चालू खाते के असंतुलन के मामले में भारत का प्रदर्शन कई अन्य उभरते बाजार की तुलना में खराब रहा है। व्यापार व अन्य साधनों से किसी देश से बाहर जाने वाले धन और इस तरह के माध्यमों से आने वाले धन से चालू खाते का संतुलन पता चलता है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) का अनुमान है कि 2022 में भारत के चालू खाते का घाटा उसके सकल घरेलू उत्पाद के 3.5 फीसदी के बराबर रह सकता है। यह अब तक का सबसे बड़ा घाटा होगा।
मंगलवार को जारी आईएमएफ के विश्व आर्थिक आउटलुक के विश्लेषण से पता चलता है कि अन्य उभरते बाजारों का चालू खाते का संतुलन हाल की आर्थिक अस्थिरता से उतनी बुरी तरह प्रभावित नहीं हुई है। लैटिन अमेरिका और कैरिबियाई देशों के अलावा भारत का चालू खाते का संतुलन ब्राजील, चीन, रूस और एशिया और यूरोप के विकासशील देशों से काफी खराब है।
विश्व बैंक के अतिरिक्त डेटा के अनुसार, वर्ष 2012 में टैपर टैंट्रम से पहले भारत का चालू खाते का घाटा करीब 5 फीसदी तक पहुंच चुका था। कोविड-19 के दौरान वैश्विक चालू खाते का संतुलन बढ़ गया। हाल ही में जिंसों की कीमतों में अस्थिरता के कारण भी इसमें तेजी आई है। आईएमएफ की रिपोर्ट में बताया गया, ‘जहां वैश्विक व्यापार वृद्धि में घट रही है, वहीं वैश्विक व्यापार संतुलन व्यापक हो गया है।
2011-19 के दौरान संकुचन के बाद वैश्विक चालू खाता शेष-सभी अर्थव्यवस्थाओं का चालू खाता घाटा और अधिशेष का योग-कोविड-19 के दौरान बढ़ गया और उम्मीद की जा रही है कि 2022 में और बढ़ेगा। 2022 में दर्शाया गया है कि यूक्रेन में युद्ध से जुड़ी वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि, जिसने तेल के शुद्ध निर्यातकों के लिए संतुलन बढ़ा दिया है और शुद्ध आयातकों के लिए कम कर दिया है।’
कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों से भी अन्य देशों की तुलना में भारत पर बुरा प्रभाव पड़ता है, क्योंकि यह अपनी कच्चे तेल की जरूरतों का 80 फीसदी आयात करता है। इससे मुद्रास्फीति पर भी असर पड़ती है। 2022 में भारत में उपभोक्ता कीमतों में 6.9 प्रतिशत की वृद्धि होने की उम्मीद है। हालांकि, अन्य देशों में मुद्रास्फीति की संख्या अधिक है।
आईएमएफ को उम्मीद है कि 2023 में मुद्रास्फीति में गिरावट शुरू हो जाएगी। हालांकि, यह कहा गया है कि यह ऊर्जा या खाद्य कीमतों में किसी भी वृद्धि से प्रभावित हो सकता है।