facebookmetapixel
Sudeep Pharma IPO: ग्रे मार्केट में धमाल मचा रहा फार्मा कंपनी का आईपीओ, क्या निवेश करना सही रहेगा?Smart Beta Funds: क्या स्मार्ट-बीटा में पैसा लगाना अभी सही है? एक्सपर्ट्स ने दिया सीधा जवाबपीएम-किसान की 21वीं किस्त जारी! लेकिन कई किसानों के खाते खाली – आखिर वजह क्या है?Gold and Silver Price Today: सोना और चांदी की कीमतों में गिरावट, MCX पर दोनों के भाव फिसलेक्रिप्टो पर RBI की बड़ी चेतावनी! लेकिन UPI को मिल रही है हाई-स्पीड ग्रीन सिग्नलभारत और पाकिस्तान को 350% टैरिफ लगाने की धमकी दी थी: ट्रंपजी20 विकासशील देशों के मुद्दे आगे बढ़ाएगा: भारत का बयानडेवलपर्स की जान में जान! SC ने रोक हटाई, रुके हुए प्रोजेक्ट फिर पटरी परनीतीश कुमार 10वीं बार मुख्यमंत्री, नई मंत्रिपरिषद में बड़े सरप्राइजराष्ट्रपति के लिए तय नहीं कर सकते समयसीमा: सुप्रीम कोर्ट

Interview: RBI के स्टाफ सदस्य भी कभी-कभी जताएं असहमति, MPC मेंबर आशिमा गोयल ने कहा- घटेगी महंगाई

'सर्वे के मुताबिक शहरी खपत कम हो रही है और जिंसों के दाम भी घट रहे हैं। वास्तविक ब्याज दरें सकल मांग पर असर डालेंगी।'

Last Updated- August 25, 2024 | 10:56 PM IST
वास्तविक रीपो दर बहुत ज्यादा होने पर प्रभावित हो सकती है मांग और आपूर्ति, If the real repo rate is too high, demand and supply may be affected

मौद्रिक नीति समिति की बाहरी सदस्य आशिमा गोयल ने जून और अगस्त, दोनों समीक्षा बैठकों में दर में कटौती के पक्ष में मत दिया। मनोजित साहा से बातचीत में उन्होंने कहा कि मुख्य महंगाई (कोर इन्फ्लेशन) दर में व्यापक रूप से किसी वृद्धि की आशंका नहीं लगती और शहरी खपत कम हो रही है। प्रमुख अंश…

मौद्रिक नीति समिति की बैठक के ब्योरे में आपने अमेरिकी फेडरल रिजर्व का हवाला देते हुए कहा कि ‘मौद्रिक नीति देरी से असर दिखाती है, ऐसे में कटौती के पहले वे महंगाई दर को लक्ष्य तक पहुंचने तक का इंतजार नहीं कर सकते।’ एमपीसी के बहुसंख्य सदस्य चाहते थे कि नीतिगत रीपो दर में कटौती करने के पहले महंगाई दर लक्ष्य के करीब आए- जो नुकसानदेह हो सकता है?

वे आश्वस्त होना चाहते थे कि यह मजबूती के साथ लक्ष्य के पास हो। रिजर्व बैंक अर्थव्यवस्था का एक स्तंभ है और व्यापक आर्थिक स्थिरता को लेकर हमें इसके लिए आभारी होना चाहिए। लेकिन जबसे मैंने साल 2011 में तकनीकी सलाहकार समिति में पदभार संभाला, मैंने देखा है कि स्टाफ को यह डर होता है कि पुरानी समस्याएं उठ खड़ी होंगी। अगर महंगाई दर कम भी रहती है तो वे चिंतित होते हैं कि यह फिर बढ़ सकती है। लेकिन भारत में महंगाई दर घटने की ओर है और जिंसों के दाम के झटके कम प्रभावी हैं। अगर कटौती की उपलब्ध गुंजाइश का इस्तेमाल नहीं होता है तो वृद्धि प्रभावित होगी।

आपके अनुमान से अगर समिति नीतिगत दर में कटौती के लिए इस वित्त वर्ष के अंत तक इंतजार करती है तो वृद्धि पर कितना असर होगा?

फर्में व परिवार ज्यादा संभावित ब्याज दरों के आधार पर फैसले करेंगे और इससे अगले साल निवेश व खपत कम होगी। हाल के नील्सन और कैंटर सर्वे में कहा गया है कि शहरी खपत घट रही है। इस साल वृद्धि पिछले साल से 1 फीसदी कम रहने की संभावना है। चुनाव के बाद की वृद्धि अपनी गति गंवा सकती है।

क्या आपको लगता है कि निचले स्तर पर पहुंची मुख्य महंगाई दर आने वाले महीनों में बढ़ सकती है? क्या आप मांग की ओर से दबाव बढ़ता देख रही हैं?

मुझे नहीं लगता कि मुख्य महंगाई में कोई व्यापक बढ़ोतरी होगी, जो सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई है। सर्वे के मुताबिक शहरी खपत कम हो रही है और जिंसों के दाम भी घट रहे हैं। वास्तविक ब्याज दरें सकल मांग पर असर डालेंगी।

अगस्त में आपकी आखिरी एमपीसी बैठक थी। मौद्रिक नीति समिति के कामकाज में सुधार को लेकर आपके क्या सुझाव हैं?

समिति अच्छे से काम कर रही है। रिजर्व बैंक के विभागों ने आंकड़ों को अपडेट करने और विश्लेषण की दिशा में शानदार काम किया, जो समिति को उपलब्ध हुए। यह जरूरी है कि स्वतंत्र फैसला करने के पहले सदस्य सभी विचारों को सावधानीपूर्वक सुनें। मैं यह देखना पसंद करती कि कभी-कभी रिजर्व बैंक के स्टाफ एमपीसी सदस्य भी असहमति व्यक्त करें।

मौजूदा लचीला महंगाई दर का ढांचा 31 मार्च 2026 तक लागू है। ढांचे में सुधार को लेकर आपका क्या सुझाव होगा?

समग्र महंगाई (हेडलाइन इंफ्लेशन) दर लक्ष्य बनी रहनी चाहिए, क्योंकि यह उपभोक्ताओं से जुड़ा मसला है। यह मूल्य निर्धारण करने वाली फर्मों व नियामकों के लिए भी मानक बन सकता है।

First Published - August 25, 2024 | 10:18 PM IST

संबंधित पोस्ट