सरकार वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) व्यवस्था में प्रस्तावित सुधार के बाद मुनाफाखोरी-रोधी प्रावधानों को कुछ समय के लिए फिर से लागू करने पर विचार कर रही है। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि इससे यह सुनिश्चित होगा कि कारोबारी अप्रत्यक्ष कर का फायदा उपभोक्ताओं को दें।
अधिकारी ने अपनी पहचान जाहिर न करने की शर्त पर कहा, ‘केंद्र सरकार बाजार से संचालित मूल्य निर्धारण के लिए प्रतिबद्ध है, मगर अनुचित मुनाफाखोरी की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। अगर कंपनियां कर दरों में कमी के अनुरूप अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) कम नहीं करेंगी तो ऐसा हो सकता है। हम दो साल तक मुनाफाखोरी-रोधी उपायों को लागू करने की योजना बना रहे हैं ताकि कारोबारी दरों में कमी के लाभ को अपनी जेब में न रखें।’
इस संबंध में जानकारी के लिए वित्त मंत्रालय को भेजे गए एक ईमेल का खबर लिखे जाने तक कोई जवाब नहीं आया।
मुनाफाखोरी-रोधी प्रावधानों को सबसे पहले 2017 में लागू किया गया था। उस समय जीएसटी ने कई अप्रत्यक्ष करों को बदल दिया था और कई वस्तुओं पर कर की दरें कम हो गई थीं। केंद्रीय जीएसटी अधिनियम की धारा 171 के तहत लाए गए इन नियमों का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि कारोबारी कर की दरों में कमी और इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) का लाभ उपभोक्ताओं तक पहुंचाएं।
समय के साथ-साथ इसका दायरा एमआरपी से आगे बढ़कर एफएमसीजी, आतिथ्य सेवा और रियल एस्टेट जैसे क्षेत्रों में लगातार दर में कटौती और आईटीसी लाभों को कवर करने तक विस्तृत गया।
सरकार ने इन नियमों के साथ-साथ मुनाफाखोरी-रोधी महानिदेशालय (डीजीएपी) की स्थापना भी की थी। इसका काम उन कंपनियों के खिलाफ शिकायतों की जांच करना था जो कर की कम दरों का फायदा उपभोक्ताओं तक नहीं पहुंचा रही थीं। इसके अलावा किसी भी अनियमित एवं अनुचित मुनाफाखोरी गतिविधियों को विनियमित करने के लिए राष्ट्रीय मुनाफाखोरी-रोधी प्राधिकरण (एनएए) का गठन किया गया था।
दिसंबर 2022 में एनएए के विघटन के बाद भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग को ही मुनाफाखोरी-रोधी मामलों को संभालने की जिम्मेदारी दी गई। अक्टूबर 2024 से यह क्षेत्राधिकार जीएसटी अपीलीय न्यायाधिकरण (जीएसटीएटी) दिल्ली के प्रधान पीठ को स्थानांतरित कर दिया गया।
जीएसटीएटी के प्रधान पीठ का क्षेत्राधिकार देश भर के लिए है। वह जीएसटी एवं मुनाफाखोरी-रोधी मामलों में आपूर्ति के स्थान के लिए अखिल भारतीय मामलों की सुनवाई करता है। हाल में इसने सबवे फ्रेंचाइजी, मेसर्स अर्बन एसेंस के खिलाफ मुनाफाखोरी-रोधी फैसले को भी बरकरार रखा। उसमें कहा गया था कि रेस्तरां सेवाओं पर जीएसटी दर में कटौती का लाभ नहीं देकर मुनाफाखोरी की गई थी।
लक्ष्मीकुमारन ऐंड श्रीधरन के कार्यकारी पार्टनर शिवम मेहता ने कहा, ‘फिलहाल केवल बाजार ताकतों से ही कीमतें कम होने की उम्मीद है। आगामी जीएसटी 2.0 सुधार के मद्देनजर अंतिम उपभोक्ता तक लाभ पहुंचाने के लिए सरकार को उपयुक्त तंत्र को नए सिरे से चालू करने पर विचार करना आवश्यक है।’
डेलॉयट के पार्टनर हरप्रीत सिंह ने कहा कि जीएसटी 2.0 के तहत मुनाफाखोरी-रोधी नियमों को भरोसेमंद बनाने के लिए सरकार को मुनाफाखोरी का आकलन करने के लिए पारदर्शी, क्षेत्र-विशिष्ट एवं मानकीकृत व्यवस्था करनी चाहिए। उन्होंने कहा, ‘यह न केवल निष्पक्ष प्रवर्तन सुनिश्चित करेगा बल्कि मुकदमेबाजी को भी कम करेगा और कारोबारियों एवं उपभोक्ताओं के बीच विश्वास बढ़ाएगा।’
रास्तोगी चैंबर्स के संस्थापक अभिषेक रस्तोगी के अनुसार, रियल-टाइम डेटा हासिल करने और तुलनात्मक विश्लेषण करने के लिए डिजिटल उपकरणों को अपनाने से अधिकारियों को इस पर नजर रखने में मदद मिलेगी। इससे वे देख पाएंगे कि कारोबारी वास्तव में कर में कटौती का लाभ ग्राहकों को दे रहे हैं या नहीं।