चुनती है।