टाटा पावर ने अपनी 4 हजार मेगावाट वाली मुंद्रा की अल्ट्रा मेगा बिजली परियोजना के लिए वित्तीय करारों के पूरा होने की घोषणा की है।
इस घोषणा के साथ ही कुछ सप्ताह बाद कंपनी इस परियोजना के लिए वित्तीय लेखाबंदी भी कर लेगी।टाटा पावर अपनी विशेष उद्देश्य से बनाई गई कंपनी, कोस्टल गुजरात पावर लिमिटेड के जरिए गुजरात के मुंद्रा में 17,000 करोड़ रुपये वाली अल्ट्रा मेगा बिजली परियोजना बना रही है।
कंपनी के एक वक्तव्य में कहा गया है, ‘इस वित्त में 4,250 करोड़ रुपये की इक्विटी, 72 अरब रुपये तक के बाह्य वाणिज्यिक उधारी (ईसीबी) और 5,550 करोड़ रुपये का रुपयों में लिया गया कर्ज शामिल है।’
कौन दे रहा है कर्ज
भारतीय स्टेट बैंक रुपये में लिए कर्ज के लिए मुख्य बैंक होगा। कर्ज के लिए अन्य ऋणदाताओं में इंडिया इन्फ्रास्ट्रक्चर फाइनैंस कंपनी लिमिटेड, हाउसिंग ऐंड अर्बन डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन, ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स, विजय बैंक, स्टेट बैंक ऑफ बिकानेर ऐंड जयपुर, स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद, स्टेट बैक और ट्रैवनकोर और स्टेट बैंक ऑफ इंदौर शामिल हैं।
एसबीआई कैप्स वित्तीय सलाहकार और रुपयों में लिए गए कर्ज के लिए प्रमुख व्यवस्थापक की भूमिका निभाएगा।अंतरराष्ट्रीय कोष एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट बैंक ऑफ कोरिया, इंटरनैशनल फाइनैंस कॉर्पोरेशन, कोरिया एक्सपोर्ट इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन, एशियन डेवलपमेंट बैंक और बीएनपी परिबास से प्राप्त की जाएगी।
टाटा पावर के प्रबंध निदेशक प्रसाद आर मेनन का कहना है, ‘मुंद्रा की अल्ट्रा मेगा बिजली परियोजना के लिए वित्तीय करारों का होना एक महत्वपूर्ण घटना है। ऋण मुहैया करवाने की शर्तों से हमें बोली कीमतों के अनुकूल लंबे समय के लिए ऋण उपलब्ध हो रहा है।’
इंटरनैशनल फाइनैंस कॉर्पोरेशन (आईएफसी) ने इस परियोजना के लिए 20 वर्षों के लिए 1800 करोड़ रुपये देने का वादा किया है। यह समयावधि परियोजना को ऋण के लिए मिलने वाली सबसी लंबी अवधि है। आईएफसी के एक अधिकारी का कहना है, ‘इसमें 6 वर्षों की अनुग्रह (रियायती) अवधि शामिल है। कर्ज का पुनर्भुगतान 6 वर्ष के बाद ही शुरू किया जाएगा।’
उनका कहना है कि लंबी अवधि के लिए वित्त की सुविधा से परियोजना के जोखिम से निपटने की क्षमता बढ़ेगी और साथ ही यह स्थानीय बैंको से लिए गए वाणिज्यिक वित्त का पूरक होगी।
एशियन डेवलपमेंट बैंक ने भी परियोजना के लिए 1800 करोड़ रुपये देने की बात कही है। यह कर्ज दो भागों में दिया जाएगा। पहले हिस्से में बैंक 1 हजार करोड़ रुपये मुहैया करवाएगा और बाकी की राशि बैंक एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट बैंक ऑफ कोरिया के साथ मिलकर जोखिम में भागीदारी करार के जरिये उपलब्ध करवाएगा।
समय से आगे की दौड
इस परियोजना की सबसे पहली इकाई (प्रत्येक की क्षमता 800 मेगावाट) से उम्मीद है कि वह सितंबर 2011 तक पूरी हो जाएगी और यह पूरा संयंत्र 2012 के अंत तक पूरा हो जाएगा, जो अपने निर्धारित समय से 14 महीने पहले पूरा होगा।
इस परियोजना में बनाई जाने वाली 3800 मेगावाट बिजली को पांच राज्यों- गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, हरियाणा और पंजाब को बेचा जाएगा।वक्तव्य में कहा गया है कि परियोजना की जगह पर काम प्रगति पर है और सभी बड़े इक्विपमेंटों के लिए ऑर्डर किए जा चुके हैं।
कंपनी ने पूरे बॉयलर आइलैंड स्कूप के लिए ईपीसी आधार पर कोरिया की डूसैन हैवी इंडस्ट्रीज ऐंड कंस्ट्रक्शन कंपनी से करार किया है और स्टीम टर्बाइन जेनरेटरों की आपूर्ति के लिए तोशिबा कॉर्पोरेशन से करार किया है।
इस परियोजना में बॉयलर की ऐसी तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा, जिससे कोयले की हर मात्रा पर अधिक बिजली का उत्पादन करने की क्षमता रखती है। एडीबी के अनुसार ‘इससे हर साल 30 लाख टन कोयले की बचत की जा सकेगी और साथ में पहले 10 वर्षों में 2.80 करोड़ टन से भी अधिक कार्बन डाई ऑक्साइड के विषैले धुएं को निकलने से रोका जा सकेगा।’