सत्यम द्वारा अधिग्रहण के प्रयास के बाद से सुर्खियों में आई मायटास इन्फ्रा लिमिटेड की मुश्किलें खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही हैं।
चेन्नई की एक कंपनी क्रिएटिव इन्फ्रास्ट्रक्चर ने भी अब मायटास इन्फ्रा पर आरोप लगा दिए हैं और आंध्र प्रदेश सरकार को भी लपेटे में ले लिया है।
उसने कुछ कागजात पेश किए हैं, जिनके मुताबिक मछलीपत्तनम में 1,590 करोड़ रुपये की लागत के साथ बंदरगाह विकसित करने के लिए मायटास और राज्य सरकार के बीच हुए रियायत संबंधी समझौते में अनियमितताएं बरती गई हैं।
सरकार ने इस बंदरगाह के विकास के लिए बनाए गए विशेष उद्देश्य वाले गठबंधन वज्र सीपोर्ट प्राइवेट लिमिटेड और शरत चटर्जी ऐंड कंपनी के साथ अप्रैल 2008 में करार किया था।
वज्र में मायटास के पास सबसे बड़ी हिस्सेदारी है और नागार्जुन कंस्ट्रक्शन कंपनी तथा श्रेई इन्फ्रास्ट्रक्चर फाइनैंस भी इसमें शामिल हैं।
क्रिएटिव के प्रमोटरों ने भी मिलकर एक विशेष उद्देश्य वाली कंपनी (एसपीवी) क्रिएटिव पोर्ट डेवलपमेंट प्राइवेट लिमिटेड बनाई थी, जो 6 फरवरी 2008 को अस्तित्व में आई थी। इस कंपनी का श्रेई के साथ निवेश संबंधी समझौता था।
यह तय हुआ था कि मछलीपत्तनम बंदरगाह बनाने का ठेका मिलने पर जो एसपीवी बनाई जाएगी, उसमें 49 फीसदी हिस्सेदारी श्रेई-क्रिएटिव गठबंधन की होगी। मायटास-नागार्जुन के पास 51 फीसदी हिस्सेदारी रहने की बात थी।
इस बात पर भी सहमति बनी कि बोली लगाने से पहले और उसके बाद के खर्च ये दोनों गठबंधन (श्रेई-क्रिएटिव और मायटास-नागार्जुन) उसी अनुपात में वहन करेंगे, जिस अनुपात में एसपीवी में उनकी हिस्सेदारी है।
समझौते के मुताबिक ही क्रिएटिव ने अध्ययन और विश्लेषण किए और योजनाएं तथा रणनीतियां भी तैयार कीं, जिन्हें बोली के हिस्से के तौर पर पेश किया गया। समझौते के मुताबिक ठेका मिलने के बाद क्रिएटिव के प्रमोटरों को भी एसपीवी में शामिल किया जाना था।
श्रेई ने 21 जून 2007 को आंध्र सरकार के पास पत्र भेजकर बताया कि एसपीवी में उसकी हिस्सेदारी का एक हिस्सा क्रिएटिव पोर्ट डेवलपमेंट के पास है।
लेकिन क्रिएटिव का आरोप है कि ठेका मिलने के बाद मायटास ने क्रिएटिव इन्फ्रास्ट्रक्चर तथा उसके प्रमोटरों को परियोजना में शामिल नहीं किया।
कंपनी ने कहा, ‘ ठेका मिलने के बाद क्रिएटिव की अनदेखी करने का मायटास का काम गलत, बेईमानी से भरा और विश्वास तोड़ने के साथ ही बोली की प्रक्रिया और राज्य सरकार के साथ यह धोखाधड़ी भी है।’
कंपनी ने राज्य सरकार को भी लपेटे में लेते हुए मुख्य सचिव, मुख्यमंत्री के प्रधान सचिवों और सरकार तथा विशेष मुख्य सचिव को 5 जनवरी 2009 को पत्र भेजा।
कंपनी ने लिखा, ‘हम यह समझने में नाकाम हैं कि आंध्र सरकार ने किस वजह से रियायत के लिए ऐसा समझौता किया, जो बोली की शर्तों को पूरा नहीं कर रहा है।’