उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त एक विशेषज्ञ समिति का कहना है कि भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) अदाणी मामले में अल्टीमेट बेनिफिशियल ओनर्स (यूबीओ) यानी आखिरी लाभान्वित की पहचान करने में आगे नहीं बढ़ पा रहा है। सेबी अदाणी समूह की सूचीबद्ध कंपनियों में हिस्सेदारी रखने वाले विदेश पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) के पीछे खड़े यूबीओ की पहचान के प्रयास में लगा हुआ है।
न्यूनतम सार्वजनिक शेयरधारिता की शर्तों के संभावित उल्लंघन की जांच कर रहे सेबी ने पाया है कि अदाणी समूह की सूचीबद्ध कंपनियों में हिस्सेदारी रखने वाले 13 एफपीआई के पीछे 42 शेयरहोल्डर सात देशों में फैले हुए हैं। बाजार नियामक इन 42 शेयरहोल्डर के मालिकाना हक का पता लगाने के लिए विभिन्न माध्यमों का सहारा ले रहा था। इस कार्य में सेबी घरेलू जांच एजेंसियों और विदेशी नियामकों की मदद ले रहा था।
हालांकि सेबी को अपनी इस मुहिम में केमैन आइलैंड्स, माल्टा, क्यूरासाओ, ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड्स और बरमूडा के नियामकों से कुछ हाथ नहीं लग पाया है। उच्चतम न्यायालय में सौंपी गई 173 पृष्ठों की रिपोर्ट के अनुसार बाजार नियामक अब नियामकों की अंतरराष्ट्रीय संस्था आईओएससीओ से मदद लेने की प्रक्रिया में है। इसके लिए बहुपक्षीय समझौते के मसौदे में संशोधन किए जा रहे हैं।
न्यायमूर्ति ए एम सप्रे की अध्यक्षता वाली इस विशेषज्ञ समिति ने पाया है कि अगर सेबी एफपीआई को निवेश देने वाली इकाइयों तक पहुंच भी जाती तो इससे स्थिति पूरी तरह स्पष्ट नहीं हो पाती। शीर्ष न्यायालय के पीठ को सौंपी अपनी रिपोर्ट में समिति ने पाया है कि अदाणी समूह की कंपनियों में निवेश करने वाले एफपीआई के पीछे खड़े यूबीओ का पता लगाने की प्रक्रिया लंबी-चौड़ी होती और यह किसी अंजाम तक नहीं पहुंच पाती।
13 विदेशी इकाइयों में 12 पंजीकृत एफपीआई हैं जबकि एक वित्तीय संस्थान है। मार्च 2020 तक अदाणी एंटरप्राइजेज, अदाणी ट्रांसमिशन, अदाणी टोटाल गैस, अदाणी ग्रीन एनर्जी और अदाणी पावर में इन 13 इकाइयों की शेयरधारिता क्रमशः 15.56 प्रतिशत, 18.05 प्रतिशत, 17.91 प्रतिशत, 20,39 प्रतिशत और 14,11 प्रतिशत थी। ये एफपीआई प्रायः विवादों में रहे हैं। इनमें कुछ पर आरोप हैं कि वे अदाणी समूह के प्रवर्तकों की मुखौटा इकाइयां हैं।
सेबी उन अंशदाताओं की पहचान करने का प्रयास करता आ रहा है जिनकी इन एफपीआई में आर्थिक रुचि हो सकती है। इससे पहले 2018 सेबी ने अस्पष्ट संरचना वाले एफपीआई के खिलाफ प्रतिबंध इस आधार पर समाप्त कर दिया था कि पीएमएलए नियमों के तहत बेनिफिशियल ओनर का खुलासा नियामकीय उद्देश्यों के लिहाज से पर्याप्त है।