प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो
अमेरिका की तरफ से भारतीय वस्तुओं पर 50 प्रतिशत शुल्क लगाए जाने से सस्ते हाउसिंग सेक्टर को बड़ा झटका लग सकता है। इस शुल्क से MSME इकाइयों का कारोबार प्रभावित होगा और उनके कर्मचारियों की आय घटेगी, जो 45 लाख रुपये तक की कीमत वाले घरों के प्रमुख खरीदार हैं। रियल्टी कंसल्टिंग कंपनी एनारॉक ने सोमवार को एक रिपोर्ट में यह अनुमान जताया। इसके मुताबिक, सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (MSME) का अमेरिका को होने वाले निर्यात में अहम योगदान है और अधिक शुल्क लगने से उनके उत्पाद महंगे हो जाएंगे, जिससे ऑर्डर घटने और कर्मचारियों की आय पर असर पड़ने की आशंका है।
आंकड़ों के मुताबिक, साल 2025 की पहली छमाही में देश के सात प्रमुख शहरों में बेचे गए 1.9 लाख मकानों में सिर्फ 34,565 किफायती श्रेणी के थे। यह किफायती आवास की कुल बिक्री हिस्सेदारी 38 फीसदी से अधिक को दर्शाता है।
मौजूदा नियमों के तहत 45 लाख रुपये तक के आवास किफायती श्रेणी में आते हैं। महामारी के बाद इस क्षेत्र में मांग में गिरावट, जो भारत की लगभग 1.46 अरब आबादी के लगभग 17.76 फीसदी लोगों की जरूरतें पूरी करती है, किफायती आवास की आपूर्ति में गिरावट के रूप में स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है। कुल लॉन्च में इसकी हिस्सेदारी 2019 के 40 फीसदी से घटकर 2025 की पहली छमाही में केवल 12 फीसदी रह गई है। रिपोर्ट कहती है कि महामारी के बाद से ही किफायती मकानों की बिक्री और पेशकश में खासी गिरावट आई है।
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एनारॉक के कार्यकारी निदेशक (शोध एवं परामर्श) प्रशांत ठाकुर ने कहा कि कोविड महामारी के बाद से यह श्रेणी पहले ही बुरी तरह प्रभावित है और अब प्रस्तावित अमेरिकी शुल्क इससे लगी थोड़ी-बहुत उम्मीद भी खत्म कर देंगे। ठाकुर कहते हैं कि टैरिफ के कारण इस विशाल कार्यबल की भविष्य की आय में व्यवधान के कारण, किफायती आवास की मांग पटरी से उतर सकती है और इस अत्यधिक आय-संवेदनशील क्षेत्र में बिक्री को और प्रभावित कर सकती है। इसके साथ ही मांग में इस तरह की गिरावट डेवलपर्स द्वारा लॉन्च में कमी लाएगी, क्योंकि उन्हें कम बिक्री के कारण कम कार्यशील पूंजी का सामना करना पड़ेगा। महामारी के बाद से वे गंभीर इनपुट लागत मुद्रास्फीति से जूझ रहे हैं। इस क्षेत्र के गृह ऋणों की पूर्ति करने वाले आवास वित्त संस्थानों को बढ़ते जोखिम का सामना करना पड़ेगा।
सरकारी अनुमान के अनुसार, MSME भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में लगभग 30 प्रतिशत और निर्यात में 45 प्रतिशत से अधिक योगदान करते हैं। रिपोर्ट कहती है कि अमेरिकी शुल्क से इनके कारोबार और कर्मचारियों की आय पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। इससे किफायती घरों के संवेदनशील खंड में मांग एवं आपूर्ति दोनों प्रभावित होंगी। निर्यात के मामले में, MSME ने पिछले चार वर्षों में 228 फीसदी की वृद्धि की है । वित्त वर्ष 2020-21 में 52,849 से बढ़कर वित्त वर्ष 2024-25 में 173,350 हो गए हैं। MSME और SME मिलकर औपचारिक और अनौपचारिक रूप से 26 करोड़ से ज्यादा भारतीयों को रोजगार देते हैं, ख़ास तौर पर कपड़ा, इंजीनियरिंग सामान, ऑटो कंपोनेंट, रत्न और आभूषण, और खाद्य प्रसंस्करण जैसे श्रम-प्रधान उद्योगों में। जब भारत की विकास गाथा की बात आती है, तो SME – MSME अध्याय को हटा देने से पूरी कहानी ही ध्वस्त हो जाती है।