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भारत पर दबाव के लिए अमेरिका ने लगाया है 25% शुल्क: रघुराम राजन

बातचीत से जो उभर कर आता है, वह एक व्यापक इरादे का संकेत है। विस्तार से बातचीत होनी चाहिए। इसमें यह भी शामिल है कि शुल्क ढांचे का भारत पर क्या असर होगा।

Last Updated- July 31, 2025 | 11:11 PM IST
Raghuram Rajan

भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर और शिकागो विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर रघुराम राजन ने कहा कि अमेरिका ने 1 अगस्त से भारत पर 25 प्रतिशत शुल्क लगा दिया है, जो अस्थायी दंडात्मक शुल्क और भारत को अमेरिका की मांग मनवाने का एक तरीका हो सकता है। जूम इंटरव्यू पर श्रेया नंदी से बात करते हुए राजन ने कार पर कर घटाने की वकालत की, लेकिन छोटे डेरी व कृषि उत्पादकों के मामले में संवेदनशीलता बरतने की जरूरत पर बल दिया। संपादित अंश:

भारत सहित विभिन्न देश या तो अमेरिका के साथ व्यापार समझौते पर बात कर रहे हैं, या नए शुल्क के मुताबिक तैयारी कर रहे हैं। आपके मुताबिक वैश्विक व्यापार पर इसका क्या असर पड़ेगा?

वैश्विक व्यापार में कुछ व्यवधान चल रहा है। हर देश विशेष पैकेज के लिए बात कर रहा है, जो एकसमान नहीं है और इसकी वजह से कुछ चिंता पैदा हो रही है। आपूर्ति श्रृंखला को कम कुशल लेकिन कम शुल्क वाली इकाई में स्थानांतरित किया जाएगा। इसके अलावा, ट्रांसशिपमेंट के कुछ प्रयास भी किए जाएंगे और आपूर्ति श्रृंखलाओं का पुनर्गठन भी किया जाएगा।

अमेरिका के ग्राहकों के हिसाब से देखें तो तमाम उत्पादों की कीमत बढ़ने जा रही है। अमेरिका के राष्ट्रपति का कहना है कि विदेशी उत्पादक शुल्क का भुगतान करेंगे, लेकिन हम जानते हैं कि उत्पादक पर पड़े शुल्क का बोझ कुछ हद तक ही उस पर पड़ता है,ज्यादा बोझ आयातकों और ग्राहकों को ही उठाना पड़ता है।

व्यापक हिसाब से देखें तो अमेरिका में दूसरी छमाही में सुस्ती आएगी और कीमतों में थोड़ी वृद्धि होगी, जिसकी वजह से फेड को ब्याज दर में तेज कटौती करने में दिक्कत होगी।

क्या भारत इस व्यवधान से निपटने के मामले में सही दिशा में है?

बातचीत से जो उभर कर आता है, वह एक व्यापक इरादे का संकेत है। विस्तार से बातचीत होनी चाहिए। इसमें यह भी शामिल है कि शुल्क ढांचे का भारत पर क्या असर होगा। उदाहरण के लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) पर क्या असर होगा। साथ ही यह भी देखना होगा कि किस तरह की गैर शुल्क बाधाएं हैं। भारत के लिए यह तुलनात्मक रूप से लाभदायक स्थिति हो सकती है, अगर भारत अपने प्रतिस्पर्धियों से कम शुल्क पर समझौते कर लेता है।

दूसरे, भारत को अपने शुल्क को भी कुछ क्षेत्रों में शुल्क कम करना होगा, जिससे घरेलू प्रतिस्पर्धा हो सके। कुछ क्षेत्रों में भारत के उत्पादको के लिए प्रतिस्पर्धा बहुत फायदेमंद हो सकती है और उनके ऊपर बेहतर करने का दबाव बन सकता है। इसे हम दोनों के लिए नुकसानदेह के बजाय दोनों के लिए फायदेमंद बना सकते हैं। भारत के लिए यह सोचना जरूरी है कि वह अमेरिका को किन क्षेत्रों में छूट देना चाहता है। उदाहरण के लिए जब हम अमेरिका को बड़े पैमाने पर सेवाएं बेच रहे हैं, तो क्या यह संभव है कि हमारी सेवाओं के प्रवेश में आने वाली कुछ बाधाएं कम हो जाएं? क्या हम ऐसे तरीके खोज सकते हैं जिनसे चिकित्सा पर्यटन को बढ़ावा दिया जा सके?

कौन से क्षेत्रों में भारत कर घटा सकता है?

अमेरिकी प्रशासन का सबसे ज्यादा ध्यान कार पर है। सही कहें तो हमारा कार उद्योग अब बच्चा नहीं है। कार पर शुल्क कम न करने की कोई वजह नहीं है। हमारे कार उद्योग में ज्यादा प्रतिस्पर्धा की जरूरत है।

भारत पर 25 प्रतिशत शुल्क का क्या असर होगा?

इसे अस्थायी दंडात्मक शुल्क तथा भारत को अमेरिकी शर्तें स्वीकार करने के लिए मजबूर करने का प्रयास के रूप में देखा जाना चाहिए। मैं आश्चर्यचकित हीं, क्योंकि मुझे लगता था कि सरकार के अमेरिका के साथ अच्छे संबंध हैं।

मुझे लगता है कि जब हम कहते हैं कि सब कुछ लेन-देन पर आधारित है, तो हमें दूसरों से भी इसी तरह व्यवहार की अपेक्षा करनी चाहिए। किसी भी कीमत पर कुछ उत्पादों को इससे बाहर करना होगा, जिन्हें पहले ही भेजा जा चुका है, अन्यथा यह बहुत व्यवधान पैदा करने वाला होगा।
दूसरे, मुझे भरोसा है कि भारत के हर निर्यातक ने ऐसे इंतजाम किए होंगे कि जहाज की खेप कर लगने की समयावधि के पहले पहुंच जाए, क्योंकि उन्हें पता है कि सिर्फ भेजने का ही विकल्प होता है, वापसी का नहीं।

अमेरिका के खरीदारों ने इस तरह की वस्तुओं का पर्याप्त भंडारण कर लिया होगा। अभी हर पहलू पर विचार हो रहा है, ऐसे में स्थिति साफ होने तक भारत के निर्यातक निर्यात धीमा कर देंगे और शुल्क को लेकर स्थिति साफ होने तक इंतजार करेंगे।

किन क्षेत्रों में भारत को सावधानी बरतनी चाहिए?

अब हमारे पास घोषणा करने का असवर है कि हम भारतीय निवेशकों की ही तरह विदेशी निवेशकों के साथ भी व्यवहार करेंगे और कोई भेदभाव नहीं होगा। यह एक अवसर है, क्योंकि कंपनियां अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं पर विचार कर रही हैं और शुल्क के हिसाब से इस पर नए सिरे से विचार कर रही हैं। हम इस तरह का संदेश भेजकर निवेश आकर्षित कर सकते हैं।

किसी तरह का व्यवधान भी एक अवसर होता है। भारत के कारोबारियों को ज्यादा बोल्ड, आक्रामक होने और भारतीय राज्यों को भारतीय उद्योगपतियों से हाथ मिलाने का अवसर है।

मुझे चिंता है कि कुछ छोटे उत्पादक, विशेषकर डेरी जैसे क्षेत्रों में, कृषि के कुछ क्षेत्रों में वैश्विक प्रतिस्पर्धा में पिछड़ सकते हैं। अगर इन क्षेत्रों में दूसरा पक्ष बड़े पैमाने पर सब्सिडी दे रहा है, तो जरूरी नहीं कि हम इसमें निष्पक्ष हों। हर कोई कृषि पर सब्सिडी देता है। यह ऐसा क्षेत्र है, जिस पर वैश्विक समझौतों के दौरान हमें बहुत ज्यादा संवेदनशील होने की जरूरत है।

First Published - July 31, 2025 | 11:04 PM IST

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