उद्योग के विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिका के जवाबी शुल्कों से अल्पावधि में विनिर्माण, रिटेल और कंज्यूमर पैकेज्ड गुड्स जैसे प्रमुख अमेरिकी क्षेत्रों में भारतीय आईटी कंपनियों के वृद्धि परिदृश्य पर असर हो सकता है। लार्जकैप और मिडकैप कंपनियों के लिए बैंकिंग, वित्तीय सेवा और बीमा (बीएफएसआई) के बाद इन तीन वर्टिकलों का राजस्व में सबसे अधिक योगदान होता है। लेकिन अब इन क्षेत्रों में अनिश्चितता के कारण निर्णय लेने की प्रक्रिया सुस्त हो जाएगी और नए जमाने की प्रौद्योगिकियों पर कम डिस्क्रेशनरी खर्च होगा।
मैक्वेरी के विश्लेषक रवि मेनन ने कहा कि उन्हें ‘बहुत कम’ से लेकर ‘शून्य’ वृद्धि की उम्मीद है। लेकिन निर्माण और रिटेल क्षेत्र में गिरावट नहीं आएगी। मेनन ने कहा, ‘इसका असर परोक्ष है क्योंकि अनिश्चितता बढ़ती जा रही है और विनिर्माण, विशेष रूप से अमेरिका में ऐसे मसले आ सकते हैं जो आईटी खर्च को प्रभावित करेंगे। निश्चित रूप से लोगों को चिंता है कि अमेरिका मंदी की ओर बढ़ रहा है।’
राजस्व, उपभोक्ता कारोबार और विनिर्माण के लिहाज से भारत की सबसे बड़ी आईटी सेवा कंपनी टीसीएस के राजस्व में उपभोक्ता व्यवसाय और विनिर्माण ने 31 दिसंबर को समाप्त तीसरी तिमाही में क्रमशः 15.7 प्रतिशत और 8.7 प्रतिशत का योगदान दिया। इन्फोसिस के लिए इसी अवधि में निर्माण और रिटेल ने करीब 29.3 फीसदी योगदान दिया जबकि विप्रो के लिए उपभोक्ता व्यवसाय ने करीब 19 फीसदी और ऊर्जा, विनिर्माण एवं संसाधन ने 16.9 फीसदी योगदान दिया। एचसीएल का करीब 20 फीसदी राजस्व विनिर्माण सेगमेंट से आता है। बीएसई पर ज्यादातर आईटी कंपनियों के शेयर नुकसान में बंद हुए और बीएसई इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी इंडेक्स में भी 3.78 फीसदी की कमजोरी आई। केपीआईटी, कोफोर्ज और पर्सिस्टेंट जैसी मझोली कंपनियों के शेयरों पर ज्यादा दबाव देखा गया।
बीएफएसआई और व्यावसायिक सेवाओं के लिए, टैरिफ का असर कम रहने की संभावना है जबकि आईटी सेवाओं की मांग पर इसका अधिक प्रभाव पड़ेगा। हालांकि बैंकों पर टैरिफ का सीधा असर नहीं पड़े लेकिन उन पर अपने विनिर्माण और सीपीजी तथा खुदरा ग्राहकों के वित्त पोषण का जोखिम है। बीएनपी पारिबा ने कहा कि अमेरिका के कुछ आर्थिक आंकड़ों में मंदी के संकेत दिखने लगे हैं, जिससे महंगाई से जुड़ी सुस्ती और सबसे खराब स्थिति में मंदी का खतरा बढ़ गया है। बीएनपी पारिबा सिक्योरिटीज के विश्लेषक कुमार राकेश ने टैरिफ की घोषणा से पहले एक नोट में लिखा, ‘आईटी सेवाओं की मांग (खासकर डिस्क्रेशनरी) इस मंदी से अछूती रहने की संभावना नहीं है। इसे ध्यान में रखते हुए निवेशकों ने वृद्धि की उम्मीदों में काफी कटौती की है और अब उन्हें लग रहा है कि वित्त वर्ष 2026 में राजस्व वृद्धि वित्त वर्ष 25 की तुलना में कमजोर रहेगी।’
हालांकि, डिस्क्रेशनरी खर्च और छोटे आईटी अनुबंधों पर प्रभाव पड़ने की आशंका है, लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि इस तरह की आर्थिक चुनौतियों का मतलब यह भी होगा कि बड़े लागत अनुकूल सौदों पर अधिक ध्यान दिया जाए क्योंकि ग्राहक दक्षता बढ़ाने पर जोर देंगे।