वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आज कहा कि सरकार ने कुछ क्षेत्रों पर अधिक कर हमेशा के लिए नहीं लगाया है बल्कि यह देसी विनिर्माण को अपनी पूरी क्षमता से काम करने लायक बनाने का उपाय है।
बिज़नेस स्टैंडर्ड मंथन कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि आत्मनिर्भर भारत पीछे धकेलने वाला कदम नहीं है। सीतारमण ने कहा, ‘अक्षम बनाने वाले बनावटी संरक्षण को समर्थन नहीं दिया जा सकता और हम इस बात का पूरा ख्याल रख रहे हैं। इसलिए इस नीति में नतीजे देने वाले बदलाव किए जा रहे हैं। हम कुछ समय के लिए थोड़ा संरक्षण देना चाहते हैं। मगर इसका मतलब यह नहीं है कि हमेशा के लिए ‘दरवाजे बंद’ कर दिए जाएंगे।’
कर ज्यादा रखने और छूट हटाने के मसले पर सीतारमण ने कहा कि आत्मनिर्भर भारत पर निर्णय उन क्षेत्रों पर आधारित है, जहां देश सस्ते आयात को इजाजत नहीं दे सकता। उन्होंने कहा, ‘अगर हमारा उत्पादन लागत के मामले में दूसरों से होड़ नहीं कर पाएगा तो हमें खमियाजा भुगतना पड़ेगा।’
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार अपने ‘तीसरे कार्यकाल’ में भी सुधारों पर जोर देती रहेगी क्योंकि विकास के तय लक्ष्य हासिल करने के लिए स्थिर और अपेक्षित आर्थिक माहौल और कराधान व्यवस्था के साथ राजनीतिक निरंतरता जरूरी है। उन्होंने दोहराया कि सरकार निजीकरण की अपनी नीति पर चलती रहेगी ताकि सार्वजनिक कंपनियां अहमियत वाले प्रमुख क्षेत्रों में ही रहें। बाकी सभी जगहों पर निजी क्षेत्र की कंपनियों के लिए पूरी गुंजाइश है।
वित्त मंत्री ने कहा कि निजीकरण पर सरकार बहुत सोच-समझकर ही आगे बढ़ती है। उन्होंने कहा, ‘हम हाथ पर हाथ धरकर चीजें लटका नहीं रहे हैं। इन कंपनियों की कीमत पर पैनी नजर रखी जा रही है और जब मूल्यांकन बढ़ेगा तभी उन्हें सार्वजनिक निर्गम के जरिये बाजार में उतारा जाएगा।’
नई पेंशन योजना में सुधार का जिक्र करने पर सीतारमण ने राज्यों से कहा कि लोगों का ध्यान बंटाने के लिए ऐसे मसलों पर सोचे-समझे बगैर फैसले न करें क्योंकि इनका राज्य और केंद्र दोनों के खजाने पर बुरा असर पड़ेगा।
उन्होंने कहा कि इन सुधारों की समीक्षा कर रही समिति ने तकरीबन सभी पक्षों से बात कर ली है और जल्द ही वह अपनी सिफारिशें पेश करेगी। वित्त मंत्री ने कहा, ‘लेकिन इस पर राजनीति करने और एकतरफा फैसला लेने के बजाय सबकी राय से काम करना चाहिए क्योंकि पैसा केंद्र या राज्य नहीं बल्कि वेतनभोगी जनता का है।’
बकौल वित्त मंत्री, वह चाहती हैं कि केंद्र और राज्य के बीच मतभेद राजनीतिक कारणों से नहीं हों। उन्होंने कहा कि राज्यों को शिकायत करने में समय बरबाद करने के बजाय अपनी दलीलें वित्त आयोग के सामने रखनी चाहिए। इसके बाद वित्त आयोग ही फैसला करेगा।
उन्होंने यह भी कहा कि राज्यों को उनके हाल पर नहीं छोड़ा गया है बल्कि 2020-21 से अब तक केंद्रीय मदद के तौर पर उन्हें भरपूर धन दिया गया है। इस बार के अंतरिम बजट में भी उनके लिए भारी-भरकम ब्याज मुक्त कर्ज का प्रावधान किया गया है। इसका फायदा पूरे देश को मिलना है।
वित्त मंत्री ने यह भी कहा कि सुधार केवल केंद्र सरकार का काम नहीं होता है बल्कि यह राज्यों और पंचायत जैसे स्थानीय निकायों के हाथ में भी है। उन्होंने कहा, ‘व्यवस्था अच्छी तरह काम करे, प्रशासन अच्छा हो और कारोबार करना आसान हो जाए, यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी राज्यों की भी है। असल में यह जिम्मेदारी निर्वाचित लोकतंत्र के तीसरे स्तर यानी पंचायत संस्थाओं की भी होनी चाहिए।’
सुधारों के मामले में वित्त मंत्री ने प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) की मिसाल देते हुए कहा कि जब डीबीटी शुरू किया गया तो राज्यों ने विरोध किया। उनकी मांग थी कि उन्हें सीधे धन दे दिया जाए और वे खुद लाभार्थियों तक उसे पहुंचा देंगे। मगर केंद्र सरकार अपनी बात पर अड़ी रही और खातों को आधार से जोड़ने की बात कही। आखिर में सभी असली लाभार्थियों तक धन पहुंचने लगा। इससे सरकारी खजाने को जो बचत हुई, वह शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे अहम क्षेत्रों में वापस लगा दिया गया।
सीतारमण ने कहा कि 2014 और 2019 के बीच तथा कोविड के बावजूद किए गए सुधार बताते हैं कि सरकार सुधारों के लिए किस कदर संकल्पबद्ध है। उन्होंने कहा कि चाहे कुछ भी हो जाए, उनकी सरकार अपने तीसरे कार्यकाल में भी यह सिलसिला जारी रखेगी।
उन्होंने कहा कि सुधारों का सिलसिला जारी रखना बहुत महत्त्वपूर्ण बात थी, जिसने सरकार को 2047 तक विकसित देश बनने के लक्ष्य तक पहुंचने का भरोसा दिया। वित्त मंत्री ने कहा, ‘हमारा यह सपना कोई हवाई किला नहीं है। इस पर भरोसा करने की ठोस वजह है और वह है इसके लिए बनाया गया पक्का रास्ता।’
सीतारमण ने एक बार फिर चार ‘आई’ – इन्फ्रास्ट्रक्चर, इन्वेस्टमेंट, इनोवेशन और इनक्लूसिवनेस का जिक्र किया और इन्हें 2047 तक भारत को विकसित बनाने के लक्ष्य का रास्ता बताया। उन्होंने कहा, ‘इनमें से हरेक आई से लंबे समय तक जो असर पड़ने वाला है, उससे हमें ताकत और भरोसा मिलेगा कि हमारा सपना पूरा हो सकता है। हमने निवेश के लिए निजी पूंजी बुलाई है। हमें यह भी दिख रहा है कि सकल स्थिर पूंजी निर्माण में साफ-साफ बढ़ोतरी हो रही है।’
कोविड के समय मिले झटकों और उससे उबरने को याद करते हुए वित्त मंत्री ने भारत ने कोविड के बाद पटरी पर ऐसी वापसी की है कि तमाम देश उससे ईर्ष्या कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि ऐसी वापसी उन सुधारों के कारण ही हुई, जो 2014 से 2019 के बीच किए गए और कोविड के बावजूद जारी रखे गए। उन्होंने कहा, ‘भारत सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था है, जिसके सारे इंजन दौड़ रहे हैं। इसके लिए जरूरी है कि हम उन सुधारों की अहमियत को पहचानें और मानें, जो पहले किए गए और जो कोविड के दौरान भी किए गए।’
सीतारमण ने कहा कि ऐसी सरकार होना जरूरी है, जिसे जनता से भरपूर समर्थन और जनादेश हासिल हो। सरकार ऐसी होनी चाहिए, जो गठबंधन को संभालने और बांधे रखने के चक्कर में वक्त बरबाद नहीं करे बल्कि पूरे समर्पण और संकल्प के साथ ब़ड़े सुधारों और बड़े फैसलों पर आगे बढ़े। उन्होंने कहा, ‘पिछले 10 साल में हमने यही करके दिखाया है और मुझे लगता है कि अगले कार्यकाल में भी हम आपको यही दिखाएंगे।’
वृद्धि और खजाने की बात करते हुए वित्त मंत्री ने कहा कि भारत ने दोहरी बैलेंस शीट के नुकसान को फायदे में बदल दिया है। उन्होंने कहा कि तीन तिमाहियों से 8 फीसदी या ज्यादा की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि और वृद्धि की बढ़िया तथा टिकाऊ रफ्तार भारत के लिए बहुत बढ़िया सहारा है, जिस पर खड़े रहकर वह आगे बढ़ सकता है।
आय और व्यय का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि राजस्व संग्रह अच्छा रहा, जिसे उससे भी ज्यादा सूझबूझ के साथ खर्च किया गया है। इसी का नतीजा है कि राजकोष ज्यादा अच्छी तरह संभला और राजकोषीय रास्ते पर चलने का सरकार का संकल्प भी बरकरार रहा।
वित्त मंत्री ने यह भी कहा कि डिजिटल क्रांति नरेंद्र मोदी सरकार के एजेंडा में सबसे ऊपर है। इसके कारण न केवल फिनटेक क्रांति या पेमेंट क्रांति पर असर पड़ा है बल्कि शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराने के तरीके पर भी इसका प्रभाव पड़ा है। इतना ही नहीं, सरकार अर्थव्यवस्था पर नजर रखने और आम जनता को सेवाएं उपलब्ध कराने के डिजिटल तरीकों का जो फायदा आज देख रही है, वह भी इसी क्रांति का नतीजा है। उन्होंने कहा, ‘डिजिटल क्रांति ने वास्तव में भारत को कई देशों से बहुत आगे खड़ा कर दिया है।’