दूरसंचार विभाग (डीओटी) इस क्षेत्र की वित्तीय राहत को अंतिम रूप देने के लिए किसी बाहरी सलाहकार की नियुक्ति या समूहका गठन कर सकता है। पता चला है कि विभाग पुनरुद्धार पैकेज के लिए किसी बाहरी एजेंसी से परामर्श कर सकता है, जो वोडाफोन आइडिया के लिए जीवन रेखा साबित होने के अलावा इस क्षेत्र को राहत प्रदान कर सकती है।
सरकारी स्वामित्व वाली भारत संचार निगम के लिए पुनरुद्धार पैकेज लाने के समय केंद्र ने आईआईएम अहमदाबाद और डिलॉयट की ओर से पसंद की टिप्पणी मांगी थी। एक अधिकारी ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया ‘इन संस्थाओं के साथ विचार-विमर्श से हमें विकल्पों का बेहतर मूल्यांकन करने में मदद मिलती है।’ इस तरह की टिप्पणियों को आमंत्रित करने की प्रक्रिया में इन संगठनों से इस विषय पर संबंधित उनकी रिपोर्टों के साथ-साथ प्रस्तावों की मांग की जाती है। इसके बाद इन विचारों पर सरकार द्वारा विचार-विमर्श किया जाता है।
विभाग के सामने एक अन्य विकल्प राहत प्रस्ताव का मूल्यांकन करने के लिए एक आंतरिक समिति का गठन करना है। अधिकारी ने कहा, ‘ये विकल्प तय होने की संभावना हैं और चूंकि प्रधानमंत्री कार्यालय इस मामले में गहरी दिलचस्पी ले रहा है, इसलिए जल्द ही कुछ तय किया जाना चाहिए।’
यह घटनाक्रम ऐसे समय में आया है, जब वोडाफोन आइडिया (वी) घरेलू बाजार में अस्तित्व के लिए जूझ रही है। कंपनी गला काट प्रतिस्पद्र्धा वाले दूरसंचार बाजार में बनी रहने के लिए हर विकल्प तलाश रही है। इसने दूरसंचार विभाग से यह कहते हुए मदद मांगी है कि वह नकदी का इस्तेमाल एजीआर (समायोजित सकल राजस्व) बकाया भुगतान करने और आर्थिक रूप से कमजोर मूल्य निर्धारण वाली स्थिति में आवश्यक नकदी सृजन करने के लिए संचालन की अक्षमता के कारण 9 अप्रैल, 2022 को देय 8,292 करोड़ रुपये की किस्त का भुगतान करने में असमर्थ रहेगी। जून में वोडाफोन आइडिया ने अप्रैल 2022 में देय 8,200 करोड़ रुपये से अधिक की स्पेक्ट्रम किस्त के भुगतान पर एक साल की मोहलत मांगने के लिए सरकार से संपर्क किया था। धन जुटाने के लिहाज से वी जिन चुनौतियों का सामना कर रही है, उसने उसका उल्लेख किया था, क्योंकि निवेशक कंपनी में पैसा लगाने की अनिच्छा जता चुके हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि उनका मानना है कि जब तक उपभोक्ता शुल्कों में उल्लेखनीय सुधार नहीं होता, तब तक उद्योग की हालत में सुधार नहीं होगा और उन्हें अपने निवेश पर नुकसान उठाना पड़ेगा। कंपनी दबाव में चल रही है, जिसका अंदाजा हाल ही में शीर्ष स्तर पर हुए फेरबदल से लगाया जा सकता है। 5 अगस्त को कुमार मंगलम बिड़ला ने कर्ज में डूबी फर्म में अपनी हिस्सेदारी छोडऩे की पेशकश के बाद कंपनी के गैर-कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में पद त्याग दिया था।
नए गैर-कार्यकारी अध्यक्ष हिमांशु कपानिया हैं, जो वैश्विक जीएसएमए बोर्ड में दो साल तक सेवा कर चुके हैं और वह सेलुलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीओएआई) के अध्यक्ष भी थे। बिड़ला किसी भी सरकार या घरेलू वित्तीय संस्था को अपनी हिस्सेदारी देने तक की पेशकश कर चुके हैं। कंपनी में बिड़ला की लगभग 27 प्रतिशत की हिस्सेदारी है, जबकि वोडाफोन ग्रुप पीएलसी के पास 44 प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी है।
दूरसंचार विभाग उन कुछ शुल्कों के भुगतान की समयसीमा में ढील देने पर भी विचार कर सकता है, जो कंपनियों को सरकार को देने हैं। लाइसेंस शुल्क का भुगतान चार तिमाही किस्तों में किया जाता है।