भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने एचसीसी की रियल एस्टेट सहायक इकाई लवासा कॉरपोरेशन की नई समेकित लेनदेन समीक्षा और फॉरेंसिक ऑडिट की मांग की है, जिससे कि समेकित आधार पर कंपनी की वित्तीय स्थिति को लेकर तस्वीर स्पष्ट हो सके।
राष्ट्रीय कंपनी विधि पंचाट (एनसीएलटी) द्वारा लवासा की सभी कंपनियों की समेकित दिवालिया प्रक्रिया को हरी झंडी दिए जाने के बाद नए फॉरेंसिक ऑडिट की जरूरत पैदा हुई। रियल एस्टेट कंपनी अपने 7,700 करोड़ रुपये के ऋणों को चुकाने में विफल रही जिसके बाद 2018 में लवासा कॉरपोरेशन को ऋण समाधान के लिए भेजा गया था। लवासा के ऋणदाताओं में शामिल ऐक्सिस बैंक ने 1,266 करोड़ रुपये के सर्वाधिक बकाया का दावा किया। लवासा की पैतृक एचसीसी भी बैंक ऋणों की अदायगी को लेकर विफल रही।
9 जून को आयोजित सीओसी की बैठक में एसबीआई ने कहा कि लवासा से संबंधित पक्षों के बीच कई लेनदेन हुए और व्यक्तिगत टीआरए संपूर्ण अवलोकन मुहैया कराने में सक्षम नहीं हो सकते। एसबीआई ने कहा है कि कुछ खास लेनदेन इतने जटिल हैं कि सीओसी को प्रत्येक कंपनी के लिए अलग अलग टीआरए रिपोर्टों के आधार पर परस्पर संबंधों की व्याख्या करना मुश्किल होगा। एसबीआई का कहना है कि ताजा ऑडिट से सभी इकाइयों के लिए संपूर्ण टीआरए रिपोर्ट के जरिये इस तरह के पारस्परिक संबंधों के बारे में सही जानकारी हासिल करने में मदद मिलेगी। एसबीआई की मांग पर प्रतिक्रिया देते हुए सीओसी के चेयरमैन शैलेश वर्मा ने कहा कि एलसीएल और वारसगांव ऐसेट्स मैंटेनेंस लिमिटेड (डब्ल्यूएएमएल) के संदर्भ में टीआरए उनके पूर्ववर्ती रिजोल्यूशन प्रोफेशनलों द्वारा पहले ही किया जा चुका है और जरूरी आवेदन एनसीएलटी के समक्ष पेश किए जा चुके हैं।
दिलचस्प बात यह है कि अन्य बैंकों का कहना है कि यदि एसबीआई समेकित फॉरेंसिक ऑडिट चाहता है तो उसे ऑडिट के लिए भुगतान करना चाहिए और सभी बैंकों से भुगतान करने को नहीं कहा जाना चाहिए। लेनदारों में से एक अर्सिल ने कहा कि यह निर्णय सीओसी को लेना होगा कि क्या फॉरेंसिक ऑडिट की जरूरत है या नहीं।
सीओसी के लिए कानूनी सलाहकार शार्दूल अमरचंद मंगलदास ने स्पष्ट किया है कि फॉरेंसिक ऑडिट कराना कुछ खास वर्ग के लेनदारों द्वारा लिया गया व्यक्तिगत निर्णय हो सकता है, और बैंक को इसका खर्च वहन करने की जरूरत होगी।