प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो
वैश्विक तेल एवं गैस बाजार में गिरावट का रुख है क्योंकि मांग धीमी है जबकि आपूर्ति ज्यादा है। अगस्त में ब्रेंट क्रूड 67.4 डॉलर प्रति बैरल पर बंद हुआ जो मासिक आधार पर 3 प्रतिशत और वार्षिक आधार पर 14.6 प्रतिशत की गिरावट है। कुछ विश्लेषक चीन में औद्योगिक मंदी, ओपेक प्लस द्वारा अक्टूबर से आपूर्ति बढ़ाने के संकेत और बढ़े हुए जमा भंडारों को देखते हुए कच्चे तेल का भाव 60 डॉलर से नीचे जाने का अनुमान लगा रहे हैं। इसके अलावा, महामारी के बाद तेल की मांग में एक संरचनात्मक बदलाव भी आया है क्योंकि ‘वर्क फ्रॉम होम’ के रुझान ने आवाजाही की जरूरतों को कम कर दिया है और साथ ही इलेक्ट्रिक वाहनों या ईवी की बढ़ती लोकप्रियता ने भी तेल की मांग को प्रभावित किया है।
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भारत में अपस्ट्रीम कंपनियों ओएनजीसी और ऑयल इंडिया के शेयर पिछले 12 महीनों के दौरान 18 फीसदी और 32 फीसदी गिरे हैं। इनके मूल्यांकन से संकेत मिलता है कि कच्चा तेल दीर्घावधि औसत से नीचे रहेगा। वैश्विक प्रतिस्पर्धियों के मुकाबले भारतीय अपस्ट्रीम कंपनियां बड़ी छूट पर कारोबार कर रही हैं। निवेशक नियमन वाले मूल्य निर्धारण (प्रशासित कीमत व्यवस्था या एपीएम गैस कीमतों और अतीत में विंडफॉल टैक्स) जैसे नीतिगत बदलावों के साथ साथ कमजोर उत्पादन वृद्धि को लेकर सतर्क हैं।
हालांकि दोनों कंपनियां अब वृद्धि के दौर में प्रवेश कर रही हैं। ओएनजीसी को केजी बेसिन, दमन, डीएसएफ और बीपी-टीएसपी भागीदारी से ताकत मिलेगी जबकि ऑयल इंडिया गैस पाइपलाइन विस्तार और एनआरएल की क्षमता वृद्धि पर जोर दे सकती है। बढ़ते न्यू वेल गैस (एनडब्ल्यूजी) आवंटन से खासकर ऑयल इंडिया के परिदृश्य को मजबूती मिल सकती है।
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अधिक उत्पादन और सस्ते मूल्यांकन को देखते हुए शेयर मौजूदा स्तर से उछल सकते हैं। ओएनजीसी और ऑयल इंडिया वैश्विक स्तर पर सबसे सस्ते शेयरों में से हैं। वित्त वर्ष 2028 की पहली छमाही में उद्यम मूल्य से परिचालन लाभ (निवेश के लिए समायोजित) के आधार पर इनका कारोबार 2.9 गुना से 3.6 गुना के बीच है जबकि वैश्विक औसत 4.2 गुना है। रिजर्व भंडार के मामले में अंतर और भी स्पष्ट है, प्रति बैरल उद्यम मूल्य 6.0 डॉलर (ओएनजीसी) और 5.4 डॉलर (ऑयल) है जो वैश्विक औसत 11.9 डॉलर का आधा है। नकदी प्रवाह 29.4 डॉलर प्रति बैरल (ओएनजीसी) और 22.6 डॉलर (ऑयल इंडिया) प्रति बैरल पर स्वीकार्य है और परिचालन लाभ मोटे तौर पर वैश्विक प्रवाह के अनुरूप है।
एनडब्ल्यूजी कारक को ध्यान में रखते हुए निर्धारित एपीएम प्राप्तियों पर डिस्काउंट में बदलाव आ सकता है। एपीएम गैस कीमत में बदलाव, महंगी एनडब्ल्यूजी, विंडफॉल कर हटने, नए खोज क्षेत्रों को खोले जाने जैसे नीतिगत सुधारों से रेटिंग में बदलाव को बढ़ावा मिल सकता है।