सरकार ने बल्क ड्रग के स्थानीय उत्पादन को बढ़ावा देने और आयात पर निर्भरता घटाने के लिए मंगलवार को 6,940 करोड़ रुपये की उत्पादन लिंक्ड प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना को अधिसूचित किया। सरकार ने 41 प्रकार की दवाओं के उत्पादन के लिए आवश्यक करीब 53 प्रकार के ऐक्टिव फार्मास्युटिकल इनग्रेडिएंट्स (एपीआई) की पहचान की है। यदि कंपनियां इन एपीआई के उत्पादन के लिए देश में नए संयंत्र लगाती हैं तो वे वित्तीय प्रोत्साहन के लिए पात्र होंगी।
सरकार की अधिसूचना के अनुसार, वित्त वर्ष 2019 के दौरान देश में कुल फार्मास्युटिकल आयात में बल्क ड्रग्स की हिस्सेदारी 63 फीसदी रही। उसमें कहा गया है, ‘भारतीय फार्मास्युटिकल उद्योग मात्रा के लिहाज से विश्व का तीसरा सबसे बड़ा और मूल्य के लिहाज से 14वों सबसे बड़ा औषधि उद्योग है। वैश्विक स्तर पर निर्यात होने वाली कुल दवाओं में भारत का योगदान 3.5 फीसदी है। हालांकि इन उपलब्धियों के बावजूद भारत बुनियादी कच्चे माल यानी बल्क ड्रग्स के लिए काफी हद तक आयात पर निर्भर है जिनका इस्तेमाल तैयार खुराक वाले फॉर्मूलेशन के उत्पादन में होता है।’
भारत बल्क ड्रग्स का आयात काफी हद तक आर्थिक कारणों से करता है। चीन से आयात होने वाली बल्क ड्रग्स घरेलू उत्पादों के मुकाबले औसतन 25 से 30 फीसदी सस्ती होती हैं। हालांकि हालिया कोविड-19 संकट और सीमा पर गतिरोध ने इस क्षेत्र में भारत की कमजोरियों को उजागर किया है। नया संयंत्र स्थापित करने के लिए करीब 20 करोड़ रुपये का निवेश करने की आवश्यकता होगी जो मौजूदा विनिर्माण संयंत्र परिसर के भीतर भी हो सकते हैं। इस प्रकार कंपनियां चुनिंदा बल्क ड्रग्स पर इस योजना का फायदा उठा सकती हैं।
सरकार ने बल्क ड्रग पार्क की स्थापना को प्रोत्साहित करने के लिए भी एक योजना को अधिसूचित की है। चुनिंदा पार्क के लिए सामान्य बुनियादी ढांचा सुविधाओं की 70 फीसदी परियोजना लागत तक वित्तीय मदद देने का प्रावधान है। जबकि पूर्वोत्तर और पहाड़ी राज्यों के लिए 90 फीसदी परियोजना लागत की वित्तीय मदद दी जाएगी। इस योजना के तहत एक बल्क ड्रग पार्क के लिए अधिकतम सहायता 1,000 करोड़ रुपये तक होगी। इस योजना के लिए कुल वित्तीय परिव्यय 3,000 करोड़ रुपये है।
