भारत को गूगल टैक्स के मामले में अमेरिका की जवाबी कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है, जैसा कि उसने डिजिटल सर्विस टैक्स की प्रतिक्रिया में फ्रांस के खिलाफ की है। उद्योग और कर से जुड़े विशेषज्ञों ने यह आशंका जताई है।
यूएस ट्रेड रिप्रजेंटेटिव (यूएसटीआर) ने शुक्रवार को फ्रांस के उत्पादों पर 25 प्रतिशत अतिरिक्त शुल्क लगाने की घोषणा की थी। अमेरिका ने यह कार्रवाई फ्रांस द्वारा डिजिटल सर्विस टैक्स लगाने के जवाब में की है। बहलहाल अमेरिका ने अतिरिक्त शुल्क लगाया जाना 180 दिन के लिए स्थगित रखा है, जिससे द्विपक्षीय व बहुपक्षीय बातचीत के लिए अतिरिक्त समय मिल सके।
यह कार्रवाई अमेरिका और डिजिटल सर्विस टैक्स का प्रस्ताव लाने वाले देशों के बीच चल रही व्यापक लड़ाई का हिस्सा है। भारत ने इक्वलाइजेशन लेवी की संभावनाओं का विस्तार किया है, जिसे गूगल टैक्स के नाम से जाना जाता है। इसकी वजह से भारत पर भी इसका असर पडऩे की संभावना है। भारत में पहली बार गूगल टैक्स 2016 में लगाया गया था, जो सभी विदेशी ई-कामर्स लेन-देन पर अतिरिक्त 2 प्रतिशत लगता है, जो भारत से कारोबार कर रही हैं।
इसकी प्रमुख वजह यह है कि ज्यादातर वैश्विक टेक कंपनियां जैसे गूगल, एमेजॉन, फेसबुक, माइक्रोसॉफ्ट, ऐपल अमेरिकी कंपनियां हैं और इस तरह के प्रस्ताव से उनके ऊपर ही ज्यादा असर पड़ेगा।
कर और कंसल्टिंग फर्म एकेएम ग्लोबल के पार्टनर अमित माहेश्वरी ने कहा, ‘इन शुल्कों की प्रकृति ऐसी है कि उन्हें मौजूदा प्रारूप में उचित पाना मुश्किल है। बहुपक्षीय समाधान पर पहुंचना दोहरे कराधान से बचने का बेहतरीन उपाय है और इससे देशों को करों में साफ सुथरी हिस्सेदारी मिल सकेगी, लेकिन हम इस बात का अनुमान नहीं लगा सकते कि जल्द ही इस पर वैश्विक सहमति बन सकती है।’ उन्होंने कहा कि यह दिमाग में रखना चाहिए कि जब वस्तुओं या सेवाओंं की आपूर्ति किसी निवासी को की जाती है तो प्रवासी उस बोझ को भारत के ग्राहकों पर डालने में सक्षम होते हैं और परोक्ष रूप से इस कर का बोझ भारत के ग्राहकों को वहन करना पड़ता है।
कुछ वैश्विक फर्में 7 जुलाई की अंतिम तिथि तक कर जमा नहीं कर सकीं। वह अनुमान लगा रही थीं कि सरकार नई लेवी की समीक्षा कर सकती है। इस लेवी के तत्काल बाद इन तकनीकी दिग्गजों का प्रतिनिधित्व करने वाले उद्योग संगठनों के एक समूह ने इस नए कर को वापस लेने की मांग की थी। संगठन ने कोविड-19 के कारण इसकी अंतिम तिथि बढ़ाए जाने की भी मांग की थी। लेकिन स्थिति साफ न होने के कारण बहुत कम ने कर का भुगतान किया, जिससे कर संग्रह के आंकड़ों में भारी गिरावट आई।
डेलॉयट में पार्टनर रोहिंग्टन सिधवा ने कहा, ‘अमेरिका की सरकार ने खासकर भारतीय इक्वलाइजेशन लेवी को अनुचित करार देते हुए इसे अमेेरिकी कंपनियों को निशाना बनाने वाला करार दिया है। भारत सरकार की ओर से इसका बचाव यह कहकर किया गया है कि यह कर विभेदकारी नहीं है और सभी प्रवासी पर एक समान लगता है।’
बहरहाल फ्रांस से मिले साक्ष्यों के बारे में भी यूएसटीआर ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इसके माध्यम से मुख्य रूप से अमेरिकी कंपनियों को निशाना बनाया गया है, जो इस कर से प्रभावित होंगी।
सिधवा ने कहा कि भारत का इक्वलाइजेशन लेवी इस हिसाब से विभेदकारी है कि यह वित्तीय मध्यस्थों व बैंकिंग सेवाओं पर भी लागू होता है।
जब अमेेरिका ने विवादास्पद डिजिटल टैक्स पर बातचीत से कदम पीछे खींच लिया था तो ऑर्गेनाइजेशन फार इकोनॉमिक कोऑपरेशन ऐंड डेवलपमेंट (ओईसीडी) ने उल्लेख किया था कि विभिन्न देश अपनी तरफ से कदम उठा सकते हैं, जिसकी वजह से अमेरिका भी जवाबी कार्रवाई कर सकता है।
जैसी कि उम्मीद थी, अमेरिका ने भारत व अन्य देशों के खिलाफ जांच शुरू कर दी कि क्या डिजिटल सर्विस टैक्स अमेरिका की कंपनियों के खिलाफ भेदभाव करने वाला है और वे पूर्वव्यापी हैं या अनुचित कर नीति को दर्शाते हैं।
कर विशेषज्ञों का कहना है कि इस बात की पूरी संभावना है कि अमेरिकी जांच में पाया जाए कि भारत का डिजिटल टैक्स अनुचित और थमकी देने वाला शुल्क है, जैसा कि फ्रांस के मामले में हुआ है।
फ्रांस के उपर शुल्क तब लगाया गया है, जब यूएसटीआर ने जांच में पाया कि उसका डिजिटल सर्विस टैक्स अमेरिका की डिजिटल कंपनियों के साथ विभेद करने की रणनीति के आधार पर तैयार किया गया है।
बहरहाल उद्योग के दिग्गज ऐसा मानते हैं कि भारत के डिजिटल टैक्स में व्यापक संभावनाएं हैं। केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड के पूर्व सदस्य अखिलेश राजन ने कहा, ‘इक्वलाइजेशन लेवी संभावनाओं के हिसाब से व्यापक है और इससे कम राजस्व आता है। ऐसे में अमेरिका के लिए इस निष्कर्ष पर पहुंचना कठिन होगा कि अमेरिका की इंटरनेट कंपनियों के खिलाफ भेदभाव किया गया है।’
राजन के विचार की पुष्टि करते हुए खेतान ऐंड कंपनी के पार्टनर संजय सांघवी ने कहा, ‘किसी खास देश की कंपनी को निशाना बनाकर सीमा तय नहीं की गई है और न तो यह बहुत ज्यादा है, जिससे कि किसी देश के ई-कॉमर्स ऑपरेटर पर असर पड़े। ऐसे में मुझे यह न्यायोचित नहीं लगता, अगर कोई कहे कि भारत का नया डिजिटल टैक्स लेवी अतार्किक है या अमेरिका की कंपनियों के साथ भेदभाव करने वाला है।’
सांघवी का कहना है कि आज ई-कॉमर्स का युग है और हर कोई चाहता है कि भारत के साथ कारोबार करे क्योंकि इसका बहुत बड़ा बाजार है। ऐसे में उचित राजस्व संग्रह का कदम उठाते हुए भारत ने यह कर पेश किया, जिसे ‘भारत से कमाओ और कुछ कर भुगतान करो’ का सिद्धांत कहा जा सकता है। भारत स्रोत आधारित कराधान का पालन करता है और यह कर उसी के अनुरूप है।
