सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकिंग (PSB) क्षेत्र में और ज्यादा मजबूत स्थिति की तरफदारी करते हुए पीएसबी के प्रमुख अधिकारियों ने कहा कि वैश्विक स्तर पर शीर्ष 20 बैंकों में कम से कम दो भारतीय बैंकिंग इकाई होनी चाहिए। देश की बढ़ती जरूरतों की नजर साल 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने के लक्ष्य पर है। इसके लिए कई बड़े आकार के बैंकों का होना जरूरी हो जाता है।
सहज पूंजी आधार, परिसंपत्ति की दमदार गुणवत्ता और परिचालन की बेहतर गुणवत्ता से चिह्नित बेहतर प्रोफाइल वाले सरकार द्वारा संचालित बैंक आगे और स्थिति और मजबूत करने में शामिल होने के लिहाज से सबसे अच्छी स्थिति में हैं। साल 2020 में कोविड महामारी के बीच पीएसबी क्षेत्र में काफी प्रभावी रूप से स्थिति मजबूत होने के कारण बैंक इस क्षेत्र में विलय और एकीकरण की प्रक्रिया को प्रबंधित करने के लिए अधिक आश्वस्त हैं। बैंकरों ने ‘क्या भारत को बड़े बैंकों की जरूरत है?’ विषय पर आयोजित सत्र में यह जानकारी दी।
देश के सबसे बड़े ऋणदाता – भारतीय स्टेट बैंक (SBI) के प्रबंध निदेशक अश्विनी तिवारी ने कहा, ‘पीएसबी समेकन के लिए सरकार को फैसला लेना है। बड़े बैंकों का मामला है। ऐसे विशिष्ट बैंक हो सकते हैं जो क्षेत्र या समुदाय पर केंद्रित हों। भारत के पास वैश्विक स्तर पर शीर्ष 20 में कम से कम दो बैंक होने चाहिए।’
बड़े बैंकों के लिए एसबीआई के तर्क का समर्थन करते हुए यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्य अधिकारी आशीष पांडे ने कहा कि बैंकों को बड़ी परियोजनाओं को अंडरराइट करने के लिए मजबूत बैलेंस शीट की जरूरत होती है। इसके साथ ही डी-डॉलराइजेशन (डॉलर का कम इस्तेमाल करना) के रुख से बड़े बैंकों की जरूरत बढ़ेगी।’ उन्होंने आगे कि पहले बैंक 800 से 1,500 करोड़ रुपये के ऋण वाली परियोजनाओं के साथ सौदे करते थे और अब वे 8,000 से 15,000 करोड़ रुपये की परियोजनों को अंडरराइट कर रहे हैं।
बड़े बैंकों की जरूरत पर टिप्प्णी करते हुए पैनल में शामिल बैंक ऑफ इंडिया के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्य अधिकारी, रजनीश कर्नाटक ने कहा कि देश की जनसांख्यिकी अलग है, जिसमें ग्रामीण और कस्बाई इलाके शामिल हैं। उन्होंने कहा कि कुल कारोबार, बाजार पूंजीकरण और परिसंपित्त के आकार के लिहाज से वैश्विक स्तर पर शीर्ष 100 में कम से कम 3 से 4 बड़े बैंक होने चाहिए।
बैंक ऑफ बड़ौदा के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्य अधिकारी डी चंद के अनुसार बड़े बैंकों की जरूरत इसलिए भी है क्योंकि उनमें अंडरराइट करने, तकनीक में निवेश करने और शाखाओं के नेटवर्क तथा संसाधनों को सुव्यवस्थित करने की क्षमता होती है। समेकन की पहली लहर पिछले दशक के बीच में आई थी जब एसबीआई की संबंधित बैंकिंग इकाइयों का मूल कंपनी में विलय हो गया। बाद में साल 2019 में बैंक ऑफ बड़ौदा ने विजया बैंक और देना बैंक को अपने साथ मिला लिया। इसके बाद साल 2020 में बड़े स्तर पर एकीकरण हुआ।
बैंकरों ने बताया कि भारतीय अर्थव्यवस्था को एक लाख करोड़ डॉलर के स्तर तक पहुंचने में 65 साल लगे। एक लाख करोड़ से दो लाख करोड़ तक पहुंचने में सात साल और लगे तथा दो लाख करोड़ से तीन लाख करोड़ तक पहुंचने में केवल दो साल लगे।