कोई जमाना था, जब रक्षा उत्पादों के बाजार का जिक्र आते ही रूस या सोवियत संघ का नाम जेहन में कौंधता था। लेकिन आज तस्वीर बदल रही है।
इस बाजार में आजकल सबसे मार्के की कोई बात नजर आ रही है, तो वह हिंदुस्तानी कंपनियों की लगातार मजबूत होती पैठ है।पिछले महीने राजधानी में संपन्न रक्षा प्रदर्शनी के दौरान भी दिग्गज कॉर्पोरेट घरानों जैसे टाटा, लार्सन ऐंड टुब्रो (एलऐंडटी) और महिंद्र डिफेंस सिस्टम्स ने रक्षा बाजार में रूस के वर्चस्व को कड़ी चुनौती दी थी। इतना ही नहीं, सार्वजनिक क्षेत्र के आठ उपक्रम भी इस दौड़ में लग गए हैं।
दौड़ की बात करें, तो बिला शक टाटा समूह की रफ्तार सबसे तेज है। तकरीबन 1,30,000 करोड़ रुपये का यह घराना रक्षा क्षेत्र में भारत का झंडाबरदार होने की राह पर चल रहा है। समूह ने इसके लिए वाकई मेहनत की है। जब 2001 में रक्षा उत्पादन के मैदान को निजी क्षेत्र के लिए खोला गया था, उसके बाद से टाटा की 98 कंपनियों ने जबर्दस्त कामयाबी हासिल की है। इनमें टाटा मोटर्स, टाटा पावर और टाटा एडवांस्ड मैटीरियल्स शामिल हैं।
समूह के वरिष्ठ अधिकारियों ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि अगले 5 साल में उसकी रफ्तार और तेज होने जा रही है। समूह 2,00,000 करोड़ रुपये के रक्षा बाजार में बड़े हिस्से पर कब्जे की मुहिम शुरू कर चुका है।
समूह के अध्यक्ष रतन टाटा के करीबी सहयोगी सुकर्ण सिंह के मुताबिक पहला कदम तो उठा भी लिया गया है। टाटा को सबसे आगे पहुंचाने के लिए दो नई कॉर्पोरेट शाखाएं बना ली गई हैं। यहां टाटा के रथ की सारथी टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स (टीएएस) होगी।
टाटा इंडस्ट्रियल सर्विसेज लिमिटेड (टीआईएसएल) वैश्विक साझेदारियों का अमला संभालेगी। इसमें तमाम अवसरों को भुनाने की कोशिश की जाएगी। इसी कंपनी के ऑफसेट कारोबार की जिम्मेदारी उमा पिल्लई को सौंपी गई है। उमा रक्षा मंत्रालय में रक्षा उत्पादन सचिव पद पर काम कर चुकी हैं। जाहिर है, टाटा की तैयारी पूरी है।
सुकर्ण बताते हैं, ‘टाटा की सभी 98 कंपनियों के पास विनिर्माण और विकास की पूरी क्षमता है।
टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज, नेल्को, आटा पावर, टाटा मोटर्स, टाइटन प्रेसिजन इंजीनियरिंग डिविजन और टाटा एडवांस्ड मैटीरियल्स वगैरह अब टीएएस और टीआईएसएल के छाते तले काम करेंगी। उन पर पूरी तरह टाटा की ही छाप होगी।’
टीएएस का काफिला कुछ ज्यादा ही तेजी से दौड़ रहा है। कंपनी सात बेहद अहम औद्योगिक लाइसेंस हासिल कर चुकी है। इन लाइसेंस के दायरे में ज्यादातर रक्षा उत्पाद आ जाते हैं। मजे की बात है कि लाइसेंस तो टीएएस को मिले हैं, लेकिन विनिर्माण और विकास का असली काम समूह की 11 दूसरी कंपनियां करेंगी। उन सभी के पास जरूरी सुविधाएं पहले से मौजूद हैं।
टीएएस के महा प्रबंधक संजय कपूर भी पहले फौज में कर्नल रह चुके हैं। टाटा की नीति का खुलासा करते हुए वह कहते हैं, ‘टीएएस और बाकी 11 कंपनियों के बीच कानूनी समझौते हो चुके हैं। जब भी कोई परियोजना हाथ लगेगी, टीएएस किसी भी कंपनी के संयंत्र को पट्टे पर लेगी, परियोजना पूरी करेगी और उसके एवज में कंपनी को भुगतान भी करेगी। यह पूरी तरह से कारोबारी सौदा है।’
केवल तैयारी नहीं है, सौदे भी शुरू हो चुके हैं। रक्षा प्रदर्शनी के दौरान टीएएस ने अमेरिकी हेलीकॉप्टर निर्माता कंपनी सिकोर्स्की एयरक्राफ्ट कॉर्पोरेशन के साथ समझौते किए हैं। कंपनी अमेरिकी एस-92 हेलीकॉप्टरों के लिए केबिन बनाएगी। इतना ही नहीं, आउटसोर्सिंग का भारत का अब तक का सबसे बड़ा साझा उपक्रम भी टाटा की मुट्ठी में है। यह करार बोइंग के साथ हुआ है।
टाटा के हाथ आए रक्षा लाइसेंस
युद्धभूमि में पारदर्शिता और नेटवर्क बढ़ाने वाले उपकरण
जमीनी और समुद्री हथियारों को असेंबल करना
सैन्य उत्पादों का विनिर्माण
इलेक्ट्रॉनिक युद्धक प्रणाली
जमीनी, समुद्री और वायु आक्रमण एवं निगरानी प्रणाली
जमीनी आयुधागार, टैंक रोधी हथियार और सहायक प्रणालियां
वायु उपकरण प्रणालियां
सभी लाइसेंस टीएएस के पास