अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने बुधवार को भारतीय वस्तुओं पर 25 फीसदी शुल्क और जुर्माने का जो झटका दिया, उससे छोटे भारतीय निर्यातक खास तौर पर हिल गए हैं। उत्तर प्रदेश में कानपुर के चमड़ा और वाराणसी के रेशम कारोबारियों की जान सबसे ज्यादा सांसत में है। दोनों शहरों के लिए अमेरिका को होने वाले निर्यात पर 25 फीसदी शुल्क का मतलब ऑर्डर, मुनाफे और रोजगार में कमी है। इसलिए कारोबारी केंद्र सरकार से जल्द हस्तक्षेप कर रियायत मांगने का अनुरोध कर रहे हैं। हालांकि ट्रंप की इस कार्रवाई की मार पीतल, कांच से लेकर आम के कारोबारियों तक हर किसी पर पड़ रही है मगर उन्हें शायद उतनी गहरी चोट नहीं लगेगी, जितनी चमड़े और रेशम कारोबारियों पर पड़ सकती है। कानपुर से ही सालाना 2,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का चमड़े का माल निर्यात होता है, जिसमें से 25 फीसदी अमेरिका जाता है।
चमड़ा कारोबारी मान रहे हैं कि कम से कम 100 करोड़ रुपये का जो माल अगस्त में ही निकलने वाला था, उसके ऑर्डर अब रुक सकते हैं। कारोबारी हेमंत राजा ने बताया कि पिछले दो दिने से ही ऑर्डर देने वाले दाम घटाने या शुल्क की 13-13 फीसदी चोट सहने की बात कहने लगे हैं। जिन कंपनियों ने ऑर्डर दिए हैं, वे अब दबाव बना रही हैं कि शुल्क का आधा हिस्सा भारत से माल भेजने वाले उठाएं वरना ऑर्डर रोक देंगे। इस तरह की शर्तों ने निर्यातकों को परेशान कर दिया है।
वाराणसी से रेशम यानी सिल्क के जाने माने निर्यातक रजत मोहन पाठक का कहना है कि शुल्क लगने से धंधे में कमी आना स्वाभाविक है। लागत पर बात ठनेगी और पहले से ही मार्जिन घटा रहे निर्यातक उसे और नीचे ले गए तो घाटा झेलना पड़ेगा। साथ ही शुल्क लगने से भारतीय उत्पाद महंगे होंगे तो अमेरिकी उपभोक्ता दूसरे विकल्प तलाशेंगे, जिसके भारतीय कारोबारियों को और भी घाटा होगा। पाठक को लगता है कि 50 फीसदी शुल्क से वाराणसी ही नहीं आसपास के कई जिलों के हजारों बुनकरों, कारीगरों, निर्यातकों की आजीविका पर संकट आएगा। उत्तर प्रदेश के भदोही में हाथ से बुने जाने वाले कालीनों का भी अमेरिका ही बड़ा खरीदार है। भारी-भरकम शुल्क का असर इन पर भी पड़ेगा।
मुरादाबाद के पीतल कारोबारी और द हैंडीक्राफ्ट एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के सचिव सतपाल ने बताया कि अनिश्चितता देखते हुए इस साल ऑर्डर कम ही आए थे। खरीदार भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौता होने का इंतजार कर रहे थे। मगर समझौते की जगह 25 फीसदी शुल्क लगने से मुरादाबाद के निर्यातकों को 1,500 से 2,000 करोड़ रुपये की चपत लग सकती है क्योंकि यहां के उत्पादों का सबसे बड़ा खरीदार अमेरिका ही है। शुल्क लगने के बाद वहां से ऑर्डर मिलना और भी मुश्किल हो जाएगा।
मध्य प्रदेश से सोयाबीन और उसके बने उत्पाद, एल्युमीनियम, कपास, बासमती चावल, फार्मा उत्पाद और ज्वैलरी का खासा निर्यात होता है। अमेरिका यहां की कंपनियों और निर्यातकों के लिए अहम ठिकाना है। भोपाल, मंडीदीप, देवास जैसे औद्योगिक क्षेत्र खास तौर पर फार्मा, वाहन पुर्जों, वस्त्र तथा आभूषणों में अमेरिका पर काफी निर्भर हैं। निर्यातकों को इस बात की चिंता है कि 25 फीसदी शुल्क लगने के बाद राज्य से निर्यात होने वाले सोयाबीन और कृषि उत्पाद महंगे हो जाएंगे। एसोसिएशन ऑफ ऑल इंडस्ट्रीज, मंडीदीप के मुताबिक भोपाल और मंडीदीप में फार्मा कंपनियों को मार्जिन पर चोट पड़ने का खटका सता रहा है तो इंदौर और भोपाल क्षेत्र के आभूषण निर्माता अमेरिका से ऑर्डर में गिरावट का सामना कर सकते हैं।
राजधानी इंजीनियरिंग उत्पादन निर्यात करने वाली मंगला हैंडल्स की साझेदार सपना गुप्ता का कहना है कि शुल्क लगने से जो घाव हो रहा है, रूस से तेल खरीदने के कारण लगने वाला जुर्माना उस पर नमक का काम कर रहा है। शुल्क तो 25 फीसदी ही लगना है मगर जुर्माना कितना लगेगा, अभी किसी को पता ही नहीं है। ऐसे में अमेरिका के साथ व्यापार ऊहापोह में फंस गया है, जिससे नए ऑर्डर मिलने में दिक्कत आएगी। दिल्ली से परिधान निर्यात करने वाले सुधांशु बंसल ने कहा कि उनकी फर्म यूरोप में निर्यात पर ज्यादा जोर देती है। मगर वहां सुस्ती होने की वजह से अभी अमेरिका में संभावनाएं तलाशी जा रही थीं। मगर तगड़ा शुल्क लगने से वहां निर्यात करना भी मुश्किल हो गया है।