वित्त वर्ष 23 की पहली छमाही में सालाना आधार पर 11.3 प्रतिशत की दमदार वृद्धि के बाद मार्च 2023 को समाप्त होने वाले इस वित्त वर्ष की दूसरी छमाही के दौरान देश की बिजली मांग (Power demand) की वृद्धि धीमी होने के आसार हैं। फिच रेटिंग्स (Fitch ratings) ने मंगलवार को जारी एक रिपोर्ट में यह संभावना जताई है।
फिच द्वारा जताए गए अनुमानों और जिन बिजली विश्लेषकों से बिजनेस स्टैंडर्ड ने बात की, उनका कहना है कि साल की दूसरी छमाही में पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में बिजली की मांग में सात से आठ फीसदी के दायरे में बढ़ोतरी दिख सकती है। संपूर्ण वित्त वर्ष 23 के मामले में फिच की विश्लेषक गीतिका गुप्ता और गिरीश मदान का कहना है कि वित्त वर्ष 22 के 8.2 प्रतिशत के मुकाबले बिजली की मांग आठ प्रतिशत के दायरे में बढ़ेगी।
गुप्ता और मदन ने कहा कि हालांकि मांग में कमी बिजली कंपनियों के लिए मुश्किल से ही अच्छा संकेत होगा, लेकिन अच्छी बात यह है कि बिजली उत्पादन करने वाली कंपनियों (जेनकोस) की प्राप्तियों में इस साल सुधार होगा क्योंकि बिजली वितरण कंपनियां (डिस्कॉम) अपना बकाया चुकाना शुरू कर रही हैं।
उन्होंने कहा कि सितंबर 2020 से जेनकोस का डिस्कॉम पर कुल बकाया एक लाख करोड़ रुपये से अधिक रहा है। सरकार को उम्मीद है कि डिस्कॉम विलंब भुगतान शुल्क (एलपीएस) नियमों के तहत वर्ष 2026 तक सभी बकाया राशि का भुगतान कर देंगी।
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अगर ऊर्जा मंत्री आरके सिंह का मंगलवार को राज्यसभा में दिया गया लिखित जवाब इस बात का संकेत है, तो यह प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। सिंह ने सदन को सूचित किया है कि जेनकोस का डिस्कॉम पर कुल बकाया, जो 3 जून, 2022 तक 1.37 लाख करोड़ रुपये था, अब 29,857 करोड़ रुपये घटकर 1.08 रुपये रह गया है।