मानव संसाधन विकास मंत्रालय केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों में ओबीसी सीटें बढ़ाने के लिए आवंटित धन का इस्तेमाल इन संस्थानों में बुनियादी ढांचागत सुविधाएं और क्षमताएं बढ़ाने के लिए करने की कोशिश कर रहा है। इन संस्थानों में ओबीसी कोटा बढ़ाने की मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह की योजना पर सुप्रीम कोर्ट के स्थगन आदेश के कारण मंत्रालय इस तरह का कदम उठा रहा है। एक वरिष्ठ अघिकारी ने बिानेस स्टैंडर्ड को बताया कि अगर कोटा के कार्यान्वयन पर स्थगन आदेश जारी रहता है
इसलिए मंत्रालय कैबिनेट के उस नोट का इंतजार कर रहा है,जिसमें इन राशियों के उपयोग का जिक्र हो। अगर इस पर भी सुप्रीम कोर्ट स्थगन लगाता है, तो मंत्रालय ओबीसी के 27 प्रतिशत आरक्षण के हिसाब से खर्च को अंजाम देगा। मंत्रालय इस खर्च के प्रति काफी सजग है,क्योंकि पिछले वित्तीय वर्ष में इस मद में मिली राशि खर्च नहीं हो पाई थी और इसे लौटा देना पडा था।
पिछले बजट में वित्त मंत्रालय ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय के ओबीसी कोटा में 54 प्रतिशत की बढाेतरी के कारण सीटों की संख्या में वृद्धि को ध्यान में रखते हुए केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों के लिए 2,698 करोड़ रुपये आबंटित किए थे। अधिकारियों के मुताबिक इसी उद्देश्यों को ध्यान में रखकर आईआईटी, आईआईएम, एनआईटी आदि केंद्रीय विश्वविद्यालयों को वित्तीय वर्ष 2008-09 के लिए 2,552 करोड रुपये आबंटित किए गए हैं।
अधिकारी ने बताया कि बहुत सारे कारणों से पिछले वर्ष इस मद में आबंटित राशि को खर्च नहीं किया जा सका था। लेकिन इस बार मंत्रालय इसको फिर से दुहराना नहीं चाहती। बजट से मिल रही इन राशियों का उपयोग संस्थानों के संपूर्ण विकास में क्यों न लगा दिया जाए। उसने बताया कि इन राशियों का उपयोग इन्फ्रास्ट्रक्चर के निर्माण के लिए नान रेकरिंग कॉस्ट के तहत किया जा सकता है और रेकरिंग कॉस्ट के खर्च का बाद में उपयोग किया जा सकता है।
संविधान के
93 वें संशोधन के कानून 2005 के तहत संसद और विधान परिषदों में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़ी जातियों के विकास के लिए शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश में रियायत देने संबंधी कानून बनाने का प्रावधान है।
इसी के अंतर्गत सरकार ने केंद्रीय शैक्षणिक संस्थान
(प्रवेश में आरक्षण) विधेयक, 2006 के तहत ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण दिया है। इसके बाद इस आरक्षण सीमा को बढाकर 54 प्रतिशत (तीन सालों तक के लिए) करने की बात कही गई। इस प्रस्ताव के जबर्दस्त विरोध केबाद निगरानी समिति ने कहा था कि सामान्य कोटे को स्थिर रखकर ये आरक्षण दिया जा सकता है।