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सारे सूरमा हारे, महंगाई तो अब भी मारे कुलांचे!

Last Updated- December 06, 2022 | 12:01 AM IST

पिछले चंद महीनों से पूरा सरकारी अमला समूची ताकत झोंककर महंगाई दर के बेकाबू घोड़े पर लगाम कसने में लगा हुआ है, मगर यह काबू में आने का नाम ही नहीं ले रहा।


हालत यह है कि महंगाई दर एक बार फिर 12 अप्रैल को समाप्त सप्ताह में कुलांचे मारकर तीन साल के सर्वोच्च स्तर 7.33 फीसदी पर पहुंच गई। इसके पिछले सप्ताह में यह 7.14 फीसदी थी जबकि पिछले महीने यह 40 महीने के उच्चतम स्तर 7. 41 फीसदी तक पहुंच गई थी।


उस वक्त घबराई सरकार ने कीमतों में कमी लाने के लिए कई कड़े कदमों की घोषणा भी की थी, जिसके बाद ऐसा लगने लगा था कि यह काबू में आ जाएगी।


खाद्यान्न की कमी का माहौल पैदा
करना सही नहीं है। इससे जमाखोरों और सटोरियों के हौसले बुलंद होंगे। राजनीतिक दलों को दहशत फैलाने वालों में शामिल नहीं होना चाहिए।
मनमोहन सिंह, प्रधानमंत्री


कीमतें घटानी चाहिए (स्टील कंपनियों को)। अगर वे ऐसा नहीं करती हैं, तो सरकार वह करेगी जो उसे करना चाहिए। हमारा लक्ष्य महंगाई दर को पांच फीसदी से नीचे लाना है।
कमलनाथ, वाणिज्य मंत्री


सरकार की ओर से महंगाई पर अंकुश के लिए कई प्रशासनिक कदम उठाए गए हैं और जरूरत पड़ने पर आगे भी कदम उठाए जा सकते हैं। लोगों को धैर्य रखना होगा।
पी. चिदंबरम, वित्त मंत्री


सीमेंट के निर्यात पर प्रतिबंध लगने से सीमेंट की कीमतों में स्थिरता आएगी, साथ ही सरकार गोलबंदी की जांच के लिए उचित कदम उठाएगी।
अश्विनी कुमार, उद्योग राज्यमंत्री


किसने दिखाया सरकार को ठेंगा


खनिज पदार्थ (लौह अयस्क, जिंक, बॉक्साइट आदि) – 5.8 फीसदी की जबरदस्त उछाल
प्राथमिक पदार्थ (खाद्य एवं अखाद्य वस्तुएं) – 0.5 फीसदी बढ़े
अंडा, मीट, मछली – 0.7 फीसदी ऊंची हुई कीमतें
फल  – 0.4 फीसदी बढ़े


कौन डरा सरकारी चाबुक से


खाद्य तेल  – 1.6 फीसदी की गिरावट
दाल – 1.1 फीसदी की गिरावट


कितनी  है महंगाई दर की रफ्तार
पिछले चार महीनों के भीतर महंगाई दर अब तक लगभग दोगुनी रफ्तार पकड़ चुकी है।


क्या उठे कदम और क्यों


सीआरआर 7.5 फीसदी से बढ़ाकर सात साल के सर्वोच्च स्तर यानी आठ फीसदी पर पहुंचाने की घोषणा। इसके तहत केंद्रीय बैंक का इरादा बाजार से नकदी की कमी करने का है।


कुछ आवश्यक जिंसों (चावल, खाद्य तेल), स्टील-सीमेंट जैसी चीजों के निर्यात को बंद करने या कठोर करने और आयात को लचीला बनाने या शुल्क से छूट देने जैसे कदम। इसके पीछे सरकार का मकसद इन वस्तुओं की देश में पर्याप्त सप्लाई सुनिश्चित करने का था।


स्टील कंपनियों पर गुटबंदी करके कीमतें बढ़ाने के आरोप के मद्देनजर खुद प्रधानमंत्री समेत पूरा सरकारी अमला इस बाबत कड़ी कार्रवाई की चेतावनी दे चुका है। बढती महंगाई दर के लिए स्टील और सीमेंट आदि जैसे कच्चे माल की कीमतों में हो रहे जबरदस्त इजाफे को ही प्रमुख तौर पर जिम्मेदार माना जा रहा है।


कई राज्यों में हुई जमाखोरों और मुनाफाखोरों पर कड़ी कार्रवाई की जोरदार कवायद जारी है।


क्या हो सकता है आगे


अनुमान है कि महंगाई दर की यह ताजा रफ्तार भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को 29 अप्रैल को पेश होने वाली अपनी सालाना ऋण नीति में बाजार में नकदी की सप्लाई पर और अंकुश लगाने के लिए मजबूर कर देगी। आरबीआई नकदी सप्लाई पर नियंत्रण के लिए नकद आरक्षी अनुपात (सीआरआर) में पहले ही 0. 5 फीसदी की बढ़ोतरी कर चुका है।


सरकार भी संकेत दे चुकी है कि आवश्यक वस्तुओं की सप्लाई सुनिश्चित कराने के आयात-निर्यात समेत कई और कड़े कदम उठाए जा सकते हैं। इसके अलावा, महंगाई के लिए निशाने पर आ चुके वायदा बाजार को भी लेकर बहस का बाजार गर्म है।


इक हम ही नहीं परेशां…


खाद्यान्न और ऊर्जा की कीमतों में लगी आग सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया के कई देशों में फैली हुई है। सिंगापुर में कीमतों का ग्राफ 26 साल के सर्वोच्च स्तर पर है तो जापान में 10 साल के सबसे ऊंचे स्तर पर। वियतनाम में कीमतें 1992 के बाद  सबसे ज्यादा स्तर पर आ चुकी हैं। यूरोप के 15 देशों में महंगाई 16 साल के सर्वोच्च स्तर पर है। ऑस्ट्रेलिया इसकी मार से बेहाल है। चीन में भी यह आठ फीसदी के स्तर पर आ गई है।


क्यों है पूरी दुनिया पर महंगाई की मार


दक्षिण एशिया में जहां कच्चा तेल महंगाई बढ़ाने के लिए प्रमुख कारक है, वहीं इस क्षेत्र से बाहर के कई देशों में बढ़ती महंगाई खाद्यान्न उत्पादन में कमी के कारण है।


क्यों है दक्षिण एशिया प्रमुख शिकार


कच्चे तेल की कीमतें रिकॉर्ड स्तर पर हैं। ये दक्षिण एशिया के देशों में महंगाई बढने के लिए प्रमुख तौर पर जिम्मेदार हैं। ये सभी देश जरूरी कच्चे तेल का तीन चौथाई से ज्यादा भाग अंतरराष्ट्रीय बाजार से खरीदते हैं।

First Published - April 26, 2008 | 12:32 AM IST

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