भारत में सबमरीन केबल लेंडिंग स्टेशनों (CLS) की स्थापना के लिए कानून सरल करने की कवायद के तहत भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) ने लाइसेंसिंग फ्रेमवर्क और नियामकीय व्यवस्था के लिए अपनी सिफारिशें दी हैं।
मंगलवार को ट्राई ने दो श्रेणियों के केबल लेंडिंग स्टेशनों (सीएलएस) के स्थलों को शामिल करने की अनुमति देने के लिए मौजूदा परमिट व्यवस्था में संशोधन की सिफारिश की है।
इसमें मुख्य केंद्र और फाइबर डिस्ट्रीब्यूशन प्वाइंट शामिल है, जिसे उद्योग में प्वाइंट आप प्रजेंस (पीओपी) कहा जाता है। इससे लाइसेंसधारक को मुख्य सीएलएस से अपने संबंधित सीएलएस-पीओपी लोकेशन तक पहुंच बढ़ाने, सबमरीन केबल में खुद के लीज्ड डार्क फाइबर पेयर्स की अनुमति मिल सकेगी।
हालांकि सीएलएस-पीओपी के मालिकों को अन्य सुरक्षा और नियामकीय/लाइसेंस बाध्यताओं को पूरा करना होगा, जिसमें रिपोर्टिंग जरूरतें और एलआईएम सुविधा बनाना शामिल है।
इसमें यह भी कहा गया है कि सरकार को सीएलएस से संबंधित परिचालन (संबंधित गतिविधियों जैसे लेआउट, रखरखाव और सब सी केबल सिस्टम्स की मरम्मत शामिल है) की देश की हाई स्पीड डेटा आर्किटेक्चर में अहम भूमिका को देखते हुए इन्हें आवश्वक सेवाओं का दर्जा देना चाहिए।
2022 के अंत तक 15 अंतरराष्ट्रीय सब सी केबल्स लैंडिंग अलग अलग 14 केबल लैंडिंग स्टेशनों पर थे। इस उद्योग से जुड़ी वेबसाइट सबमरीन नेटवर्क डॉटकॉम के मुताबिक यह भारत के 5 शहरों मुंबई, चेन्नई, कोचीन, तूतीकोरिन और त्रिवेंद्रम में हैं।