अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने वित्त वर्ष 2021 में चीन की जीडीपी सकारात्मक रहने का अनुमान जाहिर किया है जबकि भारत की जीडीपी -4.5 फीसदी रहने की भविष्यवाणी की है।
दूसरी तिमाही में चीन की अर्थव्यवस्था की रफ्तार 3.2 फीसदी रही जबकि पहली तिमाही में उसमें 6.8 फीसदी की सुस्ती देखने को मिली थी। यह जानकारी चीन के नैशनल ब्यूरो ऑफ स्टेस्टिक्स से मिली। इसकी वजह कोरोनावायरस पर नियंत्रण में कामयाबी और सरकाकर से नीतिगत सहारा है। विभिन्न एजेंसियों ने वित्त वर्ष 2021 में भारत की बढ़त की रफ्तार 1.3 फीसदी से -9.5 फीसदी रहने का अनुमान जताया है।
बढ़त की रफ्तार में अंतर के कारण विदेशी निवेश पर असर और उभरते बाजारों के पोर्टफोलियो का झुकाव चीन की तरफ दिख सकता है और इस तरह से अप्रत्यक्ष तौर पर भारत प्रभावित हो सकता है। यह कहना है विशेषज्ञों का।
एंबिट ऐसेट मैनेजमेंट के सीओओ और बिक्री प्रमुख सिद्धार्थ रस्तोगी ने कहा, चीन पर बाजार के प्रतिभागियों का नजरिया मंदी का था, लेकिन इस देश ने महामारी पर नियंत्रण पा लिया और आर्थिक गतिविधियां दोबारा शुरू कर दी। अगर यह देश अगली कुछ तिमाहियों में बढ़त दर्ज करता है तो उभरते बाजारों का आवंटन चीन का रुख कर सकता है, जो अप्रत्यक्ष तौर पर भारत जैसे देश को मिलने वाले निवेश पर असर डाल सकता है।
पूरी दुनिया कोरोना के नए मामलों से जूझ रही है, लेकिन दुनिया भर के वित्तीय बाजारों में कोविड-19 के इलाज पर प्रगति के कारण तेजी दिखी है।
इस साल अब तक हालांकि एफपीआई ने भारतीय बाजार से करीब 11,000 करोड़ रुपये की निकासी की है, लेकिन मई के बाद से वे शुद्ध खरीदार बने हुए हैं।
रस्तोगी ने कहा कि मध्यम से लंबी अवधि में शेयर को अंतत: आगे बढ़ाने वाला है आय की रफ्तार और निफ्टी ने पिछले 3 से 5 साल में एक अंक में आय में बढ़ोतरी दर्ज की है, जो चिंताजनक है।
हालांकि जीडीपी के आंकड़ों के आधार पर कई लोगों का मानना है कि भारत विदेशी निवेश के मामले में चीन से पिछड़ जाएगा। भारत की असूचीबद्ध कंपनियां जीडीपी में काफी योगदान करती हैं और नकारात्मक जीडीपी का असर सूचीबद्ध कंपनियों पर पड़ेगा, जिनके फंडामेंटल अच्छे हैं। हालांकि अमेरिका व अन्य देशों के साथ चीन का भूराजनैतिक तनाव बढ़ता है तो उसका कारोबार प्रभावित हो सकता है।
डाल्टन कैपिटल एडवाइजर्स के निदेशक यू आर भट्ट ने कहा, अगर सूचीबद्ध कंपनियों के शेयर अर्थव्यवस्था में सुधार के अनुमान से बढ़ते हैं तो भारत विदेशी निवेश आकर्षित करता रहेगा, चाहे जीडीपी में कमी क्यों न हो। निवेशक संभावित बढ़त मेंं रुचि रख रहे हैं, न कि आर्थिक सुस्ती के दौरान आने वाले आंकड़ों में। अगर यहां से और सुधार होता है तो हमें निवेश मिलेगा।
किसी देश में एफपीआई निवेश कई चीजों पर निर्भर करता है मसलन आर्थिक आंकड़े, सॉवरिन रेटिंग, उसका राजनीतिक स्थायित्व, मुद्रा, कराधान, कंपनियों की आय और संभावित रिटर्न।