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ग्रामीण भारत में सुधार मगर ढांचागत समस्याएं बरकरार

Last Updated- December 15, 2022 | 3:30 AM IST

बिज़नेस स्टैंडर्ड ने प्रमुख विशेषज्ञों के साथ अनलॉक बीएफएसआई 2.0 संवाद की शुरुआत की। कार्यक्रम में शामिल पैनलिस्टों ने कहा कि ग्रामीण भारत को लेकर जितना उत्साह जताया जा रहा है, उसके लंबे समय तक कायम रहने की उम्मीद नहीं है क्योंकि ग्रामीण इलाकों में ढांचागत समस्याएं अब भी बरकरार हैं।
पूर्व मुख्य सांख्यिकीविद और इंटरनैशनल ग्रोथ सेंटर के कंट्री डायरेक्टर प्रणव सेन ने कहा कि कोविड-19 के बाद पूरा ग्रामीण भारत अच्छा प्रदर्शन कर रहा है, यह धारणा भ्रामक है। उन्होंने कहा, ‘बाहर से भेजे जाने वाले पैसों पर निर्भर ग्रामीण इलाकों की स्थिति उतनी बेहतर नहीं है, जैसी छह राज्यों की है, जहां भारी मात्रा में उपज की खरीद की गई है। हम समूचे ग्रामीण भारत को एक सांचे में नहीं देख सकते हैं।’
नोमुरा में प्रबंध निदेशक और मुख्य अर्थशस्त्री (भारत और एशिया- जापान को छोड़कर) सोनल वर्मा नेे चेताया कि ग्रामीण सुधार को बढ़ा-चढ़ाकर नहीं दिखाना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘जब तक निर्माण गतिविधियों में तेजी नहीं आती है, तब तक ग्रामीण गतिविधियां जोर नहीं पकड़ सकतीं। ग्रामीण इलाकों में पारिश्रमिक नहीं बढ़े हैं और जमीन के दाम भी स्थिर बने हुए हैं।’
एचएसबीसी की भारत में मुख्य अर्थशास्त्री प्रांजुल भंडारी ने कहा कि ग्रामीण भारत का प्रदर्शन कई वजहों से अब तक बेहतर रहा है। पहली, लॉकडाउन का असर और आर्थिक गतिविधियों पर बंदिशें इन इलाकों में शहरी क्षेत्रों की तुलना में कम सख्त थीं। दूसरी सरकार की ओर से अधिकतर मदद ग्रामीण क्षेत्रों पर केंद्रित रही, और मॉनसून भी बेहतर रहा है।
राष्ट्रीय लोक वित्त एवं नीति संस्थान के निवर्तमान निदेशक रथिन रॉय ने कहा कि  यह तथ्य है कि विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों में गिरावट आई है जबकि कृषि क्षेत्र पर असर नहीं पड़ा। इसकी वजह से कृषि क्षेत्र का योगदान 2020-21 के सकल घरेलू उत्पादन में ज्यादा रहेगा। जेपी मॉर्गन में मुख्य अर्थशास्त्री साजिद चिनॉय ने कहा कि कृषि ग्रामीण समस्याओं का समाधान नहीं हो सकती क्योंकि ग्रामीण खपत में उसका हिस्सा 40 फीसदी से कम है।
जेपी मॉर्गन केे चिनॉय ने कहा, ‘पिछले पांच साल की खपत में कर्ज का अहम योगदान रहा है क्योंकि लोगों ने कर्ज लिया है और बचत कम की हैं। अगर आप यह मानते हैं कि मौजूदा आर्थिक झटका स्थायी नहीं है तो उस सोच को बदला जाना चाहिए क्योंकि लोग ज्यादा सतर्क हो गए हैं और बचत बढऩे लगी हैं।’ उन्होंने आगाह किया कि इसके नतीजतन खपत पर तगड़ी चोट पड़ेगी। हालांकि उन्होंने कहा कि हालात धीरे-धीरे कृषि क्षेत्र के अनुकूल बन रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘पिछले साल कृषि में औसतन 4.8 फीसदी वृद्धि हुई है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था के संकट में होने की वजह यह थी कि अच्छा उत्पादन होने के बावजूद खाद्य महंगाई शून्य फीसदी पर थी। अब पिछले 12 महीने से यह 7 फीसदी से अधिक है।’
भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) में मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्य कांति घोष ने कहा कि ग्रामीण इलाकों में कृषि संबद्ध गतिविधियां काफी अहमियत रखती हैं और जब तक इनमें तेजी नहीं आएगी तब तक इन क्षेत्रों की अर्थव्यवस्था सुदृढ़ रूप से आगे नहीं बढ़ पाएगी। घोष ने कहा कि शहरी आय ग्रामीण क्षेत्रों की आय का 1.8 गुना है, इसलिए शहरी क्षेत्रों में सुधार होने तक अर्थव्यवस्था को कोई खास मदद नहीं मिलेगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 1 लाख करोड़ रुपये कोष की घोषणा पर सेन ने कहा कि गोदाम आदि में मानव पूंजी की जरूरत होती है और इसके बिना बहुत बदलाव की गुंजाइश नहीं है। घोष ने कहा कि इस कोष का 24 प्रतिशत हिस्सा बिजली क्षेत्र के लिए है, लेकिन इस क्षेत्र के लिए कोई उपयुक्त नीति नहीं है और बिजली वितरण कंपनियों की हालत खस्ता हो रही है।
सेन ने कहा कि यह कहना सही नहीं है कि भारत में खाद्यान्न की पैदावार जरूरत से अधिक है, क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में अब भी हालात ठीक नहीं हैं। उन्होंने कहा कि बड़ी कंपनियां भी ग्रामीण क्षेत्रों में जा रही हैं, लेकिन वहां गैर-कृषि क्षेत्र को समझने के लिए संचालन ढांचे का अभाव है। वर्मा ने खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र पर और निर्यात बाजार का अधिक से अधिक लाभ लिए जाने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि कृषि क्षेत्र में सुधार से मध्यम अवधि में ग्रामीण भारत में लोगों की आय बढ़ सकती है। कृषि क्षेत्र में ऋण माफी के विषय पर घोष ने कहा कि भारत में इस पर कानूनन रोक लगा दी जानी चाहिए। सेन ने कहा कि छोटे शहरों में संक्रमण का पहुंचना अधिक चिंता का विषय है।

First Published - August 12, 2020 | 11:10 PM IST

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