जुलाई महीने में निर्यात की तुलना में आयात की वृद्धि ज्यादा रहने से भारत का व्यापार घाटा आठ महीने में सबसे अधिक 27.35 अरब डॉलर रहा। पिछले साल जुलाई में व्यापार घाटा 24.77 अरब डॉलर और जून 2025 में 18.78 अरब डॉलर था। जुलाई में वस्तुओं का आयात 8.61 फीसदी बढ़कर 64.59 अरब डॉलर रहा जबकि निर्यात 7 फीसदी बढ़कर 37.24 अरब डॉलर रहा। इस दौरान सेवाओं का निर्यात 1.4 फीसदी बढ़ा और यह 31.03 अरब डॉलर तक पहुंच गया जबकि सेवा आयात 3.4 फीसदी घटकर 15.4 अरब डॉलर रहा।
इसके परिणामस्वरूप सेवाओं के व्यापार में 15.63 अरब डॉलर का अधिशेष रहा। हालांकि सेवा के व्यापार का आंकड़ा अनुमानित है और भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा आंकड़े जारी किए जाने के बाद इसे संशोधित किया जाएगा।
आयात में उछाल पेट्रोलियम और कच्चे तेल के आयात के कारण आई, जो आयात पर भारत के कुल खर्च का लगभग एक-चौथाई है। इस दौरान तेल का आयात 7.4 फीसदी बढ़कर 15.5 अरब डॉलर हो गया। सोने का आयात 13.8 फीसदी बढ़कर 3.97 अरब डॉलर रहा जबकि इलेक्ट्रॉनिक्स का आयात 9.8 अरब डॉलर रहा, जो पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 12.8 फीसदी अधिक है। इस दौरान उर्वरक आयात 133 फीसदी बढ़कर 1.6 अरब डॉलर रहा।
वस्तु निर्यात में 7 फीसदी की वृद्धि इंजीनियरिंग सामान (13.7 फीसदी), इलेक्ट्रॉनिक्स (33.9 फीसदी), दवाओं (14 फीसदी), कार्बनिक और अकार्बनिक रसायन (7.2 फीसदी) और रत्न और आभूषण (28.9 फीसदी) जैसी वस्तुओं की अधिक मांग के कारण हुई। गैर-पेट्रोलियम और गैर-रत्न एवं आभूषण निर्यात में 12.7 फीसदी की वृद्धि देखी गई और यह 30.51 अरब डॉलर पर पहुंच गया।
इक्रा की मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर ने कहा कि वित्त वर्ष 2026 में अब तक व्यापार घाटे के मासिक आंकड़े काफी अस्थिर रहे हैं लेकिन पिछले तीन महीने का औसत 22.7 अरब डॉलर है, जो पिछले वर्ष की समान अवधि के स्तर के काफी करीब है। नायर ने कहा, ‘गैर-तेल निर्यात ने जुलाई 2025 में समग्र निर्यात में वृद्धि को बढ़ावा दिया, जबकि तेल निर्यात में पिछले वर्ष की तुलना में 25 फीसदी की कमी आई।’
वाणिज्य सचिव सुनील बड़थ्वाल ने बताया कि वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं के बावजूद भारत का वस्तु एवं सेवा निर्यात अच्छा प्रदर्शन कर रहा है। उन्होंने संवाददाताओं को बताया कि निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है जो वैश्विक निर्यात वृद्धि से कहीं अधिक है।
अनिश्चित वैश्विक नीतिगत माहौल, खास तौर पर अमेरिका द्वारा लागू की गई शुल्क नीतियों के कारण सरकार निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता में सुधार लाने, निर्यात संवर्धन को मजबूत करने और निर्यात बास्केट तथा बाजारों के विविधीकरण को बढ़ावा देने के लिए स्पष्ट रणनीति अपना रही है।
भारत मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) को तेजी से लागू कर रहा है और मौजूदा व्यापार समझौतों की भी समीक्षा कर रहा है। चार सदस्यीय यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ (ईएफटीए) के देशों के साथ व्यापार समझौता 1 अक्टूबर से लागू होगा। इसके साथ ही भारत ने संसदीय प्रक्रियाओं को पूरा करके एफटीए के कार्यान्वयन में तेजी लाने के लिए ब्रिटेन से संपर्क किया है। ओमान के साथ समझौते को अंतिम रूप दे दिया गया है और जल्द ही इस पर हस्ताक्षर किए जाएंगे।
यूरोपीय संघ के साथ बातचीत भी तेजी से आगे बढ़ रही है। बड़थ्वाल के अनुसार वार्ता की प्रगति अच्छी रही है और सचिव तथा वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री के स्तर पर अपने-अपने समकक्षों के साथ आगे की बैठकें होने की उम्मीद है। सरकार इस साल के अंत तक चिली और पेरू के साथ मुक्त व्यापार समझौते पर बातचीत पूरी करने की कोशिश कर रही है। इसके अलावा 10 सदस्यीय आसियान देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौते की समीक्षा अक्टूबर तक पूरी होने की उम्मीद है।
भारत निर्यात में 90 फीसदी हिस्सेदारी वाले शीर्ष 50 देशों पर भी अपना ध्यान केंद्रित कर रहा है जिसमें सक्रिय और सतत निर्यात संवर्धन प्रयासों के लिए विदेश में मिशनों को सक्रिय करना भी शामिल है। इसके अलावा वित्त वर्ष 2026 के आम बजट में घोषित निर्यात संवर्धन मिशन (ईपीएम) पर फिलहाल अंतर मंत्रालय परामर्श की जा रही है।
इसका उद्देश्य भारतीय निर्यातकों, खास तौर पर एमएसएमई के सामने आने वाली प्रमुख बाधाओं को दूर करने के लिए पारंपरिक तंत्रों से परे उपायों की खोज करना और वित्त वर्ष 2025 से 2031 तक व्यापक, समावेशी और सतत निर्यात वृद्धि को सक्षम बनाना है। ईपीएम सहयोगात्मक ढांचे पर आधारित है जिसमें वाणिज्य विभाग, एमएसएमई मंत्रालय, वित्त मंत्री और अन्य संबंधित मंत्रालय और हितधारक शामिल हैं।