तेल उत्पादन और निर्यात करने वाले देशों के संगठन ओपेक प्लस ने कच्चे तेल के उत्पादन में चल रही कटौती मार्च 2025 तक जारी रखने का फैसला किया है। लेकिन इस कटौती से भारत पर किसी तरह का असर होने की संभावना नहीं है। पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के अधिकारियों के मुताबिक वैश्विक औद्योगिक मांग में गिरावट और रूस से कच्चे तेल पर छूट जारी रहने के कारण भारत इस कटौती से किसी तरह की परेशानी में नहीं पड़ेगा।
ओपेक प्लस देश आज अपनी बैठक के दौरान उत्पादन में स्वैच्छिक कटौती जारी रखने पर सहमत हो गए। इसके मुताबिक अभी चल रही 22 लाख बैरल प्रतिदिन की कटौती अगले साल मार्च तक चलती रहेगी। उसके बाद हर महीने धीरे धीरे घटाकर सितंबर 2026 तक यह कटौती खत्म कर दी जाएगी। नवंबर 2023 से जारी इस कटौती में सऊदी अरब और रूस सहित तमाम तेल उत्पादक देश शामिल थे। इन देशों ने अभी चल रही 16.5 लाख बैरल प्रतिदिन की कटौती भी दिसंबर 2026 के अंत तक जारी रखने का फैसला किया। इस कटौती की घोषणा अप्रैल 2023 में की गई थी।
हालांकि अधिकारियों ने कहा, ‘ये घोषणा नई नहीं है और उत्पादन में कटौती पहले से ही चल रही है। भारत को मिलने वाले कच्चे तेल पर इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा।’ उन्होंने अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के नवंबर के आंकड़ों का जिक्र किया जिनके मुताबिक कटौती जारी रहने पर भी 2025 में मांग के मुकाबले 10 लाख बैरल रोजाना ज्यादा उत्पादन होगा।
एसऐंडपी ग्लोबल कमोडिटी इनसाइट का हिस्सा प्लैट्स के मुताबिक, ब्रेंट के मुकाबले रूसी यूराल ग्रेड के कच्चे तेल की कीमत में औसत कमी अक्टूबर तक तीन महीने में 12.1 डॉलर पर स्थिर रही।
पश्चिम एशिया में चल रहे तनाव और अन्य अनिश्चितताओं के बावजूद कंपनी को ब्रेट क्रूड की कीमत साल 2025 में औसतन 70 डॉलर प्रति बैरल के आसपास रहने की उम्मीद है, जो साल 2024 के 81 डॉलर से कम है। वैश्विक स्तर पर तेल की कम मांग के बावजूद गैर ओपेक स्रोतों से उत्पादन बढ़ने की उम्मीद है, जो कीमतों में कमी की एक वजह होगा।
सऊदी अरब, ईरान, इराक, वेनुजुएला सहित 13 देशों के संगठन ओपेक को अर्थशास्त्री कार्टेल बताते हैं। साल 2018 तक दुनिया भर के तेल उत्पादन का करीब 44 फीसदी और साबित तेल भंडार का 81.5 फीसदी ओपेक देशों के पास था। इनमें रुस समेत अन्य दस ओपेक प्लस देश भी शामिल हैं।