टाटा का जगुआर और लैंड रोवर का अधिग्रहण अभी तक इस साल का सबसे बड़ा सौदा है।
पेश हैं इस सौदे से जुड़े कुछ वित्तीय सवालों पर टाटा मोटर्स के प्रबंध निदेशक, रवि कांत और मुख्य वित्त अधिकारी सी रामाकृष्णन से बातचीत के मुख्य अंश :
इंजन आपूर्ति पर जो अनुबंध हुआ है उसके बारे में बताइए?
टाटा मोटर्स ने अभी फोर्ड के साथ लंबी अवधि के लिए दो ब्रांडों के पावरट्रेन्स, इंजन और अन्य पुर्जों की आपूर्ति के लिए अनुबंध किया है। यह अनुबंध अगले दो से तीन सालों तक चलेगा।
क्या फोर्ड जगुआर और लैंड रोवर वाहनों के लिए वित्त जुटाने में भी मदद करेगी?
फोर्ड ऐसे किसी वाहन के लिए वित्त की सुविधा नहीं देगी, जिसे उन्होंने नहीं बनाया। हमारी इच्छा के चलते 12 महीनों की अवधि के लिए वे जगुआर और लैंड रोवर वाहनों के लिए वित्त सुविधा देने को तैयार है और पैसा इकट्ठा करने के लिए इतना समय हमारे लिए काफी है। ब्रिटेन, अमेरिका और यूरोप बाजारों में वाहनों को बेचने के लिए हम दूसरी वित्त कंपनियों से भी बात कर रहे हैं।
इस अधिग्रहण का टाटा मोटर्स के हिसाब-किताब पर कितना असर पड़ेगा? और क्या टाटा मोटर्स 100 प्रतिशत तक इन दोनों कंपनियों को खरीदगी?
यह दोनों व्यावसायिक इकाइयां ऐसे ही काम करती रहेंगी जैसे पहले कर रही थीं और इनकी परिसंपत्तियों को टाटा मोटर्स के खातों में शामिल नहीं किया जाएगा। यह कारोबार सहायक कंपनी के तले किया जाएगा। हां, हम इन दोनों का 100 प्रतिशत खरीदेंगे।
यह सौदा कब तक पूरा होने की उम्मीद है?
अभी तक तो हमने सिर्फ समझौता-पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं। शेयर खरीदने के अनुबंध तक पहुंचने में अभी समय लगेगा। इसके लिए इसके लिए विभिन्न नियामकों से स्वीकृति प्राप्त करनी होगी, जो हम अगले कुछ महीनों में ले लेंगे। हमें उम्मीद है कि अगले एक से दो महीनों के बीच में ही यह सौदा पूरा हो जाएगा।
इस सौदे के लिए पैसा कहां से जुटाएंगे?
हमने 15 महीने की अवधि के लिए 120 अरब रुपये का अंतरिम ऋण जुटा लेंगे। इसमें सौदे से संबंधित कोई भी आकस्मिक परिस्थितियां भी शामिल हैं।
आगे चलकर अंतरिम ऋण कर्ज और इक्विटी में तब्दील हो जाएगा। यह पूरा कोष कर्ज और इक्विटी का मिश्रण होगा। हम टाटा मोटर्स की सहायक कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी में विनिवेश करके भी पैसा जुटाएंगे।
आपके और दूसरी कंपनियों के कर्मचारी संगठनों और उच्च प्रबंधन के बीच के संबंधों के बारे में कुछ बताइए। क्या कुछ मसले हैं, जिन पर बात की जानी बाकी है?
हम इस समझौते को ले कर कर्मचारी संगठनों और उच्च प्रबंधन से काफी बातचीत कर चुके हैं और उनसे जो निकला उससे संतुष्ट भी हैं। हमें उम्मीद है कि उनके साथ फलदायी संबंध बना पाएंगे। इन दोनों कंपनियों के उच्च प्रबंध संघों ने इस मामले में काफी दिलचस्पी दिखाई है।
इस दौरान मिडलैंड में रतन टाटा इनसे मिले भी, जहां उन्हें टाटा से जुड़े कोई भी प्रश्न पूछने का मौका दिया गया और मुख्य कार्यकारी अधिकारी वहीं हैं। हमारा पेंशन ट्रस्टी में पूरा विश्वास है और पेंशन नियामक ने इस सौदे को अपनी मंजूरी भी दे दी है।
शोध और विकास (आरऐंडडी) और बौध्दिक संपदा आधिकार (आपीआर) के मामले में क्या हुआ?
हमारा उत्पाद और प्रक्रिया के आपीआर के लिए स्पष्ट दृष्टिकोण है कि यह किसके स्वामित्व में होगा। हम इस अनुबंध से संतुष्ट हैं।
कॉन्फ्रेंस कॉल पर हुई बातचीत