तेल-गैस

‘सस्ते’ रूसी तेल से प्राइवेट रिफाइनरीज मालामाल, सरकारी कंपनियों को हुई कम कमाई

भारत में आयात होने वाले कच्चे तेल में रूस की हिस्सेदारी 2021 में केवल 2 फीसदी थी, जो पिछले 42 महीनों में बढ़कर 32 फीसदी हो गई।

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एस दिनकर   
Last Updated- August 23, 2025 | 8:55 AM IST

रूस से सस्ते कच्चे तेल के आयात का फायदा तो खूब हुआ मगर वह बराबर बंटा नहीं है। देश में निजी क्षेत्र की कंपनियों को इसका ज्यादा मुनाफा मिला है। उद्योग जगत के सूत्रों और जहाजों की आवाजाही के आंकड़ों से पता चलता है कि सरकार द्वारा तय कीमत पर ईंधन बेचने की मजबूरी के कारण सरकारी रिफाइनरियों को बहुत कम लाभ हुआ है।

देश की सात रिफाइनिंग कंपनियों ने रूस से रोजाना करीब 18 लाख बैरल सस्ता तेल खरीदा और इसमें से 8.81 लाख बैरल दो कंपनियों के हिस्से में आया। दोनों निजी क्षेत्र की कंपनियां हैं – रिलायंस इंडस्ट्रीज और नायरा एनर्जी। नायरा एनर्जी को रूस की रोसनेफ्ट चलाती है। 2025 में अभी तक हुए रूसी तेल के कुल आयात में करीब आधी हिस्सेदारी इन दोनों कंपनियों की ही है।

फरवरी 2022 में यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद से चार साल में भारत ने वहां से औसतन 15 लाख बैरल कच्चा तेल रोजाना आयात किया। इसमें से 40 फीसदी से ज्यादा तेल रिलायंस और नायरा ने ही मंगाया।

भारत में आयात होने वाले कच्चे तेल में रूस की हिस्सेदारी 2021 में केवल 2 फीसदी थी, जो पिछले 42 महीनों में बढ़कर 32 फीसदी हो गई। इसका नुकसान सऊदी अरब, अमेरिका, नाइजीरिया और दूसरे देशों को उठाना पड़ा है, जहां से भारत ने आयात कम कर दिया। इस जून में तो भारत में आए कुल कच्चे तेल में से 45 फीसदी रूस से ही आया यानी विदेश से आने वाला कच्चे तेल का हर दूसरा बैरल रूस से रहा।

इसका सबसे ज्यादा फायदा रिलायंस को मिला मगर उसे हुए मुनाफे की सही जानकारी नहीं है। अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने इस सप्ताह सीएनबीसी पर एक साक्षात्कार में दावा किया, ‘इन सौदों से भारतीय कंपनियों को करीब 16 अरब डॉलर का मुनाफा होने की बात है। भारत में रूस से सस्ता तेल खरीदने और उसे उत्पाद के तौर पर दोबारा बेच देने का यह काम जंग के दौरान ही बढ़ा है, जो हमें कबूल नहीं है। वह माल को दोबारा बेच रहे हैं। यह तो सरासर मुनाफाखोरी हुई।’

फिनलैंड की संस्था सीआरईए ने एक रिपोर्ट में कहा कि जी7+ देशों ने भारत और तुर्की की 6 रिफाइनरियों से 18 अरब यूरो (21 अरब डॉलर) के तेल उत्पाद आयात किए, जिनमें से करीब 9 अरब यूरो के उत्पाद रूसी कच्चे तेल से तैयार किए गए थे। रिलायंस की जामनगर रिफाइनरी सूची में सबसे ऊपर है। सीआरईए का अनुमान है कि उसने 12 अरब यूरो का जो ईंधन जी7+ देशों को बेचा, उसमें से करीब 4 अरब यूरो का ईंधन रूसी कच्चे तेल से तैयार किया गया था। ओएनजीसी की मंगलौर रिफाइनरी चौथे स्थान पर और वाडीनार रिफाइनरी छठे स्थान पर है।

सीमा शुल्क और जहाजों की आवाजाही के आंकड़ों, बजट दस्तावेज तथा उद्योग अधिकारियों से मिली जानकारी के आधार पर जब बिज़नेस स्टैंडर्ड ने हिसाब लगाया तो अच्छी खासी बचत का पता चला। जनवरी 2022 से जून 2025 के दौरान रूस से खाड़ी देशों और अमेरिका के मुकाबले सस्ता कच्चा तेल खरीदकर भारत ने करीब 15 अरब डॉलर बचा लिए। लेकिन एक शीर्ष सरकारी अधिकारी ने इसी हफ्ते बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि रूसी कच्चे तेल पर कभी ईरान या वेनेजुएला के तेल की तरह प्रतिबंध लगा ही नहीं।

एक शीर्ष सरकारी अधिकारी ने इस सप्ताह बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि ईरानी या वेनेजुएला के तेल की तरह रूसी कच्चे तेल पर प्रतिबंध नहीं लगाया गया है। इससे पहले अमेरिका में जो बाइडन की सरकार ने रूसी तेल की भारतीय खरीद का सार्वजनिक समर्थन किया था क्योंकि उस पर कभी प्रतिबंध ही नहीं था।

2023 में रूसी तेल पर सबसे ज्यादा छूट के कारण भारतीय कंपनियों को करीब 7 अरब डॉलर की बचत हुई, जिसका बड़ा हिस्सा रिलायंस और नायरा ने बचाया क्योंकि सरकारी रिफाइनरियों को सरकार द्वारा तय कम दाम पर ही पेट्रोलियम उत्पाद बेचने पड़े। निजी रिफाइनरियों ने अपने उत्पादन का बड़ा हिस्सा आकर्षक कीमतों पर यूरोप और एशिया को निर्यात कर दिया। रिलायंस और नायरा से इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं मिल पाई।

रूस का तेल अब भी दुबई बेंचमार्क तेल से 2-3 डॉलर और सऊदी या यूएई ग्रेड से 5-6 डॉलर सस्ता मिल रहा है। इससे ईंधन निर्यातकों को अच्छा मुनाफा हो रहा है। अधिकारी ने कहा कि भारत पेट्रोलियम या इंडियन ऑयल ऐसा नहीं कर पा रही हैं क्योंकि सरकार द्वारा तय सब्सिडी वाली कीमतों पर पेट्रोल, डीजल व रसोई गैस बेचने पड़ रहे हैं।

भारत से इस साल हुए कुल ईंधन निर्यात में से 81 फीसदी रिलायंस और नायरा ने ही किया है। रिलायंस ने डीजल और जेट ईंधन जैसे मध्यम आकार के ईंधनों का रोजाना 9.14 लाख बैरल निर्यात किया है, जो कुल निर्यात का 71 फीसदी है। जामनगर रिफाइनरी से उसने उत्पादन का लगभग 67 प्रतिशत निर्यात किया। इस रिफाइनरी की क्षमता करीब 13.6 लाख बैरल तेल की है, जिसमें से 7.46 लाख बैरल प्रतिदिन रूसी तेल आयात किया गया। 2025 में रिलायंस ने रोसनेफ्ट से अनुबंध करके यूराल ग्रेड का 5,00,000 बैरल तेल रोज मंगाया।

बाकी निर्यात ओएनजीसी की मंगलौर रिफाइरी ने किया, 1.14 लाख बैरल प्रतिदिन रहा। यह नायरा के 1.18 लाख बैरल प्रतिदिन से थोड़ा ही कम है। दोनों रिफाइनरियों ने अपनी क्षमता का 38 फीसदी और 30 फीसदी निर्यात किया, लेकिन इनके कुल आयात में रूसी तेल की हिस्सेदारी 53 फीसदी और 71 फीसदी रही।

First Published : August 22, 2025 | 10:17 PM IST