कंपनियों को संबंधित पक्षों की ओर से दी गई कॉर्पोरेट गारंटी राशि का 1 फीसदी या वास्तविक प्रतिफल, जो भी अधिक हो, पर 18 फीसदी की दर से वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) वसूला जाएगा। हालांकि कंपनी के प्रवर्तक या निदेशक की ओर से दी जाने वाली व्यक्तिगत गारंटी पर संभवत: कोई कर नहीं लगेगा।
जीएसटी परिषद की शनिवार को होने वाली बैठक के एजेंडे की जानकारी रखने वाले लोगों ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि यह स्पष्टीकरण परिषद की बैठक में लाया जा सकता है। इसे मंजूरी मिलने के बाद कॉर्पोरेट और व्यक्तिगत गारंटी के मूल्यांकन पहलू तथा कर देनदारी पर स्पष्टता के लिए परिपत्र जारी किया जाएगा।
यदि यह लागू होता है तो संबंधित पक्षों के बीच व्यक्तिगत गारंटी और कॉर्पोरेट गारंटी से संबंधित जीएसटी लगाने की पात्रता को लेकर विवाद का समाधान हो सकता है। अभी तक जीएसटी व्यवस्था के तहत इस तरह की गतिविधियों से संबंधित नियमों में स्पष्टता नहीं होने के कारण कर अधिकारियों और करदाताओं द्वारा कर योग्य मूल्य निर्धारित करने के लिए अलग-अलग तरीके का उपयोग किया जा रहा है।
सूत्रों ने कहा, ‘फील्ड अधिकारियों द्वारा जीएसटी ऑडिट के दौरान विवाद को देखते हुए व्यापार संगठनों से कर योग्यता तथा मूल्यांकन में स्पष्टता की मांग को लेकर कई प्रस्तुतिकरण प्राप्त हुए हैं।’ कुछ का तर्क था कि होल्डिंग कंपनियों द्वारा सहायक इकाइयों को दी जाने वाली पूरी राशि पर जीएसटी लगाया जाना चाहिए जबकि कुछ ने जीएसटी के पहले के मामलों का हवाला दिया। जिसमें कहा गया है कि कॉर्पोरेट गारंटी बैंक गारंटी की तरह है और इस पर वसूले गए कमीशन के आधार पर जीएसटी लगाना चाहिए।
अगस्त और सितंबर में परिषद की विधि समिति की कई बैठकों में इस मुद्दे पर विचार-विमर्श किया गया। व्यापक चर्चा के बाद विधि समिति ने आयकर कानून के तहत सेफ हार्बर नियमों की तर्ज पर मूल्यांकन के नियम अपनाने का सुझाव दिया।
मामले के जानकार एक शख्स ने कहा, ‘सेफ हार्बर से संबंधित 10डी नियम के तहत पात्र अंतरराष्ट्रीय लेनदेन में दी गई कॉर्पोरेट गारंटी के लिए न्यूनतम स्वीकार्य कमीशन/शुल्क गारंटी की कुल राशि का 1 फीसदी है। इसलिए हमने जीएसटी के तहत भी संबंधित पक्षों के मामले में इसे अपनाने का प्रस्ताव दिया है।’ इसका प्रस्ताव करते हुए विधि समिति ने केंद्रीय जीएसटी के शेड्यूल 1 का जिक्र किया, जिसमें कहा गया है,
‘संबंधित व्यक्तियों के बीच जब कारोबार को बढ़ाने के लिए वस्तुओं एवं सेवाओं या दोनों की आपूर्ति की जाती है तो उसे आपूर्ति के रूप में माना जाएगा, भले ही वह बिना प्रतिफल के की गई हो।’ हालांकि समिति का मानना है कि देश भर में समान कानून लागू करने के लिए इस तरह की गतिविधियों को स्पष्ट करना चाहिए। सूत्रों ने कहा कि परिषद द्वारा बैठक में इन सुझावों को मंजूरी मिलने की उम्मीद है।
कॉर्पोरेट गारंटी समूह की कंपनियों में एक समझौता होता है, जिसमें संबंद्ध (आम तौर पर प्रवर्तक कंपनी) इकाई अपनी समूह की कंपनियों द्वारा बैंकों से कर्ज जुटाने के लिए गारंटर की भूमिका के लिए सहमत होता है। इस तरह के समझौते में कोई प्रतिफल नहीं मिलता है या कुल ऋण राशि के आधार पर मामूली कमीशन मिलता है।