विश्व बैंक की पाबंदी मामले को तूल नहीं देना चाहती विप्रो

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 09, 2022 | 9:37 PM IST

भारतीय सॉफ्टवेयर उद्योग को एक के बाद एक झटके लग रहे हैं। पहले जहां सत्यम प्रकरण सामने आया।


वहीं अब विश्व बैंक ने देश की तीसरी सबसे बड़ी सॉफ्टवेयर सेवा प्रदाता कंपनी विप्रो टेक्नोलॉजिज पर चार साल का प्रतिबंध लगा दिया है।


हालांकि विश्व बैंक के साथ कंपनी का कारोबार बहुत कम है, लेकिन यह प्रतिबंध दुनिया की जानी-मानी संस्था विश्व बैंक की ओर से लगाया गया है।

लिहाजा इसे भारतीय सूचना प्रौद्यौगिकी उद्योग के लिए बड़ा धक्का माना जा रहा है। इस मुद्दे पर विप्रो के संयुक्त मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) गिरीश परांजपे से विभु रंजन मिश्रा ने बातचीत की। प्रमुख अंश :

कंपनी के बारे में विश्व बैंक के हालिया खुलासे की वजह क्या है?

वास्तव में यह मामला दो साल पुराना है।

लेकिन विश्व बैंक की आंतरिक नीतियों में हुए परिवर्तन के चलते यह मामला अब सामने आ रहा है। जब 2000 में हमारी कंपनी को अमेरिकन डिपॉजिटरी रिसीट (एडीआर) के लिए अमेरिका में सूचीबद्ध किया गया था।

तो उस समय के अमेरिकी कानून और प्रतिभूति विनिमय आयोग प्रमाणन योजना के अनुसार ही हमारे डायरेक्ट शेयर प्रोग्राम (डीएसपी) का संचालन किया जा रहा था।

उस समय हमें कर्मचारियों, ग्राहकों और अंशधारकों को बाजार भाव पर शेयर जारी करने की अनुमति दी गई थी। तब एक शेयर का भाव 41 डॉलर हुआ करता था।

हमें 5 फीसदी तक ही शेयर जारी करने की अनुमति दी गई। यही नहीं, किसी व्यक्ति को जारी होने वाले शेयरों की सीमा भी तय कर दी गई।

आपके कहने का मतलब है कि तब (2000 में) यही नीति प्रचलित थी?

हां, उस समय यह नीति प्रचलित थी। उस समय करीब 93 फीसदी कंपनियां जिसने एडीआर जारी किया था, ने इसी शेयर खरीद कार्यक्रम को अपनाया था। ऐसे में हमने प्रचलित पद्धति को ही अपनाया।

हमने इसकी पेशकश अपने कर्मचारियों, ग्राहकों और दूसरे हिस्सेदारों को की। कुछ लोगों ने इसे स्वीकारा तो कुछ ने नहीं। लोगों ने शेयर के लिए आवेदन दिए और हमने उन सारे आवेदनों को अपने निवेश बैंक मॉर्गन स्टैनली के जिम्मे कर दिया।

कुल आवेदन और आरक्षण के आधार पर शेयरों का आबंटन किस तरह हो, इस बारे में मॉर्गन स्टैनली की एक नीति रही है। शेयरों का आबंटन किसे और किस तरह किया गया, इसके लिए बैंक जवाबदेह है। इसमें कंपनी की कोई भूमिका नहीं रही है। हम इससे अनजान हैं।

जब आपकी कंपनी ने विश्व बैंक के सीआईओ को शेयर आबंटित किया तो क्या विश्व बैंक को विश्वास में नहीं लिया गया?

हम नहीं जानते कि विश्व बैंक के सीआईओ ने अपने संस्थान से बातचीत की या नहीं। प्राय: जब हम किसी कंपनी के साथ करार करते हैं तो कंपनी के हरशख्स के साथ बात नहीं करते।

हम उस कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी के पास  ही जाते हैं। हमें उम्मीद होती है कि संबंधित अधिकारी को कंपनी के नियम और शर्तों के बारे में सब कुछ पता होगा और वह उसका पालन करता होगा।

मतलब कि उसे नियम और शर्तों का गहरा जानकार होना चाहिए?

हां, हम उम्मीद करते हैं कि वह जो कुछ भी कर रहा हो उसके बारे में उसे सब कुछ पता होगा।

लेकिन यह मामला अभी क्यों सामने आया?

हमारा मानना है कि अब यह मामला खत्म हो चुका है। इस मामले में कंपनी की भूमिका बहुत थोड़ी है। उनकी ओर से खरीदे गए शेयरों की कुल संख्या 1,750 है, जो कंपनी की ओर से जारी शेयरों के 1 फीसदी से भी कम है।

2007 में विश्व बैंक ने एक जांच की थी, तब बैंक ने कहा था कि बैंक के कर्मचारियों को शेयर नहीं दिए जा रहे हैं। उस समय हमने कहा था कि शेयरों का आबंटन नियमों के मुताबिक ही हो रहा है।

तभी उन्होंने एक घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किया था कि कोई मतभेद नहीं हैं। शेयरों का आबंटन निवेश बैंक द्वारा किया जाएगा।

विश्व बैंक ने कहा था कि कर्मचारियों ने आंतरिक अनुमति नहीं ली और यह अनुचित है। इसी तथ्य के आधार पर उन्होंने विश्व बैंक के साथ काम करने पर पाबंदी लगा दी।

आखिर इस मसले पर विश्व बैंक और विप्रो लंबे समय तक क्यों चुप रहे?

2007 में जांच के बाद विश्व बैंक ने इसे गोपनीय रखने का प्रस्ताव किया था। दोनों ही पक्ष इसे लेकर सहमत हो गए थे। हमारे बोर्ड को भी 2007 में इस बारे में पूरी जानकारी मिल गई थी।

लेकिन हाल में विश्व बैंक ने हमसे कहा कि उन्होंने अपनी नीति बदल ली है और वह पूरे मामले को लोगों के सामने लाने जा रहे हैं।

क्या आपको नहीं लगता कि यह विश्वास तोड़ने का मामला है?

यह मामला दो लोगों के बीच का है। दोनों के पक्षों के बीच इस मामले को लेकर कोई बाध्यकारी समझौता नहीं हुआ था। यह तो आपसी समझदारी थी।

आखिरी सवाल कि क्या आप विश्व बैंक के खिलाफ कोई कदम उठाने जा रहे हैं?

क्यों? हमने दोनों पक्षों के हित में इस मामले को बंद करने का निर्णय लिया है। हमारा मानना है कि इस मामले को ज्यादा तूल देना उचित नहीं है।

First Published : January 13, 2009 | 10:16 PM IST