सरकार ने जीएसटी प्रणाली में मौजूद झंझट को समाप्त करने की दिशा में कदम उठाते हुए इस साल 30 सितंबर से पहले दाखिल किए जाने वाले प्रत्येक रिटर्न पर विलंब शुल्क को अधिकतम 500 रुपये कर दिया है। वहीं जिनके ऊपर शून्य देयता थी उनके लिए विलंब शुल्क को समाप्त कर दिया है। पिछले प्रावधानों में शून्य कर के योग्य लोगों पर भी काफी विलंब शुल्क लगाया गया था।
पहले प्रति रिटर्न विलंब शुल्क प्रतिदिन 200 रुपये थी जिसकी अधिकतम सीमा 10,000 रुपये थी। विलंब शुल्क जीएसटीआर-3बी या इनपुट-आउटपुट रिटर्न का सार दाखिल करने पर लगाया जाता है।
इसके तहत शून्य देयता वाले लोगों के ऊपर भी काफी विलंब शुल्क बकाया हो गया था। शून्य देयता आम तौर पर उन करदाताओं के लिए होता है जो तिमाही आधार पर रिटर्न दाखिल करते हैं। पिछले प्रावधानों के तहत ऐसी स्थिति बन गई थी इन करदाताओं के ऊपर भी 1 जुलाई, 2017 को लाखों रुपये का विलंब शुल्क हो गया था जिससे जीएसटी प्रणाली में झमेला उत्पन्न हो गया था।
इस साल फरवरी से अप्रैल के लिए जीएसटी भरने वालों के लिए 24 जून से पहले इसे दाखिल करने पर विलंब शुल्क माफ कर दिया गया था। यह कदम कोरोनावायरस के मद्देनजर उठाया गया था।
अधिकतम विलंब शुल्क 500 रुपये उनके लिए है जिन्हें मई से जुलाई के लिए रिटर्न दाखिल करना है और यदि वे 30 सितंबर से पहले ऐसा करते हैं तो उन्हें यह सुविधा मिलेगी। पहले रिटर्न नहीं भरने वाले भी यदि 30 सितंबर से पहले इसे दाखिल कर देते हैं तो उन पर भी यह व्यवस्था लागू होगी। केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क बोर्ड ने एक वक्तव्य में कहा, ‘मई 2020 से जुलाई 2020 की कर अवधि के लिए लगने वाले विलंब शुल्क में और अधिक राहत देने और जुलाई 2017 से जनवरी 2020 तक रिटर्न की पिछली निर्भरता को समाप्त करने के लिए बहुत से प्रतिवेदन प्राप्त हुए थे।’ इसके अलावा इसमें कहा गया है कि एकसमान विलंब शुल्क को तैयार करना सरल और साझा ऑटोमेटेड टेलर पर इसे लागू करना आसान होता है।
ईवाई में कर पार्टनर अभिषेक जैन ने कहा, ‘इस कदम से पहले रिटर्न दाखिल करने में चूक करने वाले विभिन्न कारोबारियों को अब इसे दाखिल करने के लिए प्रोत्साहन मिलना चाहिए।’
उन्होंने कहा कि इन रियायतों को कुछ लोग समय पर कर देने वालों के लिए नुकसानदेह कदमों के तौर पर देख सकते हैं लेकिन ये कदम अति आवश्यक है विशेष तौर पर छोटे और मध्यम आकार के कारोबारियों के लिए।
