एकीकृत वस्तु एवं सेवा कर (आईजीएसटी) का कम भुगतान करने वाले आयातकों को सुविधा प्रदान करने के लिए केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीआईसी) एक मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) जारी कर सकता है। इसका मकसद आयातकों को सीमा शुल्क क्लियरेंस के बाद चिह्नित कमियों को ठीक करने के लिए किए गए आईजीएसटी भुगतान पर इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) का दावा करने में सक्षम बनाना है।
इस मामले से अवगत 2 सरकारी अधिकारियों ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि जीएसटी (जीएसटी) फील्ड फॉर्मेशन के लिए यह नया प्रोटोकॉल संभावित रूप से आयातकों के कई सौ करोड़ रुपये फंसे इनपुट टैक्स क्रेडिट मिलने की राह खोल सकता है। यह धन फंसने से आयातकों की कार्यशील पूंजी बाधित हो रही है।
आयात पर आईजीएसटी के कम भुगतान के बारे में आमतौर पर आंतरिक ऑडिट या नियामक जांच के दौरान जानकारी मिलती है। यह मूल्यांकन में अंतर, वर्गीकरण संबंधी त्रुटियों या अन्य विसंगतियों के कारण होता है। आयातकों को टीआर-6 चालान के माध्यम से कमी का भुगतान करना होता है, जो ऐसे भुगतान के लिए उपयोग की जाने वाली एक मैनुअल सरकारी रसीद है।
आयात के समय मूल रूप से भुगतान किया गया आईजीएसटी बिल ऑफ एंट्री में दर्ज किया जाता है और आईटीसी के लिए पात्र है। वहीं बाद में टीआर-6 चालान के माध्यम से भुगतान किया गया हिस्सा बिल ऑफ एंट्री से नहीं जुड़ पाता है। मौजूदा जीएसटी नियमों के तहत इन दोनों बिल के अलग-अलग होने के कारण कारोबारी उस कर भुगतान पर आईटीसी का दावा नहीं कर पाते, जिसका उन्होंने बाद में भुगतान किया है, भले ही यह उनकी मूल आयात देयता का हिस्सा था।
एक अधिकारी ने कहा, ‘पहले सीमा शुल्क विभाग के आइसगेट सिस्टम और जीएसटी नेटवर्क (जीएसटीएन) के बीच डिजिटल लिंक एप्लिकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस (एपीआई) पोस्ट क्लियरेंस भुगतानों के लिए काम नहीं कर रहा था। इसकी वजह से टीआर-6 चालान से भुगतान का विवरण बिल ऑफ एंट्री को अपडेट करने के लिए जीएसटीएन में नहीं जा सका।’ उन्होंने कहा, ‘इसका मतलब था कि आयातक आईजीएसटी पर इनपुट टैक्स क्रेडिट का दावा करने में असमर्थ थे, जिस शेष राशि का उन्होंने बाद में भुगतान किया था।’
एक अन्य अधिकारी ने कहा, ‘सरकार सीमा शुल्क और जीएसटी सिस्टम को एकीकृत कर रही है ताकि टीआर-6 के आंकड़े स्वचालित रूप से बिल ऑफ एंट्री में अपडेट हो जाएं और संशोधित आईटीसी दावों को सुगम बनाया जा सके।’ उन्होंने कहा, ‘इससे भारत की प्रक्रिया वैश्विक कर व्यवस्था के मुताबिक हो सकेगी, जहां क्रेडिट दावों के लिए इसी तरह के दस्तावेजों को स्वीकार किया जाता है।’
इस सुविधा के लिए सरकार जल्द ही एक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म शुरू करने की योजना बना रही है, जहां करदाता स्वैच्छिक घोषणाएं दाखिल कर सकेंगे।
यह कदम कानूनी ढांचा बनाने के लिए बजट में की गई घोषणा के अनुरूप है। नया प्रावधान आयातकों व निर्यातकों को सीमा शुल्क फाइलिंग में त्रुटियों को दूर करने और किसी भी कम शुल्क का ब्याज सहित स्वैच्छिक भुगतान की सहूलियत देगा।
टैक्स कनेक्ट एडवाइजरी सर्विसेज के पार्टनर विवेक जालान ने कहा, ‘माल के क्लियर होने के बाद भुगतान किए गए आईजीएसटी के लिए आईटीसी का दावा करने में व्यवसायों को बहुत परेशानी होती है, क्योंकि बिल ऑफ एंट्री को बदलने में बहुत कागजी कार्रवाई की जरूरत होती है।’
ईवाई में अप्रत्यक्ष कर पार्टनर सुरेश नायर ने कहा, ‘डीआरआई जांच या हस्तांतरण मूल्य निर्धारण समायोजन के कारण भुगतान के मामलों में बहुत दिक्कत आती है, जहां पुनर्मूल्यांकन अक्सर अव्यावहारिक या मामूली होता है। जीएसटीएन प्रणाली में बीओई के साथ टीआर-6 भुगतानों को एकीकृत करने के लिए एक सरल प्रणाली बन सकेगी।’