मौद्रिक नीति समिति की बाहरी सदस्य आशिमा गोयल ने जून और अगस्त, दोनों समीक्षा बैठकों में दर में कटौती के पक्ष में मत दिया। मनोजित साहा से बातचीत में उन्होंने कहा कि मुख्य महंगाई (कोर इन्फ्लेशन) दर में व्यापक रूप से किसी वृद्धि की आशंका नहीं लगती और शहरी खपत कम हो रही है। प्रमुख अंश…
मौद्रिक नीति समिति की बैठक के ब्योरे में आपने अमेरिकी फेडरल रिजर्व का हवाला देते हुए कहा कि ‘मौद्रिक नीति देरी से असर दिखाती है, ऐसे में कटौती के पहले वे महंगाई दर को लक्ष्य तक पहुंचने तक का इंतजार नहीं कर सकते।’ एमपीसी के बहुसंख्य सदस्य चाहते थे कि नीतिगत रीपो दर में कटौती करने के पहले महंगाई दर लक्ष्य के करीब आए- जो नुकसानदेह हो सकता है?
वे आश्वस्त होना चाहते थे कि यह मजबूती के साथ लक्ष्य के पास हो। रिजर्व बैंक अर्थव्यवस्था का एक स्तंभ है और व्यापक आर्थिक स्थिरता को लेकर हमें इसके लिए आभारी होना चाहिए। लेकिन जबसे मैंने साल 2011 में तकनीकी सलाहकार समिति में पदभार संभाला, मैंने देखा है कि स्टाफ को यह डर होता है कि पुरानी समस्याएं उठ खड़ी होंगी। अगर महंगाई दर कम भी रहती है तो वे चिंतित होते हैं कि यह फिर बढ़ सकती है। लेकिन भारत में महंगाई दर घटने की ओर है और जिंसों के दाम के झटके कम प्रभावी हैं। अगर कटौती की उपलब्ध गुंजाइश का इस्तेमाल नहीं होता है तो वृद्धि प्रभावित होगी।
फर्में व परिवार ज्यादा संभावित ब्याज दरों के आधार पर फैसले करेंगे और इससे अगले साल निवेश व खपत कम होगी। हाल के नील्सन और कैंटर सर्वे में कहा गया है कि शहरी खपत घट रही है। इस साल वृद्धि पिछले साल से 1 फीसदी कम रहने की संभावना है। चुनाव के बाद की वृद्धि अपनी गति गंवा सकती है।
मुझे नहीं लगता कि मुख्य महंगाई में कोई व्यापक बढ़ोतरी होगी, जो सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई है। सर्वे के मुताबिक शहरी खपत कम हो रही है और जिंसों के दाम भी घट रहे हैं। वास्तविक ब्याज दरें सकल मांग पर असर डालेंगी।
समिति अच्छे से काम कर रही है। रिजर्व बैंक के विभागों ने आंकड़ों को अपडेट करने और विश्लेषण की दिशा में शानदार काम किया, जो समिति को उपलब्ध हुए। यह जरूरी है कि स्वतंत्र फैसला करने के पहले सदस्य सभी विचारों को सावधानीपूर्वक सुनें। मैं यह देखना पसंद करती कि कभी-कभी रिजर्व बैंक के स्टाफ एमपीसी सदस्य भी असहमति व्यक्त करें।
समग्र महंगाई (हेडलाइन इंफ्लेशन) दर लक्ष्य बनी रहनी चाहिए, क्योंकि यह उपभोक्ताओं से जुड़ा मसला है। यह मूल्य निर्धारण करने वाली फर्मों व नियामकों के लिए भी मानक बन सकता है।