केंद्र सरकार पहली बार सेक्टर विशेष के मुताबिक मॉडल स्थायी व्यवस्था (स्टैंङ्क्षडग ऑर्डर) तैयार करने की योजना बना रही है, जिससे कंपनियों को प्रमाणन की प्रक्रिया से न गुजरना पड़े। श्रम एवं रोजगार मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, ‘हम प्रगतिशील मॉडल पर काम कर रहे हैं, जिससे अनुपालन बोझ में उल्लेखनीय कमी आएगी। तत्काल उद्योगवार स्टैंडिंग ऑर्डर या कुछ समय के लिए हो।’ अधिकारी ने कहा कि सरकार ने इसके लिए पहले ही विभिन्न क्षेत्रों के उद्योग के अधिकारियों से बात करनी शुरू कर दी है, जिससे कई मॉडल स्टैंडिंग ऑर्डर तैयार किए जा सकें। इस समय विनिर्माण व खनन क्षेत्र के लिए कई स्टैंडिंग ऑर्डर हैं। स्टैंडिंग ऑर्डर कानूनी रूप से बाध्यकारी सामूहिक रोजगार कांटै्रक्ट होता है, जिसमें काम से जुड़ी प्रमुख सेवा-शर्तें रहती हैं और इसका मकसद स्वैच्छिक रूप से कर्मचारियों को निकाले जाने से रोकना है।
कॉनफेडरेशन आफ इंडियन इंटस्ट्रीज इंडस्ट्रियल रिलेशन कमेटी के चेयरमैन एमएस उन्नीकृष्णन ने कहा, ‘यह स्वागत योग्य कदम है। हम खुश हैं कि केंद्र सरकार कम अवधि में स्टैंडिंग ऑर्डर से परिचालन करके स्पष्टता ला रही है। अगर कंपयिनों व राज्यों के लिए एक बार केंद्र द्वारा मॉडल तैयार कर देने से इसमें कोई अस्पष्टता नहीं होगी।’ स्टैंडिंग ऑर्डर हर उस फर्म के लिए अनिवार्य है, जो कम से कम 50-100 कामगारों को रखती है। बहरहाल अप्रैल से संभावित रूप से लागू होने जा रही औद्योगिक संबंध संहिता के मुताबिक जिन फर्मों में न्यूनतम 300 कर्मचारी हैं, उन्हीं के लिए स्टैंडिंग ऑर्डर की जरूरत होगी।
स्थायी व्यवस्था में संयंत्र बंद होने, दुव्र्यवहार के कारण नौकरी से निकाले जाने या सस्पेंड करने के अलावा कामगारों के रोजगार के घंटे, छुट्टियों व मजदूरी के बारे में सूचना देने को लेकर नियोक्ता और कामगारों के अधिकार और जिम्मेदारी तय की जाती है। यह नियोक्ताओं के अनुचित व्यवहार के निवारण के लिए होता है।
अधिकारी ने कहा, ‘हर क्षेत्र के अपने अधिकार व विशेष मसले हैं। ऐसे में हम 5 से 6 श्रेणियों के तहत स्थायी व्यवस्था की कवायद कर रहे हैं। ऐसे कदम से हम स्थायी व्यवस्था में सुधार करने की जगह किसी खास क्षेत्र की विशेषता का ध्यान रख सकेंगे, जिसमें बहुत वक्त लगता है।’
सरकार टेक्सटाइल और गारमेंट, इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग, आईटी और सूचना तकनीक सक्षम सेवाओं, रत्न एवं आभूषण और कृषि उपकरण क्षेत्रों के साध अन्य के लिए अलग से स्थायी व्यवस्था तैयार करने की योजना बना रही है।
एक्सएलआरआई में प्रोफेसर और श्रम अर्थशास्त्री केआर श्यामसुंदर ने कहा, ‘इस कदम से सरकार द्वारा माइक्रोमैनेजमेंट हो सकेगा, जिसकी श्रम कानूनों के संहिताकरण के माध्यम से बचा गया है। इसके अलावा पहले न्यायपालिका ने पाया है कि स्टैंडिंग ऑर्डर का सभी क्षेत्रों के मानकीकरण होना चाहिए। इस कदम से नौकरशाही राज को बढ़ावा मिलेगा।’
मसौदा नियमों के मुताबिक नियोक्ता केंद्र सरकार द्वारा तैयार मॉडल स्थायी व्यवस्था स्वीकार कर सकता है, लेकिन इसकी सूचना प्रमाणित करने वाले अधिकारी को देना पड़ेगा कि किस तिथि से यह उसके संयंत्र में लागू होगा। अगर कंपयिनां मॉडल स्थायी व्यवस्था का पालन करती हैं तो उन्हें प्राधिकारियों से प्रमाणन की जरूरत नहीं होगी। इस समय कंपनी प्रबंधन द्वारा स्थायी व्यवस्था तैयार किया जाता है और इसके लिए ट्रेड यूनियनों या मजदूरों के प्रतिनिधियों से परामर्श करना होता है। औपचारिक सलाह के बाद इसे प्रमाणन के लिए श्रम विभाग को भेजा जाता है। सेंटर आफ इंडियन ट्रेड यूनियंस के अध्यक्ष की हेमलता ने कहा, ‘सरकार ने कंपनियों के लिए स्थायी व्यवस्था तैयार करने की सीमा 100 से बढ़ाकर 300 कामगार कर दी है। ज्यादातर कंपनियां स्थायी व्यवस्था तैयार करने के दायरे से अलग होंगी। कर्मचारियों व उद्योग को साझा समझ और सलाह के माध्यम से स्थायी व्यवस्था बनाने की जगह सरकारक उद्योग के मुताबिक स्टैंडर्ड ऑर्डर बनाने का गलत मार्ग पकड़ रही है।’
