रैनबैक्सी के हलचल मचा देने वाली जापानी कंपनी डाईची सांक्यो को बेच देने के फैसले से कंपनी के कर्मचारी काफी बेचैन हैं।
आधिकारिक तौर पर कर्मचारियों को दी गई तस्सली कि कंपनी का मौजूदा प्रबंधन तंत्र और ढांचा जस का तस बना रहेगा भी उन्हें उनकी अधिग्रहण के बाद नौकरी छिन जाने के डर से निजात नहीं दिला सका।
कंपनी के कर्मचारियों का कहना है कि इस करार इतना गोपनीय तरीके से किया गया कि कंपनी के उच्च अधिकारियों को भी इस बात का पता नहीं चल पाया। बिजनेस स्टैंडर्ड ने जितने भी वरिष्ठ अधिकारियों से बात की सभी ने यह बात स्वीकार की कि उन्हें इस करार की खबर समाचार पत्रों से ही मिली।
एक कर्मचारी ने कहा, ‘मार्च 2009 जब तक यह सौदा पूरा नहीं हो जाता कंपनी के कामों में कोई बदलाव नहीं होगा। हमारी चिंता की वजह अधिग्रहण के बाद क्या होगा यह है।’ इस दौरान भारतीय मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव्स महासंघ ने कहा कि वह रैनबैक्सी प्रबंधन से बातचीत करेगी। महासंघ के महासचिव डीपी दुबे का कहना है, ‘हम इस मामले पर ध्यान बनाए हुए हैं। एफएमआरएआई रैनबैक्सी प्रबंधन से कई मसलों जैसे कि सौदे की मौजूदा स्थिति पर बात करके ही अपनी स्थिति साफ कर पाएगा।’
फार्मास्युटिकल विशेषज्ञ क्रिसकैप्टिल के प्रबंध निदेशक संजीव कॉल का कहना है कि एक दम से प्रबंधन में बदलाव की उम्मीद बहुत कम है। ‘रैनबैक्सी अधिग्रहण के बाद डाईची सांक्यो की जेनेरिक दवाओं के लिए सहायक कंपनी होगी और दोनों अलग-अलग प्रबंधन टीमों के तहत स्वतंत्र रूप से काम करें। इसमें किसी भी तरह की कोई समस्या नहीं होनी चाहिए।’