अर्थव्यवस्था

ADB Country Director Interview: नौकरियों के लिए बुनियादी ढांचे और ढांचागत सुधार पर हो सरकार का जोर

'वैश्विक आपूर्ति के किसी झटके से जिंसों की कीमतें बढ़ेंगी और इससे RBI द्वारा महंगाई दर को 4% पर रखने की कवायदों को झटका लग सकता है और वृद्धि प्रभावित हो सकती है।

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असित रंजन मिश्र   
रुचिका चित्रवंशी   
Last Updated- June 02, 2024 | 10:06 PM IST

नौकरियों के सृजन के लिए अगली सरकार को बुनियादी ढांचे के विकास और ढांचागत सुधारों पर ध्यान जारी रखने की जरूरत है। एशियन डेवलपमेंट बैंक (एडीबी) की कंट्री डायरेक्टर (इंडिया) मिओ ओका ने कहा कि इसके साथ ही विनिर्मित वस्तुओं के प्रमुख निर्यातक बनने के लिए कवायदें तेज करने की जरूरत है। रुचिका चित्रवंशी और असित रंजन मिश्र के साथ एक ईमेल साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि भारत के लंबे सहयोगी के रूप में एडीबी सरकार के सुधार के पहल में मदद करने का इच्छुक है। प्रमुख अंश…

कम अवधि और मध्यावधि के हिसाब से भारत की वृद्धि को लेकर क्या चुनौतियां हैं?

वैश्विक चुनौतियों के बावजूद महामारी के बाद भारत की आर्थिक वृद्धि टिकाऊ साबित हुई है। बहरहाल वैश्विक आर्थिक और भू-राजनीतिक वातावरण कम अवधि के हिसाब से जोखिम पैदा कर रहा है। वैश्विक आपूर्ति के किसी झटके से जिंसों की कीमतें बढ़ेंगी और इससे भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा महंगाई दर को 4 फीसदी पर रखने की कवायदों को झटका लग सकता है और वृद्धि प्रभावित हो सकती है। इसके साथ ही जलवायु परिवर्तन अहम मसला है। भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश का ज्यादा से ज्यादा फायदा उठाना एक और बड़ी चुनौती है।

केंद्र को रिजर्व बैंक से दोगुना लाभांश मिला है। आपके मुताबिक अगली सरकार इसका किस तरह इस्तेमाल करेगी? पूंजीगत व्यय बढ़ाएगी, या राजकोषीय घाटा कम करेगी?

यह ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है कि रिजर्व बैंक का लाभांश कम या ज्यादा हो सकता है और संभवतः मध्यावधि के हिसाब से इसका राजकोषीय असर नहीं होगा। इस क्रम में फरवरी में पेश किए गए अंतरिम बजट में राजकोषीय घाटे को कम करने और पूंजीगत व्यय बढ़ाने पर ध्यान दिया गया है। इसके साथ ही अप्रैल 2024 में वस्तु एवं सेवा कर संग्रह अधिक रहा है, जिससे राजकोषीय स्थिरता के संकेत मिलते हैं। इन प्रगति को ध्यान में रखते हुए हम सालाना राजस्व लक्ष्यों में बदलाव और व्यय व उधारी योजना के समायोजन को लेकर नई सरकार के पूर्ण बजट का इंतजार कर सकते हैं।

अगली सरकार को किन सुधारों पर ध्यान रखने की जरूरत है?

ज्यादा नौकरियों के लिए सरकार को बुनियादी ढांचे के विकास और ढांचागत सुधार पर ध्यान जारी रखने की जरूरत है। श्रम और भूमि बाजार की कार्यक्षमता में सुधार जरूरी है। इस दिशा में सरकार द्वारा 29 केंद्रीय श्रम कानूनों को 2020-21 में 4 नई श्रम संहिता में समायोजित करना एक महत्त्वपूर्ण कदम था। यह जरूरी है कि राज्य सरकारें इन नई संहिताओं को तत्परता से लागू करें।

भारत को विनिर्मित उत्पादों के प्रमुख निर्यातक बनने की कवायद तेज करने और वैश्विक मूल्य श्रृंखला से इसे जोड़ने की जरूरत है। इस क्षेत्र में सफलता, खासकर श्रम केंद्रित निर्यातों से औपचारिक क्षेत्र में नौकरियों का सृजन होगा। बुनियादी ढांचे और नियामकीय सुधारों में सरकार की प्रगति के बावजूद आगे नीतिगत कार्रवाई की जरूरत है। इसमें शुल्क नीतियों को सरल करना, ट्रेड और लॉजिस्टिक्स इन्फ्रास्ट्रक्टर दुरुस्त करना और प्रतिस्पर्धी वातावरण के साथ बड़े आर्थिक क्षेत्र विकसित करना शामिल है।

इसके साथ ही कार्बन इंटेंसिटी कम करने के लिए नीतियां बनाना, शहरी योजना में सुधार और स्वास्थ्य व शिक्षा में निवेश बढ़ाना भी अहम है। सरकार को खासकर राज्य के स्तर पर प्रशासन व नियामकीय सुधार की जरूरत है। भारत के लंबे साझेदार के रूप में एडीबी शहरी, ऊर्जा, स्वास्थ्य क्षेत्रों के साथ साथ औद्योगिक गलियारों के लिए नीतिगत ढांचे, लॉजिस्टिक विकास और औद्योगीकरण व शहरीकरण के एकीकृत तरीका अपनाने में सरकार के सुधार के पहल में सहयोग का इच्छुक है।

क्या भारत का कर्ज चिंता का विषय है? केंद्र व राज्यों के लिए ऋण-जीडीपी अनुपात का आदर्श स्तर क्या है?

किसी खास स्तर पर कर्ज रखने के लक्ष्य के बजाय सरकार के ऋण जीडीपी अनुपात कम करने के लक्ष्य पर हमें नजर रखने की जरूरत है। राजस्व जुटाने में लगातार हो रहे सुधार से राजकोषीय घाटे में कमी लाने में मदद मिलेगी।

सरकार के पूंजीगत व्यय के बावजूद निजी क्षेत्र का पूंजीगत व्यय क्यों नहीं बढ़ रहा है?

महामारी से रिकवरी के बाद मांग पूरी करने के लिए पर्याप्त क्षमता थी। इसकी वजह से निजी निवेश रुका रहा। भू-राजनीतिक तनाव, खासकर यूक्रेन पर रूस के हमले और इनपुट की कीमतों के दबाव से भी निवेशकों का उत्साह कम हुआ है।

बढ़ते युवा कार्यबल को देखते हुए रोजगार देने की चुनौती से भारत को कैसे निपटना चाहिए?

निजी क्षेत्र के लिए यह महत्त्वपूर्ण है कि वह श्रमिकों की मांग बढ़ाए और यह सुनिश्चित करे कि कामगारों को सही शिक्षा और कौशल मिल सके। साथ ही हमें महिला कामगारों की कार्यबल में हिस्सेदारी बढ़ाने की जरूरत और नौकरियों के सृजन व उसके लिए माहौल बनाने पर भी ध्यान देना चाहिए। ऑटोमेशन व आर्टिफिशल इंटेलिजेंस को लेकर चिंता कुछ ज्यादा ही डरावनी लगती हैं। इतिहास बताता है कि नई तकनीकों से हमेशा नई नौकरियों व पेशों का सृजन होता है।

First Published : June 2, 2024 | 10:06 PM IST