ओला के संस्थापक साझेदार या शुरुआती कर्मियों में से एक प्रणय जीवराजका ने कंपनी छोड़ दी है और अपना स्टार्टअप शुरू कर सकते हैं। सूत्रों ने यह जानकारी दी। यह ऐसे समय में हो रहा है जब ओला बढ़त की अपनी नई योजना पर बड़ा दांव लगा रही है, जिसमें इलेक्ट्रिक वाहन संयंत्र शामिल है। यह संयंत्र दुनिया का सबसे बड़ा दोपहिया संयंत्र हो सकता है, जिस पर 2,400 करोड़ रुपये निवेश होंगे। कोरोना महामारी से प्रभावित ओला का टैक्सी कारोबार भी सुधरना शुरू हो गया है और फूड बिजनेस व वित्तीय सेवाओं की स्थिति भी ठीक हो रही है।
ओला फूड्स के सीईओ के तौर पर जीवराजका के नेतृत्व में फर्म ने कोरोना महामारी के बीच अपने नवगठित फूड बिजनेस में भारी-भरकम सुधार दर्ज किया। यह सुधार अर्थव्यवस्था के धीरे-धीरे खुलने के साथ हुआ क्योंकि रेस्टोरेंट खुले और डिलिवरी वाले खाने के साथ वायरस का डर कम हुआ। ओला फूड्स के खिचड़ी एक्सपेरिमेंट ने महामारी के बावजूद 10 लाख से ज्यादा ऑर्डर हासिल किए।
जीवराजका ने ओला फूड्स की मदद की, जो साल 2019 में शुरू हुआ और तकनीक से लैस किचन के नेटवर्क का विस्तार किया। ये देश भर में मौजूद हैं। इनमें बेंगलूरु, मुंबई, दिल्ली, चेन्नई, पुणे और हैदराबाद शामिल हैं।
ओला ने एक बयान में कहा, कई साल तक उनके योगदान के लिए हम प्रणय जीवराजका को धन्यवाद देते हैं और उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हैं।
ओला का गठन आईआईटी मुंबई के कंप्यूटर इंजीनियर भाविश अग्रवाल ने साल 2010 में अपने सहपाठी अंकित भाटी के साथ मिलकर किया था। आईआईटी मुंबई के ही छात्र रहे जीवराजका इस फर्म के शुरुआती कर्मियों में से एक थे और साल 2013 तक सहायक उपाध्यक्ष (परिचालन) थे। साल 2015 में उन्हें मुख्य परिचालन अधिकारी बनाया गया, साल 2017 में संस्थापक साझेदार और उसी साल ओला फूड्स का सीईओ बनाया गया।
साल 2017 में जब ओला ने फूडपांडा का भारतीय कारोबार जर्मनी की ग्लोबल ऑनलाइन फूड ऑर्डरिंग से और डिलिवरी मार्केटप्लेस ‘डिलिवरी’ का हीरो गग्रुप से 20 करोड़ डॉलर में अधिग्रहण किया तब जीवराजका को इस कारोबारी इकाई का सीईओ बनाया गया। जिसे फूडपांडा इंडिया के मौजूदा टीम ने भी समर्थन दिया।
