अर्थव्यवस्था

पीतल नगरी मुरादाबाद पर अमेरिकी टैरिफ से संकट, कारीगर बेरोजगार और निर्यात में भारी गिरावट से उद्योग ठप

अमेरिकी टैरिफ और चीन के सस्ते सामान ने मुरादाबाद के पीतल उद्योग को संकट में डाला, कारीगर बेरोजगारी झेल रहे हैं और निर्यात ऑर्डर रद्द होने से कारोबार ठप हो रहा है

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हर्ष कुमार   
Last Updated- September 14, 2025 | 9:16 PM IST

पीतलनगरी के नाम से मशहूर मुरादाबाद की एक गली में हल्की रोशनी वाले कमरे में 62 वर्षीय पीरजादा जफर खान बैठे हैं। कुल 10×13 वर्ग फुट के उस छोटे से कमरे में उनके साथ 7 अन्य कर्मचारी भी हैं। खान पिछले कई साल से यहां दीये बनाने का काम करते हैं और अपने हाथ के बने दीयों से न जाने कितनी दीवाली रोशन कर चुके हैं। उनके उपकरण फर्श पर बिखरे पड़े हैं और माथे पर  चिंता की लकीरें हैं। वह कहते हैं कि ऑर्डर रद्द हो रहे हैं और कच्चा माल यूं ही पड़ा हुआ है। व ह अपनी स्थानीय बोली में बताते हैं, ‘यह हमारा कमाई का सीजन होता था, लेकिन निर्यातक सामान नहीं उठा रहे हैं।’

वास्तव में हर वर्ष त्योहारों से पहले यह उनका सबसे व्यस्त समय माना जाता था, लेकिन हैंडीक्राफ्ट डेवलपमेंट सोसाइटी के अध्यक्ष मोहम्मद नोमान मंसूरी बताते हैं कि अमेरिकी टैरिफ से कारोबार पर बुरा असर पड़ा है। वह कहते हैं, ‘निर्यात ऑर्डर रद्द होने से उत्पन्न हुआ संकट सीधे कारीगरों को मार रहा है।’

पिछले महीने अमेरिका द्वारा भारतीय सामान पर लगाए गए 50 प्रतिशत टैरिफ के बाद से कारोबार और आजीविका को लेकर चिंता पीतल नगरी में साफ देखी जा सकती है। खान के अनुसार, ‘कई कारीगरों ने पहले ही काम छोड़ दिया है। उन्होंने रिक्शा चलाना शुरू कर दिया है या दैनिक वेतन पर मजदूरी कर रहे हैं। वे और क्या कर सकते हैं?’

दशकों से पीतल धातु के कारोबार से जुड़े 50 वर्षीय परवेज खान कहते हैं, ‘ऐसे समय जब हमें सबसे ज्यादा कमाई करनी चाहिए, चीजें बदतर होती जा रही हैं। भारतीय बाजारों में इन उत्पादों के खरीदार नहीं हैं। इनकी जगह चीन के बने सामान हर तरफ दिखते हैं। कच्चा माल दिन प्रतिदिन महंगा होता जा रहा है, जिससे पीतल के बर्तन बनाने में लागत बढ़ गई है। चीन के सस्ते सामान के सामने ये महंगे आइटम टिक ही नहीं पाते।’

मुरादाबाद के समक्ष बड़ा संकट

देश-विदेश में पीतल नगरी के नाम से विख्यात मुरादाबाद के सामने बड़ा संकट आ खड़ा हुआ है। देश के कुल हैंडीक्राफ्ट निर्यात में इस शहर की हिस्सेदारी 40 प्रतिशत से अधिक है। यहां गली-गली में पीतल के बर्तन बनाने की मशीनें लगी हैं। छोटे-छोटे घरों-कमरों में कारीगर पीतल पर कसीदाकारी करते दिख जाएंगे। एक अन्य गली में 32 वर्षीय अफजल साइकिल से पीतल के बर्तन बनाने में इस्तेमाल होने वाला कच्चा माल ले जा रहे हैं। वह कारीगरों के घरों में सामग्री की आपूर्ति करते हैं। वह कहते हैं, ‘यहां ज्यादातर घर पीतल उद्योग से जुड़े हैं। महिलाएं पीतल को प्राथमिक आकार देती हैं। उसके बाद माल फिनिशिंग के लिए छोटी इकाइयों में जाता है।’

अफजल के अनुसार, पिछले साल मांग बहुत अधिक थी। इस बार छोटे विक्रेता कम ऑर्डर के कारण अपना काम जल्दी खत्म कर रहे हैं। वे बताते हैं, ‘मंदी की  स्थिति में महिलाओं को सबसे ज्यादा नुकसान होता है, क्योंकि उनके हाथ से वह काम छिन जाता है, जिसे वह अपने घर में ही बैठकर आसानी से कर लेती है, जिससे उन्हें घर चलाने के लिए एकमुश्त रकम मिल जाती है।’

इस  संवाददाता को अपनी नीली स्कूटी से शहर की भीड़ भरी गलियों में घुमाकर पीतल नगरी की दिनचर्या से वाकिफ कराने वाले मंसूरी टिप्पणी करते हुए कहते हैं, ‘अगर सरकार ने तुरंत हस्तक्षेप नहीं किया, तो कई छोटी इकाइयां बंद हो जाएंगी और उनके साथ पीढ़ियों की दस्तकारी लुप्त हो जाएगी।’

विदेश में जबरदस्त मांग

देश भर में पीतल के बर्तन मुरादाबाद से जाते ही हैं। ब्रिटेन, अमेरिका, पश्चिम एशियाई देश, जर्मनी और कनाडा जैसे देशों में भी इनकी बहुत अधिक मांग है। इस शहर में लगभग 600 निर्यात इकाइयां हैं। यह शहर हर साल लगभग 4,500 करोड़ रुपये के सामान का निर्यात करता है। जिला प्रशासन पोर्टल के अनुसार, विदेशी खरीदारों की जरूरत के अनुसार यहां लोहे की चादर, मेटल बर्तन, एल्युमीनियम, कलाकृतियां और कांच के बर्तन सहित कई अन्य उत्पाद भी बनाए जाते हैं, जिनका निर्यात होता है।

अस्सी वर्षीय सुभाष चंद्र भाटिया का परिवार देश के विभाजन के बाद मुरादाबाद आकर बस गया था। कारोबार को लेकर वह भी अनि श्चितता के भंवर में डूबे हैं। वे कहते हैं, ‘हमारा मुख्य बाजार अमेरिका था, जहां शोकेस पीस, कैंडल स्टैंड, लैंप निर्यात किए जाते हैं। अब सारा सामान रुका हुआ है। हमारे पास 50 से अधिक कारीगर हैं, जिनके पास अब कोई काम नहीं है। सब खाली बैठे हैं।’

भाटिया कहते हैं, ‘यूरोपीय बाजार एक दशक से भी अधिक समय से ठंडा पड़ा है। हमारा 80 फीसद माल अमेरिका जाता है। हमारा कारोबार 5 से 6 करोड़ रुपये तक होता था, लेकिन इस साल यह 1 से 2 करोड़ रुपये तक सिमट सकता है।’

अमेरिकी बाजार के शांत पड़ने से नौकरी छूटने और छंटनी का संकट सामने खड़ा है। कारीगर यूरोप से अपने पुराने ग्राहकों के साथ दोबारा संपर्क साधने की को शिश कर रहे हैं, लेकिन क्या करें, उनके पुराने ग्राहक अब जीवित ही नहीं हैं। इसलिए वहां से दोबारा कारोबार जोड़ना आसान नहीं है।

भाटिया और उनके जैसे अन्य लोगों के लिए पश्चिम एशियाई बाजार बहुत अ धिक मुफीद नहीं है। वह कहते हैं, ‘संयुक्त अरब अमीरात और अन्य अरब देशों से इतनी मांग नहीं है कि उनका ज्यादा माल खप जाए। उनके पास पहले से आपूर्तिकर्ता मौजूद हैं।’

इन्हीं दिक्कतों के साथ भाटिया अपने बेटे और दामाद के साथ व्यवसाय को बनाए रखने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। हैंडीक्राफ्ट डेवलपमेंट कमेटी के अध्यक्ष सुरेश कुमार गुप्ता कहते हैं, ‘हमें सरकार से तत्काल मदद की दरकार है। कारोबार को सहारा देने के लिए सरकार वित्तीय मदद, टैक्स में छूट जैसे उपाय कर इन इकाइयों को बचा सकती है। यदि सरकार हस्तक्षेप नहीं करती है तो न केवल मुरादाबाद, बल्कि इस शिल्प से जुड़े गांवों और कस्बों में कितने ही लोग बेरोजगारी के भंवर में फंस जाएंगे।’

4-5 जिलों की पूरी बेल्ट पर असर

पीतल का काम अकेले मुरादाबाद में ही नहीं होता है। आसपास के जिले जैसे संभल, अपने हॉर्न ऐंड बोन वर्क, अमरोहा लकड़ी की कारीगरी, रामपुर पॉलिश और यहां तक कि बिजनौर एवं मेरठ के क्लस्टर भी पूरी तरह इस निर्माण श्रृंखला से जुड़े हैं। ओमेक्स ट्रेडिंग ऐंड ओम संस ओवरसीज के प्रबंध निदेशक महेश चंद्र अग्रवाल बताते हैं कि मंदी ने इस पूरी बेल्ट को बुरी तरह प्रभावित किया है। मुरादाबाद स्पेशल इकनॉमिक जोन (एसईजेड) 2003 में बड़ी उम्मीद के साथ स्थापित किया गया था। अब दो दशक बाद रामगंगा के किनारे बसे उत्तर प्रदेश के इस शहर में आगे बढ़ने की जबरदस्त इच्छाश  क्ति नजर आती है। बर्तन और पीतल के अन्य सामान निर्माता, कारीगर तथा निर्यातक सब चाहते हैं कि सरकार इस कठिन समय से उबरने में उनकी मदद करे।

First Published : September 14, 2025 | 9:05 PM IST